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नेता आते और वादे करते लेकिन… एक कॉलेज का दशकों से इंतजार कर रहा पूर्व पीएम अटल का पैतृक गांव

अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के पिता अपने परिवार के साथ बटेश्वर से ग्वालियर चले गए थे।
Written by: श्‍यामलाल यादव | Edited By: Nitesh Dubey
नई दिल्ली | Updated: May 04, 2024 15:13 IST
नेता आते और वादे करते लेकिन… एक कॉलेज का दशकों से इंतजार कर रहा पूर्व पीएम अटल का पैतृक गांव
बटेश्वर अटल बिहारी वाजपेयी का पैतृक गांव है। (Express File Photo)
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लोकसभा चुनाव चल रहे हैं और मोदी सरकार अपनी उपलब्धियों का बखान कर रही है। इस बीच बीजेपी के संस्थापक और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पैतृक गांव अभी भी एक कॉलेज का इंतजार कर रहा है। आगरा से लगभग 80 किमी दूर और यमुना के तट पर स्थित बटेश्वर गांव में अटल बिहारी वाजपेयी का परिवार रहता है।

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योगी ने किया वादा लेकिन अभी तक नहीं हुआ पूरा

इसी गांव में रहने वाले 75 वर्षीय मंगलाचरण शुक्ला इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहते हैं, "योगी जी (8 सितंबर, 2018 को) वाजपेयी जी के अस्थि विसर्जन के लिए यहां आए थे और एक कॉलेज सहित कई चीजों का वादा किया था। लेकिन अधिकांश वादे अधूरे रह गए। वे वाजपेयी जी को केवल 25 दिसंबर (उनकी जयंती) और 16 अगस्त (उनकी मृत्यु तिथि) पर याद करते हैं।"

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पास से ही विधायक हैं शिक्षा मंत्री

विडंबना यह है कि अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के पिता अपने परिवार के साथ ग्वालियर चले गए थे। एक और विडंबना यह है कि आदित्यनाथ सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री योगेन्द्र उपाध्याय पास के ही आगरा से विधायक हैं।

बटेश्वर में अपने बचपन के कई साल बिताने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम बनने के बाद गांव का सिर्फ एक बार दौरा किया। ग्रामीणों का कहना है कि इसके बाद आगरा से बटेश्वर होते हुए इटावा तक रेलवे लाइन समेत कई परियोजनाएं शुरू की गईं। हालांकि एक कॉलेज की मांग है लेकिन अभी तक यह पूरी नहीं हो पाई। इस गांव में 7,000 मतदाता रहते हैं। आस-पास कोई भी स्कूल 10वीं कक्षा से आगे की सेवाएं नहीं देता है और यहां तक ​​कि स्कूली शिक्षा पूरी करने के लिए भी छात्रों को कम से कम 12 किमी की यात्रा करनी पड़ती है।

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रघुवीर निषाद (जिनकी पत्नी नेकसा देवी ग्राम प्रधान हैं) कहते हैं, "हमारे बच्चों को अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा, इंटरमीडिएट और उच्च शिक्षा की सुविधा की आवश्यकता है। पिछले साल सीएम योगी आदित्यनाथ ने खुद वाजपेयी की याद में एक 'सांस्कृतिक संकुल केंद्र' का उद्घाटन किया था। इसलिए उन्हें उम्मीद है कि कॉलेज भी सरकार के एजेंडे में है।"

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बीजेपी सांसद का भी ढीला रवैया

बटेश्वर फ़तेहपुर सीकरी लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है, जहां से मौजूदा भाजपा सांसद राजकुमार चाहर (एक जाट हैं) फिर से चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके ठाकुर रामनाथ सिकरवार को मैदान में उतारा है, जबकि बसपा ने रामनिवास शर्मा को मैदान में उतारा है। हालांकि बीजेपी के लिए चिंता की बात यह है कि जाट समुदाय के रामेश्वर चौधरी और बीजेपी के फ़तेहपुर सीकरी विधानसभा सीट से विधायक बाबूलाल चौधरी के बेटे भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ रहे हैं। सिकरवार कारगिल युद्ध भी लड़ चुके हैं।

फ़तेहपुर सीकरी लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली अन्य सभी चार विधानसभा सीटें (आगरा ग्रामीण, खेरागढ़, फतेहाबाद और बाह) भी भाजपा के पास हैं। बटेश्वर बाह विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जहां की विधायक रानी पक्षालिका सिंह (एक ठाकुर) हैं। गांव में कौशल केंद्र चलाने वाले सचिन वाजपेई कहते हैं, "योगी जी ने जिस कॉलेज की घोषणा की थी, वह उस क्षेत्र में किसी अन्य स्थान पर चला गया, जो एक प्रभावशाली नेता के अंतर्गत आता है। हमारे बार-बार अनुरोध पर जून 2021 में यूपी सरकार द्वारा एक और कॉलेज प्रस्तावित किया गया था, लेकिन वह अभी भी स्वीकृत नहीं है।"

उच्च शिक्षा मंत्री योगेन्द्र उपाध्याय का जिक्र करते हुए सचिन कहते हैं, "जब वह मंत्री नहीं थे तो ऐसा लगता था कि वह हमारे लिए लड़ रहे हैं। अब वह खुद उच्च शिक्षा संभालते हैं, लेकिन उन्होंने इस जरूरी मुद्दे को नहीं उठाया है।" मंगलाचरण शुक्ला राजस्थान में एक सरकारी शिक्षक थे, वह कहते हैं कि कॉलेज के अलावा यहां के युवाओं को नौकरियों के लिए कुछ औद्योगिक इकाइयों की जरूरत है। उन्होंने कहा, "सांसद चाहर जी ने कुछ परियोजनाओं की घोषणा की थी, लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि कोविड-19 के कारण फंड रोक दिया गया है और वह कुछ नहीं कर सकते।"

परियोजनाएं प्रक्रियाधीन- वरिष्ठ अधिकारी

यूपी के उच्च शिक्षा निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी (जो नाम नहीं बताना चाहते थे) ने कहा कि परियोजनाएं प्रक्रियाधीन थीं। हाल ही में कुछ प्रश्न उठाए गए थे और हमने उनका समाधान कर दिया है। हालांकि परियोजनाएं कब शुरू होंगी, इसके लिए मैं कोई सटीक समय-सीमा नहीं बता सकता।

अजय यादव और गौरव यादव (जो दोनों लगभग 20 वर्ष के हैं) इस बारे में बात करते हैं कि कैसे अग्निवीर के तहत बदली हुई सेना भर्ती प्रक्रिया ने कई लोगों के लिए वह विकल्प भी बंद कर दिया है। उन्होंने कहा, "पहले आपको यहां दर्जनों युवा सुबह-शाम सेना में भर्ती के लिए अभ्यास करते हुए मिल जाते होंगे। लेकिन अब कोई नहीं है। अब एकमात्र उम्मीद पुलिस और अर्धसैनिक बल हैं पर पेपर भी बार-बार लीक हो जाता है। राज्य सरकार ठीक से परीक्षा तक नहीं करा पाती। राज्य सरकार भर्ती परीक्षा भी ठीक से आयोजित नहीं कर सकती। अब युवा कहां जाएं? ऐसी स्थिति में हमें भाजपा को वोट क्यों देना चाहिए?''

रोजगार बड़ा मुद्दा

ऐसे भी लोग हैं जो अपना गुस्सा छिपा नहीं पाते। बलवीर सिंह वर्मा द्वारा संचालित एक कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) में एक संविदा शिक्षक किसी काम के लिए पास के गांव से आया है। विनोद सिंह कहते हैं, "मेरे दो बेटे सीटीईटी (शिक्षक भर्ती के लिए) के लिए उत्तीर्ण हुए। लेकिन 2018 के बाद से यूपी में शिक्षकों के लिए कोई रिक्तियां अधिसूचित नहीं की गई हैं। हमारे क्षेत्र के कुछ अभ्यर्थी बिहार में चयनित हुए और वहां कार्यरत हैं। यह शर्मनाक है कि लोगों को शिक्षक के रूप में सैकड़ों किलोमीटर दूर काम करना पड़ता है।"

बटेश्वर की आबादी में निषाद (नाविक समुदाय) और यादव सबसे प्रभावशाली हैं। दोनों जातियां ओबीसी हैं और प्रत्येक की संख्या लगभग 1,200 है। इसके अलावा यहां गोस्वामी, कुशवाह, ब्राह्मण, राजपूत और जाटव समेत दलित भी बड़ी संख्या में हैं। यूपी में जाट भी ओबीसी हैं।

सरकारी योजनाओं तक पहुंचने में सहायता प्रदान करने वाले सीएससी के बलवीर सिंह मालिक वर्मा कहते हैं कि यह स्पष्ट नहीं है कि लोग जिन मुद्दों के बारे में बात करते हैं वे चुनाव में उनके लिए निर्णायक होंगे या नहीं। उन्होंने कहा, "लगभग 50 लोग प्रतिदिन मेरे केंद्र में आते हैं और कई चीजों के बारे में बात करते हैं। लेकिन मैं जानता हूं कि वे कई चीजों को ध्यान में रखते हुए आखिरी वक्त पर अपना मन बदल लेते हैं।" वहीं मंगलाचरण शुक्ला मानते हैं कि सब कुछ के बावजूद भले ही मोदी सरकार भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने और रोजगार प्रदान करने के लिए कुछ नहीं कर रही है, फिर भी वह भाजपा को वोट देंगे।"

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