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दिल्ली में हर साल वायु प्रदूषण की वजह से चली जाती है 12 हजार की जिंदगी, इस रिपोर्ट में किया गया दावा

अध्ययन में कहा गया है कि 10 शहरों - अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, शिमला और वाराणसी - में हर साल औसतन 33,000 से अधिक मौतों की प्रमुख वजह वायु प्रदूषण होती हैं।
Written by: Anuradha Mascarenhas | Edited By: संजय दुबे
नई दिल्ली | Updated: July 04, 2024 12:57 IST
भारत और विदेश के शोधकर्ताओं के अध्ययन में पाया गया कि इन 10 शहरों में पीएम 2.5 की सांद्रता 99.8 प्रतिशत है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा (15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से अधिक थी।
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वायु प्रदूषण दुनिया भर में चिंता का विषय बना हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लांसेट में प्रकाशित भारत में अपनी तरह के पहले मल्टी सिटीज स्टडीज से पता चला है कि दिल्ली में हर साल होने वाली मौतों में से लगभग 11.5 प्रतिशत, यानी लगभग 12,000 मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती हैं, जो देश के किसी भी शहर के लिए सबसे अधिक है। अध्ययन में कहा गया है कि 10 शहरों - अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, शिमला और वाराणसी - में हर साल औसतन 33,000 से अधिक मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। इन शहरों में शिमला में मृत्यु दर सबसे कम है, जहां हर साल केवल 59 मौतें होती हैं, जो कुल मौतों का लगभग 3.7 प्रतिशत है, जिन्हें प्रदूषण के कारण माना जा सकता है।

शोधकर्ताओं ने 2008 से 2019 के बीच दस शहरों में डेली डेथ डेटा जुटाया

अध्ययन में कहा गया है कि इन शहरों में होने वाली कुल मौतों में से लगभग 7.2 प्रतिशत, यानी हर साल लगभग 33,000 मौतें, वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। भारत और विदेश के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि इन 10 शहरों में पीएम 2.5 सांद्रता 99.8 प्रतिशत विश्व स्वास्थ्य संगठन (15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से अधिक थी। शोधकर्ताओं ने 2008 से 2019 के बीच इन दस शहरों में सिविल रजिस्ट्री से डेली डेथ डेटा प्राप्त किया।

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प्रत्येक शहर के लिए इस अवधि के दौरान केवल तीन से सात साल के दैनिक मृत्यु डेटा उपलब्ध कराए गए थे। इन शहरों में कुल मिलाकर 3.6 मिलियन से अधिक मौतों की जांच की गई। कई शहरों में वायु प्रदूषण के आंकड़ों की विरल प्रकृति को देखते हुए शोधकर्ताओं ने पहले से विकसित मशीन-लर्निंग आधारित एक्सपोजर मॉडल का लाभ उठाया, जिसने नियामक मॉनिटर, उपग्रहों, मौसम विज्ञान और अन्य स्रोतों से डेटा को मिलाकर समय और स्थान के संदर्भ में उच्च स्तर के विवरण के साथ PM 2.5 एक्सपोजर डेटा तैयार किया।

अध्ययन में पाया गया कि जब सभी दस शहरों को एक साथ रिकॉर्ड लिया गया, तो PM2.5 के स्तर में हर 10 माइक्रोग्राम/घन मीटर की वृद्धि के लिए मृत्यु दर में 1.42 प्रतिशत का इजाफा हुआ। अलग-अलग शहरों के बीच बड़ा अंतर था, दिल्ली में मृत्यु दर में 0.31 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि बेंगलुरु में 3.06 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इससे पता चलता है कि कम प्रदूषित शहरों में रहने वाले लोगों में पूरी तरह से प्रदूषित शहरों में रहने वालों की तुलना में प्रदूषण में वृद्धि के कारण मृत्यु दर का अधिक जोखिम है।

सर्वे के सह-लेखकों में से एक सेंटर फॉर क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल के डॉ. सिद्धार्थ मंडल ने कहा, "हमारे नतीजों में पता चलता है कि बेंगलुरु और शिमला जैसे शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर अपेक्षाकृत कम है, जहां इसका प्रभाव अधिक मजबूत है। ऐसा संभवतः जोखिम के निम्न स्तरों पर जोखिम में तेज वृद्धि के कारण है, जो उच्च स्तरों पर स्थिर हो जाता है। जिसका इन शहरों में अनुभव किए जाने की संभावना नहीं है।"

सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव के फेलो और अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. भार्गव कृष्ण ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इस अध्ययन ने भारत में वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य को समझने में नई जमीन तैयार की है। उन्होंने कहा, "यह भारत में अल्पकालिक वायु प्रदूषण जोखिम और मृत्यु के बीच संबंधों का आकलन करने वाला पहला बहु-शहर अध्ययन है, जिसमें शामिल शहरों में वायु प्रदूषण सांद्रता की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है और वे विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में स्थित हैं।"

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Tags :
air pollutionDeathlancet study
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