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'श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर मोदी तक…', जानें भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकार का क्या है इतिहास, धारा 370 के विरोध में हुई थी शुरुआत

भारत में गठबंधन का इतिहास बहुत पुराना है। पहली बार श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पं नेहरु के विरोध में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट गठबंधन की शुरुआत हुई थी।
Written by: न्यूज डेस्क
नई दिल्ली | Updated: June 09, 2024 08:41 IST
 श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर मोदी तक…   जानें भारतीय राजनीति में गठबंधन सरकार का क्या है इतिहास  धारा 370 के विरोध में हुई थी शुरुआत
भारत में गठबंधन राजनीति का इतिहास
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लोकसभा का चुनाव समाप्त हो चुका है। चुनाव परिणामों में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया है। पिछले 10 सालों से सत्ता में बहुमत के साथ काबिज बीजेपी इस बार के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी जरुर बनीं लेकिन बहुमत के जादुई आंकड़े से पीछे रह गई। हालांकि चुनाव से पहले ही हुए गठबंधन के आधार पर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिला है। वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाली इंडिया गठंबधन को पिछले चुनाव से बढ़त जरूर मिला है। फिर भी ये गठबंधन बहुमत से दूर रह गया है।

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इस चुनाव में भाजपा को 240 सीटों पर जीत मिली है। इसके साथ ही बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए ने कुल 293 सीटें जीती हैं। एनडीए गठबंधन ने 272 के जादुई आंकड़ा पार पार कर लिया है। इस वजह से नरेंद्र मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। जबकि इंडिया गठबंधन के खाते में कुल 234 सीटें गई है। वहीं इसका नेतृत्व कर रही कांग्रेस ने 99 सीटों पर जीत दर्ज की है।

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देश में गठबंधन की राजनीति का इतिहास 70 साल से भी ज्यादा पुराना है। पहली बार देश में पार्टियों का गठबंधन श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में हुआ था। आजादी के बाद बनीं पहली अंतरिम सरकार में मुखर्जी पं नेहरु की कैबिनेट में केंद्रीय उद्योग मंत्री थे। उस समय के प्रधानमंत्री नेहरु और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ समझौते और जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा (धारा 370) के विरोध में 19 अप्रैल 1950 को मुखर्जी ने कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

जनसंघ के नेतृत्व में बना था पहला गठबंधन

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मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद मुखर्जी उस समय RSS के तत्कालीन सरसंघचालक गुरु गोलवलकर से मिलकर पार्टी गठन की रणनीति बनाई। जिसके बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी, प्रोफेसर बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय ने मिलकर 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में भारतीय जनसंघ की स्थापना की। पार्टी ने देश की कई सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन 3 सीटों पर ही जीत मिली जिसमें मुखर्जी की भी सीट शामिल थी। इसके बाद मुखर्जी-दीनदयाल और मधोक ने नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम का गठबंधन बनाया। वहीं इस गठबंधन में लोकसभा के कुल 32 जबकि राज्यसभा के 10 सांसद थे। गठबंधन में पंजाब की अकाली दल, हिंदू महासभा, ओडिशा (तब उड़ीसा) की गणतंत्र परिषद और कुछ निर्दलीय सांसद शामिल थे। हालांकि उस समय की संसद ने इस गठबंधन को मान्यता नहीं दी थी।

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आजादी के बाद पहली गठबंधन सरकार

इंदिरा गांधी की सरकार ने 25 जून 1975 से देश में आपातकाल लगाने की घोषणा कर दी थी। इसके बाद विपक्षी पार्टी के नेता और इंदिरा का विरोध कर रहे लोगों को जेल में डालने की प्रक्रिया शुरु हुई थी। करीब 2 साल बाद 21 मार्च 1977 को आपातकाल समाप्त हुआ और देश में चुनाव की घोषणा हुई। विपक्षी पार्टी के नेताओं ने जनता पार्टी की घोषणा की। इसमें जनसंघ, भारतीय लोकदल, कांग्रेस (ओ), संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी जैसे 10 से ज्यादा दलों को मिलाकर जनता पार्टी की स्थापना की गई थी। इस चुनाव में इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी की सरकार बनी। इस सरकार की अगुवाई मोरारजी देसाई कर रहे थे। इसी के साथ मोरारजी आधुनिक भारत के इतिहास में पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने।

इस चुनाव में कांग्रेस 154 सीटों पर सिमट गई थी। हालांकि दो साल में ही मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। जिसके बाद जनता पार्टी के ही चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने लेकिन वह भी ज्यादा समय तक इस कुर्सी पर नहीं बैठ सके। महज 6 महीने के भीतर ही चरण सिंह को अपने पद से इस्तीफा देना पड़। इसके बाद जनता पार्टी की सरकार गिर गई और 1980 में ही मध्यावधि चुनाव हुआ। इस चुनाव में जनता पार्टी ने जगजीवन राम को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया। लेकिन जब चुनाव के परिणाम आए तो जनता पार्टी को महज 31 सीटें आई जबकि कांग्रेस के खाते में 350 से ज्यादा सीटें आईं। एक बार फिर इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सरकार बनाए।

संयुक्त मोर्चा के नेतृत्व में वीपी-चंद्रशेखर सरकार

ज्यादा समय तक पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं चली। महज 9 साल बाद एक बार फिर देश में गठबंधन की सरकार की स्थिति बनी। 1989 में राजीव गांधी के विरोध में जनता दल के नेतृत्व में कई संयुक्त मोर्चा नाम का गठबंधन हुआ। इस गठबंधन में बीजेपी में सहयोगी दल के रूप में शामिल थी। मोर्चा के तहत वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। ये सरकार भी ज्यादा समय तक नहीं चली और 11 महीनें के भीतर ही सरकार गिर गई। वीपी सिंह की सरकार इस वजह से गिरी क्योंकि बीजेपी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया।

वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद चंद्रशेखर भारत के प्रधानमंत्री बने। मोर्चा के तहत चंद्रशेखर की सरकार को कांग्रेस पार्टी बाहर से समर्थन दे रही थी। हालांकि ये सरकार भी ज्यादा समय तक नहीं चल सकी और महज 8 महीनें के भीतर ही सरकार गिर गई और फिर मध्यावधि चुनाव हुए।

अटल बिहारी की पहली सरकार

चंद्रशेखर की सरकार गिरने के बाद पीवी नरसिंम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की पांच साल सरकार रही। जिसके बाद एक बार फिर 1996 में गठबंधन की सरकार शुरू हुई। इस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बन के ऊभरी। जिसके बाद बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने एनडीए के नेतृत्व में सरकार बनाई। लेकिन उनको बहुमत सिद्ध करने पहले ही महज 13 दिन में ही इस्तीफा देना पड़ा। अटल बिहारी वाजपेयी के इस्तीफे के बाद कई छोटे बड़े दलों ने मिलकर यूनाइटेड फ्रंट के नास से गठबंधन बनाया। इस गठबंधन को कांग्रेस पार्टी बाहर से समर्थन दे रही थी। जिसके बाद एचडी देवगौड़ा देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन महज 10 महीने के भीतर ही कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के बाद ये सरकार गिर गई।

पहली गठबंधन सरकार ने पूरा किया कार्यकाल

जिसके बाद इंद्र कुमार गुरजाल कांग्रेस के समर्थन से देश के प्रधानमंत्री बने। हालांकि गुजराल की भी सरकार एक साल नहीं पूरा कर पाई। जिसके बाद बीजेपी की अगुवाई में कांग्रेस को रोकने के लिए 1998 में एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) बना। इस गठबंधन में कुल 13 दल शामिल थे। 1998 में हुए चुनाव में एनडीए को 258 सीटें मिली। जिसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने। हालांकि ये सरकार भी ज्यादा समय नहीं चल सकी और महज 13 महीने के फिर जयललिता के समर्थन वापस लेने की वजह से गिर गई। तत्पश्चात देश में हुए चुनाव में एनडीए को बहुमत मिला और अटल बिहारी के नेतृत्व में सरकार बनी। यह पहली गठबंधन सरकार रही जिसने अपना पूरा कार्यकाल पूरा किया।

एनडीए के तोड़ में बना यूपीए

एनडीए के जवाब में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए (यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस) बना। साल 2004 में हुए आम चुनाव में इस गठबंधन को 222 सीटें मिली। वहीं इस गठबंधन को समाजवादी पार्टी और लेफ्ट पार्टियों ने बाहर से समर्थन दिया। जिसके बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी। हालांकि 2008 में लेफ्ट पार्टियों के समर्थन वापस लेने के बाद सपा ने सरकार बचाई थी। इसी गठबंधन ने साल 2009 में हुए आम चुनाव में एक बार फिर सरकार बनाई और मनमोहन सिंह एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बने। यह सरकार 2004 से लेकर 2014 तक चली।

साल 2014 में देश में नरेंद्र मोदी और बीजेपी की आंधी चली जिसमें कांग्रेस पार्टी और यूपीए गठबंधन की बुरी तरह हार हुई। केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व में मोदी की सरकार बनी। इसके बाद 2019 में एक बार फिर मोदी ने केंद्र में सरकार बनाई। इन दोनों चुनाव में बीजेपी को अपने दम पर बहुमत मिला था और पार्टी ने 272 का जादुई आंकड़ा मोदी के नाम पर पार किया था। साल 2014 में जहां बीजेपी को 282 सीटें मिली वहीं 2019 में 303 सीटें मिली।

एक बार फिर लौट आई गठबंधन सरकार

2024 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने एक बार फिर से सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करते हुए इंडिया(इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस) गठबंधन बनाया। इस चुनाव में इंडिया गठबंधन को बहुमत तो नहीं मिला लेकिन इसने पिछले 10 सालों से केंद्र की सत्ता में काबिज बीजेपी को बहुमत प्राप्त करने से रोक दिया। हालांकि बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को बहुमत मिला है।

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