चिराग जिंदा हैं और दहाड़ रहे हैं! 4 सालों में खुद बदल कर रख दी किस्मत की लकीरें
बिहार की राजनीति में चिराग पासवान को एक उभरता हुआ सितारा माना जा रहा है। चार साल पहले तक चिराग पासवान के पास कुछ नहीं था, पार्टी तक टूट चुकी थी, लेकिन वही चिराग अब मोदी के कैबिनेट में मंत्री बनने जा रहे हैं, उनके पांच सांसद जीतकर लोकसभा पहुंच चुके हैं। चिराग का पिछले चार सालों में ऐसा सफर देखने को मिला है कि राजनीतिक गलियारों में हर कोई कह रहा है- चिराग जिंदा है और दहाड़ रहा है!
चिराग को लगे कई झटके
साल 2020 में बिहार के विधानसभा चुनाव हुए थे, चिराग पासवान ने फैसला किया कि वे अकेले ही चुनाव लड़ेंगे। सिर्फ उन सीटों पर प्रत्याशी उतारें जहां पर जेडीयू मजबूत थी। असर यह रहा कि जेडीयू को कई सीटों का नुकसान हुआ, उसकी टैली 43 सीटों पर सिमट गई। उसके बाद एक और सियासी भूचाल से चिराग का सामना हुआ जब चाचा पशुपति पारस ने बड़ा खेला कर दिया। उनकी तरफ से एलजेपी में दो फाड़ कर दी गई, 6 में से 4 सांसदों ने पशुपति का समर्थन किया और सभी एनडीए में शामिल हो गए। यह वो वक्त था जब चिराग ना सिर्फ एनडीए से बाहर हो गए बल्कि अपनी पार्टी भी गंवा बैठे।
चिराग ने कैसे की वापसी?
लेकिन किस्मत के सामने झुकने के बजाय चिराग ने मेहनत करना ज्यादा ठीक समझा। इसी वजह से उस सियासी लड़ाई में उन्होंने संघर्ष करने का फैसला किया और फिर बिहार की राजनीति में पैर जमाने की कोशिश शुरू हो गई। बिहार में चिराग ने आशीर्वाद यात्रा निकाली, खुद को असली एलजेपी बताया, पासवान समुदाय को संदेश दिया गया उनके नेता तो वही है। वो मेहनत रंग लाई, एनडीए में वापसी में हुई, लोकसभा में मनपसंद सीटें लड़ने का मौका मिला और अब मंत्री बनने का सपना भी साकार हो रहा है।
बीजेपी को क्यों आ गए रास?
बिहार के तमाम बीजेपी नेता मानते हैं कि उन्होंने जातीय समीकरणों की वजह से एक समय तक पशुपति पारस का समर्थन किया, लेकिन चिराग को भी कभी अकेले नहीं छोड़ा। अगर चिराग ने खुद को मोदी का हनुमान बताया, तो बीजेपी ने भी कभी अपने दरवाजे पासवान के बेटे के लिए बंद नहीं किए। इसी वजह से लोकसभा चुनाव के दौरान पशुपति से ज्यादा चिराग की चली, मोदी के साथ केमिस्ट्री भी खूब जमी। अब चिराग फिर खड़े हो चुके हैं, कहने को जनाधार सीमित है, लेकिन युवा नेता के रूप में पहचान मिल रही है, मोदी के साथ भी सियासी दोस्ती मजबूत होती दिख रही है।