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नॉन वेज खाना कितना सुरक्षित? चिकन शावरमा खाने से मौत के बाद उठे सवाल, क्या कहती हैं रिपोर्ट

हार्ट अटैक से लेकर कैंसर तक उन लोगों पर ज्यादा देखा गया है जो नॉन वेज खाने का ज्यादा सेवन करते हैं।
Written by: Sudhanshu Maheshwari
नई दिल्ली | Updated: May 09, 2024 12:27 IST
नॉन वेज खाना कितना सुरक्षित  चिकन शावरमा खाने से मौत के बाद उठे सवाल  क्या कहती हैं रिपोर्ट
नॉन वेज खाने वालों के लिए रेड अलर्ट
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महाराष्ट्र के मुंबई में एक शख्स को चिकन शावरमा खाना भारी पड़ गया। पहले पेट दर्द हुआ, उल्टी हुई, अस्पताल में भर्ती होना पड़ा और फिर आखिर में दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। चिकन शावरमा खाने के बाद मौत का ये मामला सभी को चिंता में डाल गया है। पुलिस ने कार्रवाई करते हुए दुकान मालिक और एक अन्य शख्स को गिरफ्तार किया है। लेकिन सवाल बड़ा है- क्या नॉन वेज खाना सही में सुरक्षित है? क्या चिकन का सेवन आपको गंभीर बीमारियों की ओर खींच रहा है?

नॉन वेज खाने को लेकर क्या है एक्सपर्ट्स की राय?

अब क्या खाना चाहिए, क्या नहीं खाना चाहिए, ये लोगों का निजी फैसला होता है। लेकिन एक कड़वी सच्चाई ये है कि नॉन वेज खाने वालों को पिछले कुछ सालों में कई बीमारियों से जूझना पड़ा है, कई तरह की दिक्कतें उनके साथ देखने को मिली हैं। हार्ट अटैक से लेकर कैंसर तक उन लोगों पर ज्यादा देखा गया है जो नॉन वेज खाने का ज्यादा सेवन करते हैं। बड़ी बात ये है कि कुछ मामलों में मौत तक देखने को मिल गई है। ऐसे में जब देश में नॉन वेज खाने वालों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है, ये जानना जरूरी है कि एक्सपर्ट्स मांसाहारी भोजन को लेकर क्या बताते हैं, रिपोर्ट्स में क्या बातें निकलकर सामने आई हैं।

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नॉन वेज और कम होती लाइफ एक्सपेंटेंसी?

नॉन वेज खाने वालों की लिस्ट में रेड मीट काफी ऊपर रहता है। उसका सेवन भी कई लोग करते हैं, स्वाद के साथ यहां तक कहा जाता है कि वो पौष्टिक है। लेकिन हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का एक शोध इशारा करता है कि रेड मीट का सेवन लोगों की लाइफ एक्सपेंटेंसी रेट को घटा रहा है, उनकी औसत जीने की उम्र कम होती जा रही है। असल में हार्वर्ड ने 1986 से लेकर 2010 तक कुछ डेटा को इकट्ठा किया। ये डेटा रेड मीट को लेकर ही था। फिर 2010 के बाद अगले 8 साल इस बात का अध्ययन किया गया कि रेड मीट का जिंदगी पर क्या असर पड़ रहा है।

रिसर्च में पाया गया कि जो लोग रेड मीट का ज्यादा सेवन करते हैं, उनमें समय से पहले मौत का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। बड़ी बात ये रही कि उस शोध में जिन लोगों को शामिल किया गया था, उन्हें कोई भी दूसरी बीमारी नहीं थी, उनका हार्ट भी सही काम कर रहा था। लेकिन फिर भी रेड मीट का ज्यादा सेवन करने की वजह से उनकी जिंदगी पर उसका गलत असर पड़ने लगा। यहां तक कहा गया कि पूरी दुनिया में रेड मीट ज्यादे खाने की वजह से रेड मीट के सेवन की वजह से 14,019 लोगों की मौत हो गई।

WHO ने बताया है कैंसर से कनेक्शन!

अब ये आंकड़ा तो रेड मीट को लेकर है, लेकिन नॉन वेज के अंदर कई दूसरे आइटम भी आते हैं, उनको लेकर भी समय-समय रिसर्च की गई हैं। प्रोसेस्ड मीट को लेकर कुछ साल पहले WHO ने एक चौकाने वाला दावा किया था। कहा गया था कि इस बात के पक्का सबूत मिले हैं कि प्रोसेस्ड मीट खाने से कैंसर का खतरा काफी ज्यादा बढ़ चुका है। WHO तो यहां तक मानता है कि 34000 मौतों का कनेक्शन सीधे-सीधे प्रोसेस्ड मांस से जुड़ा हुआ है। अगर कुछ दूसरी रिसर्च की बात करें तो पता चलता है कि नॉन वेज खाने का हार्ट अटैक के साथ भी सीधा कनेक्शन निकला है।

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हार्ट अटैक को लेकर भी एक बड़ा दावा

Sri Jayadeva Institute of Cardiovascular Sciences and Research के मुताबिक 94 फीसदी युवा जिन्हें हार्ट अटैक आया था, वो नॉन वेज का सेवन करते थे। असल में 2400 लोगों का एक सैंपल लिया गया था, उसकी जब जांच की तब पता चला कि वेज खाने वाले सिर्फ 6 प्रतिशत लोगों को ही हार्ट अटैक आया था, वहीं नॉन वेज खाने वालों के लिए ये आंकड़ा 94 फीसदी दर्ज किया गया। अब ये तमाम रिपोर्ट और उनके आंकड़े साफ बताते हैं कि नॉन वेज खाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन कितना सेवन किया जा रहा है, कौन सी चीज का सेवन किया जा रहा है, इस पर काफी कुछ निर्भर करता है।

नॉन वेज और साफ-सफाई की समस्या

एक पहलू ये भी बहुत जरूरी है कि नॉन वेज खाने के साथ साफ-सफाई का ध्यान रखना पड़ता है। बाहर खाने में दिक्कत नहीं है, लेकिन कहां खाया जा रहा है, वहां किस प्रकार के चिकन का इस्तेमाल हो रहा है, वो सारे फैक्टर भी सेहत पर सीधा असर रखते हैं। वैसे नॉन वेज खाने को लेकर जो रेड अलर्ट दिखाई दे रहा है, ये कोई आज का नहीं है, पिछले कई सालों से ये बातें हो रही हैं, कई दावे किए जा चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद भी भारत में मांसाहार खाने वालों की संख्या में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है और इसका किसी एक धर्म से कोई लेना देना नहीं है।

रेड अलर्ट, लेकिन फिर खाना नॉन वेज!

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (2019-21) ने इस साल एक डेटा जारी किया है। उस डेटा में बताया गया है कि देश के 57.3 प्रतिशत पुरुष और 45.1 प्रतिशत महिलाएं हफ्ते में एक बार चिकन, मछली खाते हैं। यहां भी अगर धर्म के लिहाज से बात करें तो ईसाई सबसे ज्यादा मांसाहारी भोजन का सेवन करते हैं, दूसरे नंबर पर मुस्लिम आते हैं और तीसरे पायदान पर हिंदू खड़े हैं। वहीं अगर राज्य दर राज्य की बात करें तो सबसे ज्यादा मांसाहारी पूर्वी, दक्षिण और पश्चिमी भारत में है। अकेले गोवा, केरल, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश में हफ्ते में एक बार जरूर पुरुष मछली का सेवन कर रहे हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और ओडिशा में भी 50 फीसदी से ज्यादा पुरुष सात दिनों में एक बार नॉनवेज खाते हैं।

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