Blog: धूमिल होता फिलिस्तीन राष्ट्र का सपना, विस्तारवादी सोच वाला इजरायल का अस्तित्व से ही इनकार
ब्रह्मदीप अलूने
क्षेत्र विस्तारवाद का अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बहुत महत्त्व रहा है। राजनीतिक सत्ताएं इसे सैन्यवादी विचारधारा से पोषित करती हैं, जिसके अनुसार यह माना जाता है कि शक्ति से ही शांति आती है। मध्यपूर्व में इजरायल विस्तारवाद की रणनीति को आत्मसात कर चुका है, वहीं फिलिस्तीन की विभाजित सत्ताओं पर हावी हमास, शक्ति और आक्रमण को लक्ष्य प्राप्ति का अनिवार्य साधन बताता है। आंतरिक राजनीति और साझेदार राष्ट्रों की भू-रणनीति से प्रभावित इन दोनों राष्ट्रों में राजनीतिक आकांक्षाएं अब इतनी बढ़ गई हैं कि वे एक-दूसरे के अस्तित्व को स्वतंत्र देश के रूप में स्वीकार करने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं। वैश्विक समुदाय की भूमिका भी इसे लेकर ईमानदार नहीं है।
हमास इजरायल की जगह एक इस्लामिक राज्य बनाना चाहता है
हमास इस्लामिक प्रतिरोधी आंदोलन है, वह इजरायल की जगह एक इस्लामिक राज्य बनाना चाहता है। वह इजरायल के अस्तित्व को अस्वीकार करता और इसके विनाश के लिए प्रतिबद्ध है। दूसरी ओर, इजरायल ने कभी द्विराष्ट्र समाधान के विचार का आधिकारिक रूप से समर्थन नहीं किया है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने बार-बार इसका विरोध किया है। हालांकि इजरायल का जन्म द्विराष्ट्र समाधान के अनुसार ही हुआ था।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अन्य अंतरराष्ट्रीय निकाय तर्क देते हैं कि इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच शांति द्विराष्ट्र समाधान पर निर्भर करती है। फिलिस्तीन में पश्चिमी तट की सत्ता में काबिज फिलिस्तीन विकास प्राधिकरण इजरायल के अस्तित्व को मान्यता देता है। फिलिस्तीनी राजनीतिक नेतृत्व पश्चिमी तट पर महमूद अब्बास की फतह पार्टी और गाजा पट्टी पर नियंत्रण रखने वाले उसके इस्लामी उग्रवादी हमास विरोधियों के बीच गहराई से विभाजित है। यानी द्विराष्ट्र समाधान को लेकर फिलिस्तीन की दो प्रमुख राजनीतिक शक्तियों में ही विभाजन है। इजरायल में भी फिलिस्तीन के रूप में अलग राष्ट्र की मान्यता को लेकर समर्थन तो है, लेकिन दक्षिणपंथी पार्टियां अब उस समर्थन को कमजोर कर रही हैं।
इजरायल की स्थापना में फिलिस्तीन का ज्यादा हिस्सा यहूदियों को दिया गया था, जबकि ज्यादा आबादी होने के बाद भी फिलिस्तीन के हिस्से कम जमीन आई थी। जमीन और राष्ट्र के बंटवारे से उपजे हिंसक संघर्षों में जीत हासिल करके बाद में इजरायल ने बहुत बड़ी बढ़त हासिल कर ली और अपने क्षेत्र का विस्तार कर लिया। अब इजरायल की स्थिति मध्यपूर्व में बहुत मजबूत है और मिस्र, सीरिया तथा जार्डन की जमीन भी उसके कब्जे में है।
1948 में इजरायल ने स्वतंत्रता की घोषणा के बाद कई अरब देशों का हमला एक साथ झेला। मिस्र, इराक, जार्डन, लेबनान और सीरिया ने इजरायल पर हमला किया। युद्ध भीषण चला, जिसे इजरायल ने बेहद योजनाबद्ध तरीके से लड़ा और जीता। इस दौरान उसके कब्जे में फिलिस्तीन का और ज्यादा क्षेत्र आ गया, जो पहले संयुक्त राष्ट्र द्वारा दिए गए क्षेत्र से काफी बड़ा क्षेत्र था। अब इजरायल ने अपने क्षेत्रों में जाफा शहर, यरुशलम का नया शहर और यरुशलम से तटीय मैदान तक का गलियारा भी जोड़ दिया है।
इस क्षेत्र में इजरायल की पड़ोसी देशों के साथ झड़पें चलती रही हैं। 1967 में एक बार फिर इजरायल पर कई अरब राज्यों ने हमला किया। 5 जून से 10 जून, 1967 तक चला युद्ध इतिहास में छह दिवसीय युद्ध के नाम से जाना जाता है। यह मुख्य रूप से इजरायल और मिस्र, जार्डन और सीरिया सहित अरब राज्यों के गठबंधन के बीच था। इसमें इजरायल को भारी जीत मिली और उसने आसपास के अरब राज्यों के बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। यरुशलम पहली बार यहूदी संप्रभुता के अधीन आया। इस भारी जीत के बाद इजरायल एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति में बदल गया। इजरायल ने पूर्वी यरुशलम और पश्चिमी तट, गाजा पट्टी, गोलान हाइट्स और सिनाई प्रायद्वीप सहित प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। इससे संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ इजरायल के संबंध गहरे हो गए। 1979 में कैंप डेविड समझौते के बाद इजरायल ने सिनाई प्रायद्वीप मिस्र को वापस लौटा दिया। मिस्र ने इजरायल को औपचारिक रूप से मान्यता दी। अब मिस्र और जार्डन जैसे मुसलिम देशों से इजरायल के बेहतर संबंध हैं।
इजरायल अगर द्विराष्ट्र समाधान और अलग फिलिस्तीनी राष्ट्र की कोई योजना को स्वीकार कर ले, तो उसे जीते हुए अपने कई क्षेत्र लौटाने पड़ेंगे, जो बदली हुई राजनीतिक और वैश्विक परिस्थितियों में संभव नहीं लगता। वहीं, फिलिस्तीन में हमास के उभार से इजरायल की सुरक्षा चिंताएं काफी बढ़ गई हैं। पश्चिमी तट पर इजरायल के कब्जे, वहां लगातार बस्तियों के निर्माण और सैन्य चौकियों तथा फिलिस्तीनी हमलों के कारण किसी भी अंतिम समझौते की दिशा में प्रगति धीमी हो गई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमास को व्यापक रूप से एक आतंकवादी समूह के रूप में देखा जाता है। हमास बातचीत से कहीं ज्यादा इंतिफादा को बढ़ावा देता है। इंतिफादा या फिलिस्तीन के नागरिकों के हिंसक प्रतिकार, से तनाव बेहद बढ़ गया है। यह व्यापक विरोध प्रदर्शन, आत्मघाती बम विस्फोट और इजरायली सुरक्षा बलों तथा फिलिस्तीनी आतंकवादियों के बीच सशस्त्र टकराव के रूप में सामने आया है।
संयुक्त राष्ट्र पश्चिमी तट और गाजा को इजरायल द्वारा अधिग्रहित क्षेत्र मानता है। दोनों क्षेत्रों का संचालन प्रतिद्वंद्वी फिलिस्तीनी प्रशासन करता है। पश्चिमी तट, जिसमें पूर्वी यरुशलम भी शामिल है, और गाजा को कई देशों और संस्थाओं द्वारा फिलिस्तीन के रूप में मान्यता दी गई है, जबकि इजरायल इसे स्वीकार नहीं करता। कुछ देश इजरायल के अस्तित्व को मान्यता नहीं देते, वे पश्चिमी तट, यरुशलम, गाजा और इजरायल को फिलिस्तीन कहते हैं।
पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम का भविष्य इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के सबसे कठिन मुद्दों में से एक है। 1967 के बाद से, इजरायल ने पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम में लगभग सात लाख यहूदियों के लिए 140 बस्तियां बनाई हैं। पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम में फिलिस्तीनी 1967 से इजरायल के कब्जे में रह रहे हैं। किसी भी भावी शांति समझौते के तहत सभी बस्तियों को हटाया जाना चाहिए। जबकि इजरायल का कहना है कि उसे पश्चिमी तट और गाजा पर पूर्ण सुरक्षा नियंत्रण बनाए रखना है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इजरायल और फिलिस्तीन के बीच कई शांति समझौते तो कराए हैं, लेकिन द्विराष्ट्र के अस्तित्व को लेकर अब तक कोई निर्णायक पहल नहीं हुई है। 2007 में हुए अन्नापोलिस सम्मेलन ने समस्या को और गहरा दिया। इजरायल के प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्ट और फिलिस्तीनी प्राधिकरण के अध्यक्ष महमूद अब्बास ने अमेरिका के समर्थन से अन्नापोलिस सम्मेलन की शुरुआत की थी। इसका लक्ष्य एक शांति समझौते पर पहुंचना था, जो फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना की ओर ले जाता।
मगर हमास ने सभी पक्षों से सम्मेलन का बहिष्कार करने का आह्वान किया। उसके विरोध से शांति की उम्मीदें ध्वस्त हो गईं। अब इजरायल की सत्ता में नेतन्याहू हैं। हमास और उनकी विचारधारा द्विराष्ट्र के मसले पर एक जैसी हैं। हमास के फिलिस्तीन राष्ट्रवाद और नेतन्याहू के इजरायल राष्ट्रवाद में हिंसा, विरोध और असहमति नजर आती है और ये स्थितियां फिलिस्तीन राष्ट्र का सपना धूमिल कर रही हैं।