‘बीजेपी कहती रही कि हम राम को लाए हैं, सच यह है कि उन्होंने राम के नाम पर...’, अयोध्या से जीते सपा सांसद का दो टूक जवाब
धीरज मिश्रा
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी को पछाड़ दिया। सबसे खास बात फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र में समाजवादी पार्टी का जीतना रही है, जिसका अयोध्या भी हिस्सा है। पार्टी के दिग्गज विधायक अवधेश प्रसाद, जो सपा के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं, ने दो बार के सांसद लल्लू सिंह को 54,567 मतों से हराया। प्रसाद उत्तर प्रदेश में गैर-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से जीतने वाले एकमात्र दलित उम्मीदवार थे। प्रसाद की जीत को सपा और इंडिया ब्लॉक की वैचारिक जीत के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि अयोध्या, जहां राम मंदिर स्थित है, बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई थी।
उनकी जीत के बाद से प्रसाद के समर्थक और शुभचिंतक उनके घर पर उमड़ रहे हैं, कुछ गुलदस्ते लेकर आ रहे हैं तो कुछ बी आर अंबेडकर और मुलायम सिंह यादव की तस्वीरें लेकर आ रहे हैं।
इंडियन एक्सप्रेस के साथ साक्षात्कार में, प्रसाद अपनी जीत के महत्व और राम मंदिर मुद्दे पर चर्चा करते हैं और अपनी मां मैना देवी को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं, जिनका निधन आपातकाल के टाइम में जेल में रहने के दौरान हुआ था।
चुनाव जीतने के बाद आप कैसा महसूस कर रहे हैं?
यह मेरी जीत नहीं है, यह अयोध्या की महान जनता की जीत है। मैं पूरी तरह से संकल्प लेता हूं कि मैं लोगों की भावनाओं और उम्मीदों पर खरा उतरूंगा। अवधेश प्रसाद जब अपने वादे पर खरे उतरेंगे तो इसे अपनी जीत मानेंगे।
आपकी जीत से क्या संदेश गया है?
बीजेपी देश में झूठ फैला रही थी, कह रही थी कि 'हम राम को लाए हैं'। हकीकत यह है कि उन्होंने राम के नाम पर देश को धोखा दिया, राम के नाम पर व्यापार किया, राम के नाम पर महंगाई बढ़ने दी, राम के नाम पर बेरोजगारी पैदा की और राम के नाम पर गरीबों और किसानों को उजाड़ा। बीजेपी ने राम की मर्यादा को खत्म करने का काम किया है। लोग इसे अच्छी तरह से समझ चुके हैं।
क्या आपकी जीत से धर्मनिरपेक्षता मजबूत होगी?
बिल्कुल। बीजेपी एक काम बहुत अच्छे से करना जानती है- हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण और बार-बार पाकिस्तान का जिक्र करना। उन्हें देश के युवाओं की परवाह नहीं है जो बेरोजगार रह गए। चीन ने हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया लेकिन इस पर कोई चर्चा नहीं होती। महंगाई बढ़ रही है लेकिन कोई चिंता नहीं है।
आपकी जीत में सबसे अहम कारक क्या रहा?
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुझे सामान्य सीट से चुनाव लड़ाया और मैं जीत गया। यह अभूतपूर्व है। मैंने 11 चुनाव लड़े, नौ जीते और छह बार मंत्री रहा। एक चुनाव तो मैं ऐसे जीता कि मेरा विरोधी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाया। लेकिन यह ऐसा चुनाव था जिसमें जनता ने मामले को अपने हाथ में लिया। सभी ने मुझ पर भरोसा किया और सभी ने सहयोग किया। जाति-पाति सामने नहीं आई। लल्लू सिंह ने कहा कि संविधान बदलने के लिए बीजेपी को 400 सीटों की जरूरत है। उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था। लोगों को यह पसंद नहीं आया।
राम मंदिर तो बन गया है लेकिन बाबरी मस्जिद के बदले मस्जिद की नींव अभी तक नहीं रखी गई है। क्या आप इस दिशा में कोई पहल करेंगे?
मेरे नेता मुलायम सिंह यादव कहते थे कि अयोध्या में मंदिर बनना चाहिए, भले ही वह सोने का ही क्यों न हो, लेकिन यह आपसी सहमति से या कोर्ट के फैसले के आधार पर होना चाहिए। जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उनके सामने भी यही मुद्दा आया। उनकी भी यही राय थी। अंत में मंदिर कोर्ट के फैसले के बाद ही बना। सरकार कोई भी हो, अगर कोर्ट का फैसला आता तो मंदिर जरूर बनता। लेकिन जबरन श्रेय लेना गलत है। जनता समझ गई कि 'ये राम को लाने वाले नहीं हैं, राम तो हजारों साल से यहीं हैं।'
मस्जिद का क्या?
मुझे पूरी उम्मीद है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अक्षरशः पालन होगा।
इतने लंबे और कहानी भरे राजनीतिक करियर में क्या आपको कोई अफसोस है?
मुझे बस इतना अफसोस है कि मैं अपनी मां को (उनके अंतिम क्षणों में) नहीं देख पाया। यह आपातकाल के दौरान की बात है और मैं उस समय जेल में था। उनका पार्थिव शरीर पांच दिनों तक रखा गया था, लेकिन मैं अम्मा के अंतिम दर्शन नहीं कर पाया। जब मैं जेल में था, तब मेरी मां मुझसे मिलने आईं। उस समय वह बहुत खुश थीं। वह इतनी खुश थी कि जब वह गांव लौटी तो लोगों ने पूछा कि क्या मैं रिहा हो गया हूं तो उसने जवाब दिया, 'वह देश के लिए जेल में है।'
उस समय एक डिप्टी जेलर था। जब उसने उसे मुझसे मिलने से रोका तो मेरी मां ने उससे कहा, 'मेरा बेटा किसी चोरी या डकैती के लिए जेल में नहीं है। वह देश के लिए यहां आया है, एक दिन वह बड़ा नाम कमाएगा और तुम जैसे लोगों से निपटेगा।' उसी दिन उसकी मौत हो गई। बाद में जब मैं जेल मंत्री बना तो डिप्टी जेलर मुझसे मिलने आया और मैंने उसे माफ कर दिया…
मैं चुनावों के कारण अपने पिता दुखीराम के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाया था। चौधरी चरण सिंह आए थे और अमेठी में शरद यादव का चुनाव चल रहा था (1981 का लोकसभा उपचुनाव, यादव का मुकाबला राजीव गांधी से था)। उन्होंने मुझे अपनी कार में बैठाया और कहा, 'अवधेश जी, हम चुनाव खत्म होने के बाद ही वापस जा सकते हैं।' मैं काउंटिंग एजेंट था। जब मेरे पिता की मौत की खबर आई तो मैं दुविधा में था कि उनसे आखिरी बार मिलूं या अपने राजनीतिक पिता चौधरी चरण सिंह की बात सुनूं। मैंने चरण सिंह के आदेश का पालन करना चुना और 14 दिन बाद ही घर चला गया।