'AAP के साथ गठबंधन पर्याप्त मजबूत नहीं था..इसमें सुधार की जरूरत', दिल्ली की हार पर राज्य कांग्रेस चीफ का बड़ा बयान
Delhi Lok Sabha Chunav Results: लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद अपनी हार-जीत का आकलन कर रही हैं। कई राज्यों में सवाल यह भी उठ रहे हैं कि इंडिया गठबंधन या एनडीए को किन राज्यों में फायदा या नुकसान हुआ। ऐसे में अगर बात राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की करें तो यहां आप और कांग्रेस पार्टी ने गठबंधन में लड़ी थी, लेकिन इसके बावजूद दिल्ली की सातों सीटों में से दोनों पार्टियों को किसी भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो सकी। सभी सातों सीटों पर एक बार फिर से बीजेपी ने अपना परचम लहराया।
इस बीच दिल्ली कांग्रेस के अंतरिम प्रमुख देवेंद्र यादव ने इंडियन एक्सप्रेस से बात की। साथ ही बताया कि क्या गलत हुआ, क्या अरविंदर सिंह लवली के जाने से चुनाव नतीजों पर असर पड़ा और आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियों पर क्या असर पड़ेगा।
दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र सिंह यादव से पूछा गया कि कांग्रेस और उसके गठबंधन ने अन्य राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है। दिल्ली में क्या समस्या थी? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इसे समझने के लिए हम जमीनी नेताओं से बात करेंगे। हमें समझना होगा कि क्या गलत हुआ… हम कल कुछ जमीनी नेताओं के साथ बैठक कर रहे हैं, जिसके बाद हम आगे का रास्ता तय करेंगे।
क्या कन्हैया कुमार का दिल्ली से बाहर का होना नतीजों पर असर पड़ा? इस पर यादव ने कहा कि मुझे ऐसा नहीं लगता क्योंकि मनोज तिवारी भी बाहरी हैं। कन्हैया ने अपनी ड्यूटी बखूबी निभाई, लेकिन उनके पास बहुत कम समय था और उन्हें बहुत ज़्यादा जगह कवर करनी थी। दूसरी समस्याएं भी थीं, जैसे कि दूसरे पक्ष ने हमारे कार्यकर्ताओं को प्रभावित करने, हमारे नेताओं को लुभाने और मतदान के दिन लंबी कतारें लगाकर मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश की। लेकिन, मैं यह भी स्वीकार कर सकता हूं कि हमारा गठबंधन पर्याप्त मज़बूत नहीं था। गठबंधन को फिर से खड़ा करने की ज़रूरत है, इस गठबंधन को मज़बूत करने के लिए बहुत कुछ करने की ज़रूरत है।
धन संबंधी समस्या क्या थी? इस सवाल जबाव में दिल्ली कांग्रेस चीफ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारे पास धन की कमी है, लेकिन कई लोग ऐसे भी थे जो उम्मीदवारों के साथ-साथ पार्टी की मदद के लिए आगे आए।
लवली के जाने से पार्टी पर क्या प्रभाव पड़ा? इस पर यादव ने कहा कि इससे हमारे कार्यकर्ताओं पर कोई असर नहीं पड़ा, क्योंकि वे आदतन दलबदलू हो चुके थे। वे अपने साथ कुछ और आदतन दलबदलुओं को ले जाने के अलावा कुछ खास बदलाव नहीं कर सकते थे। लेकिन हां, अगर कोई प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष चुनाव के बीच में पार्टी छोड़ देता है, तो हमारी धारणा पर इसका असर पड़ना लाजिमी है।
पीछे मुड़कर देखें तो क्या अलग ढंग से किया जाना चाहिए था? इस सवाल के जबाव में उन्होंने कहा कि गठबंधन को मजबूत करने के साथ-साथ सामाजिक समूहों से जुड़ना भी जरूरी था। हमें समाज के अलग-अलग तबकों से जुड़ना होगा…हमने छोटे व्यापारियों, गांव के लोगों, पार्टी कार्यकर्ताओं, महिलाओं, शिक्षकों और प्रोफेसरों के साथ 4-5 टाउन हॉल चर्चाएं आयोजित कीं…हमने कोशिश की…लेकिन अब हमें इसे नियमित आधार पर करना होगा। अब से हम उम्मीदवारों की घोषणा भी पहले करने की कोशिश करेंगे, ताकि पार्टी का नेतृत्व करने का मौका जिसे भी मिले, चाहे मैं या कोई और, उसे पर्याप्त समय मिले।
बहुत सी जगहों पर मतदाताओं को गठबंधन के बारे में पता ही नहीं था और जब उन्हें ईवीएम पर अपनी पसंदीदा पार्टी का चुनाव चिन्ह नहीं मिला तो उन्होंने नोटा या भाजपा को वोट दे दिया। ऐसा क्यों हुआ? इस पर यादव ने कहा कि अभी इन मुद्दों पर टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी, लेकिन कहीं न कहीं हमारी कमी जरूर रही। हम इन चीजों को बेहतर ढंग से समझने के लिए बैठकें करेंगे।
विधानसभा चुनाव में क्या होगा? क्या कांग्रेस फिर से आप के साथ गठबंधन पर विचार करेगी? इस सवाल पर देवेंद्र ने कहा कि हम अभी तक नहीं जानते कि इससे हमें फ़ायदा हुआ है या नुकसान। इन बातों का और अधिक मूल्यांकन करने की ज़रूरत है, तभी हम कोई फ़ैसला ले पाएंगे।