भारत ने पाकिस्तान से टॉस में जीती थी शाही बग्घी, क्या इसी में सवार होकर अभिभाषण के लिए जाएंगीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू?
18वीं लोकसभा के लिए आज संसद में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का अभिभाषण होना है। संसद के पहले सत्र के दौरान राष्ट्रपति के अभिभाषण की परंपरा है। इसके बाद उनके अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव लाया जाता है। इस दौरान राष्ट्रपति शाही बग्घी में सवार होकर राष्ट्रपति भवन से संसद तक जा सकती हैं। जब प्रणव मुखर्जी देश के राष्ट्रपति थे तो कई मौकों पर वह इसका इस्तेमाल करते थे। आजादी से पहले वायसराय और आजादी के बाद के कई साल तक देश के राष्ट्रपति इस शाही बग्घी की सवारी करते आए हैं।
भारत में संविधान लागू होने के बाद 1950 में हुए पहले गणतंत्र दिवस समारोह में देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद बग्घी पर ही सवार होकर गणतंत्र दिवस समारोह में पहुंचे थे। यह बग्घी देखने में जितनी शाही नजर आती है उसे पाकिस्तान से जीतने की कहानी उतनी ही दिलचस्प है। भारत ने इस बग्घी को पाकिस्तान से टॉस में जीता था। आपको सुनने में यह अजीब लगे लेकिन यह सच है। इस बग्घी में जितना सोना लगा है उससे महंगी से महंगी कार खरीदी जा सकती है।
पाकिस्तान से टॉस में जीती थी बग्घी
1947 में देश की आजादी के समय भारत और पाकिस्तान के बीच संपत्ति को लेकप बंटवारा किया जा रहा था। दोनों देशों के बीच जमीन से लेकर सेना और अन्य सभी चीजों को बंटवारा होना था। इसके लिए नियम तय करने के लिए भारत के प्रतिनिधि एच. एम. पटेल और पाकिस्तान के चौधरी मुहम्मद अली को ये अधिकार दिया गया था। जब राष्ट्रपति के अंगरक्षकों की आई तो उन्हें दोनों देशों के बीच 2:1 के अनुपात से बांट दिया गया। आखिरी में वायसराय की बग्घी को लेकर दोनों देशों ने अपना-अपना दावा ठोक दिया। बग्घी को लेकर जब दोनों की देश अड़ गए तो इस विवाद को सुलझाने के लिए टॉस का सहारा लिया गया। उस दौरान राष्ट्रपति (तब वायसराय) के बॉडीगार्ड रेजिमेंट के पहले कमांडडेंट लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और पाकिस्तानी सेना के साहबजादा याकूब खान के बीच बग्घी को लेकर टॉस हुआ। टॉस में भारत की जीत हुई और बग्घी भारत के हिस्से में आ गई गई।
क्या है इस बग्घी की खासियत
राष्ट्रपति की बग्घी काफी खास है। इसमें सोने की परत चढ़ी है। अंग्रेजों के समय वायसराय इसका इस्तेमाल करते थे। सोने से सजी-धजी इस बग्घी के दोनों ओर भारत का राष्ट्रीय चिह्न सोने से अंकित है। इस बग्घी को खींचने के लिए खास घोड़े चुने जाते हैं। उस समय 6 ऑस्ट्रेलियाई घोड़े इसे खींचा करते थे लेकिन अब इसमें चार घोड़ों का ही इस्तेमाल किया जाता है। आजादी के बाद खास मौके पर इस बग्घी का इस्तेमाल देश के राष्ट्रपति भी करने लगे। आजादी के बाद शुरुआती सालों में भारत के राष्ट्रपति सभी सेरेमनी में इसी बग्घी से जाते थे और साथ ही 330 एकड़ में फैले राष्ट्रपति भवन के आसपास भी इसी से चलते थे। पहली बार इस बग्घी का इस्तेमाल भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र डॉ. प्रसाद ने 1950 में गणतंत्र दिवस के मौके पर किया था। यह सिलसिला 1984 तक जारी रहा।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुई बुलेटप्रूफ कार की एंट्री
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश के वीवीआईपी की सुरक्षा की समीक्षा की गई। राष्ट्रपति की सुरक्षा को देखने हुए बग्घी को हटा दिया गया। बग्घी की जगह बुलेटप्रूफ कार ने ले ली। कई सालों तक राष्ट्रपति बुलेटप्रूफ का ही इस्तेमाल करते रहे। हालांकि 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक बार फिर बग्घी का इस्तेमाल किया। वह बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम में शामिल होने के लिए इसी बग्घी में पहुंचे थे। इसके बाद 25 जुलाई 2017 के दिन रामनाथ कोविंद भी राष्ट्रपति पद की शपथ लेने राष्ट्रपति भवन से संसद तक बग्घी से ही पहुंचे। प्रणब से पहले पूर्व राष्ट्रपति रहे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और प्रतिभा पाटिल को भी कुछ खास मौकों पर इस बग्घी का इस्तेमाल करते देखा गया। इस साल गणतंत्र दिवस पर जब फ्रांस के राष्ट्रपति इमेन्युएल मैक्रों भारत आए तो राष्ट्रपति के साथ उन्होंने इस शाही बग्घी का लुत्फ उठाया था।