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पहले HC से इनकार, फिर सेशन कोर्ट देती रही तारीख, आखिर में फैसला हुआ रिजर्व, मेडिकल बेल तब मिली जब आरोपी ही ना रहा

जब जमानत मिली और अदालत का आर्डर जेजे अस्पताल ले जाया गया तो पता चला कि जो उम्रदराज शख्स इलाज के लिए जमानत मांग रहा था आदेश जारी होने से दो दिन पहले ही वो चल बसा।
Written by: shailendragautam
June 06, 2023 18:49 IST
पहले hc से इनकार  फिर सेशन कोर्ट देती रही तारीख  आखिर में फैसला हुआ रिजर्व  मेडिकल बेल तब मिली जब आरोपी ही ना रहा
Bombay High Court ( File Photo)
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कहते हैं कानून अंधा होता है। बॉम्बे की अदालतों के रवैये को देखें तो ये बात कुछ कुछ सही लगती है। धोखाधड़ी के मामले का एक आरोपी मरणासन्न हालत में था। उसका इलाज सरकारी जेजे अस्पताल में चल रहा था लेकिन हालत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी। उसने अपनी हालत की दुहाई देकर बॉम्बे हाईकोर्ट से बेल मांगी पर इनकार कर दिया गया। हालात और ज्यादा बिगड़ी तो वो दरख्वास्त लेकर सेशन कोर्ट में चला गया।

सेशन कोर्ट ने मामले की सुनवाई की। फिर चलता रहा तारीखों का सिलसिला। आखिर में फैसला रिजर्व हो गया। जब जमानत मिली और अदालत का आर्डर जेजे अस्पताल ले जाया गया तो पता चला कि जो उम्रदराज शख्स इलाज के लिए जमानत मांग रहा था आदेश जारी होने से दो दिन पहले ही वो चल बसा। वाकया सुनकर हर कोई हैरत में था। चर्चा थी कि अदालत मामले की गंभीरता को देख पहले फैसला ले लेती तो उसकी जान बच सकती थी।

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मरणासन्न शख्स ने 3 मई को लगाई थी बेल, 9 को हुई मौत और फैसला आया 11 को

एडिशनल सेशन जज विशाल गाइके ने 11 मई को छह माह की चिकित्सा जमानत आरोपी के फेवर में मंजूर की थी। लेकिन 9 मई को ही उसने दुनिया को अलविदा कह दिया था। अदालत की कार्यवाही पर गौर करें तो साफ है कि कैसे कानूनी दांव पेंचों ने सुरेश दत्ताराम पवार (62) की जान ले ली।

सुरेश दत्ताराम पवार को 2021 में धोखाधड़ी के आरोप में अरेस्ट किया गया था। शिकायतके मुताबिक उसने दो दर्जन से ज्यादा लोगों को जमीन की खरीद फरोख्त के नाम पर 2.5 करोड़ का चूना लगाया। पहले उसने 23 अप्रैल को बॉम्बे हाईकोर्ट से बेल मांगी। लेकिन याचिका खारिज हो गई।

पहले मिलती रहीं तारीखें, फिर शिकयतकर्ता ने लगा दिया अड़ंगा, आखिर में फैसला हुआ रिजर्व

फिर आरोपी ने 3 मई को सेशन कोर्ट में अर्जी लगाई। अगले दिन उसकी याचिका पर सुनवाई हुई। सारे पक्ष कोर्ट में मौजूद थे। कोर्ट ने प्रासीक्यूशन से मेडिकल रिपोर्ट दाखिल करने को कहा। मामले की सुनवाई 6 मई को तय की गई। सुनवाई वाले दिन प्रासीक्यूशन ने कोर्ट से कहा कि IO छुट्टी पर है लिहाजा तारीख दी जाए।

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कोर्ट में गुहार लगाता रहा आरोपी का वकील पर कानूनी नुक्तों में उलझ गया फैसला

8 मई को सुनवाई के दौरान पवार का वकील दलील देता रहा कि उसके क्लाइंट की हालत बहुत खराब है। लेकिन अदालत कोई फैसला लेती कि शिकायतकर्ता ने Intervention Application दाखिल करके बेल एप्लीकेशन का विरोध किया। कोर्ट ने फैसला रिजर्व कर लिया। 10 मई को कोर्ट बिजी थी। लिहाजा कोर्ट 11 मई को फैसला सुना सकी। सुरेश पवार के लिए जब इंसाफ आया तो 2 दिन पहले वो मर चुका था। मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक पवार को फेफड़ों और किडनी की बीमारी थी। उसे हाई शुगर भी थी। जेल में लगी एक चोट के बाद उसका पैर भी काटना पड़ा था।

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