Lok Sabha Chunav 2024: मोदी-काल की सबसे बड़ी हार के बाद योगी आदित्यनाथ को लेकर उठे ये चार बड़े सवाल
लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश के नतीजे बीजेपी की उम्मीद के बिल्कुल खिलाफ गए हैं। लोकसभा की सभी 80 सीटें जीतने का दावा करने वाली बीजेपी पिछले बार के प्रदर्शन से भी काफी नीचे रही है। 2019 में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में 62 सीटें जीती थी लेकिन इस बार वह सिर्फ 33 सीटें ही जीत सकी।
इन चुनाव नतीजों को लेकर सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। योगी आदित्यनाथ को लेकर उनके प्रशंसक कहते हैं कि वे 2029 में प्रधानमंत्री बनेंगे लेकिन इन चुनाव नतीजों ने योगी के सियासी करियर को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या ये चुनाव नतीजे योगी के सियासी करियर पर असर डालेंगे?
उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बड़ी जीत दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी पूरा जोर लगाया था लेकिन यहां जीत का बड़ा दारोमदार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी था।
भाजपाई मुख्यमंत्रियों के बीच घटेगा बुलडोजर बाबा के नाम से मशहूर योगी का रुतबा?
योगी आदित्यनाथ पिछले कुछ सालों में बीजेपी में हिंदुत्व की राजनीति के फायर ब्रांड चेहरे के रूप में उभरकर सामने आए हैं। सोशल मीडिया पर उन्हें बुलडोजर बाबा के नाम से काफी लोकप्रियता मिली है। 2017 में जब से योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया है, भाजपा उन्हें लगातार तमाम कई राज्यों में स्टार प्रचारक के रूप में जनता के बीच भेजती रही है। इस लोकसभा चुनाव में भी योगी ने 15 से ज्यादा राज्यों में पार्टी के लिए चुनाव प्रचार किया।
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भाजपा शासित राज्यों के तमाम मुख्यमंत्रियों के बीच योगी आदित्यनाथ की अपनी अलग सियासी पहचान और वजूद है। इसकी वजह यह भी है कि वह भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। गोरखनाथ मंदिर के महंत हैं और पीठाधीश्वर भी हैं।
सोशल मीडिया पर उनकी फॉलोइंग मुख्यमंत्री से ज्यादा एक बड़े फायर ब्रांड हिंदू नेता की है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि योगी आदित्यनाथ का सियासी कद बीजेपी शासित राज्यों के तमाम मुख्यमंत्रियों से थोड़ा ऊंचा है।
लेकिन लोकसभा चुनाव में जिस तरह के नतीजे उत्तर प्रदेश से सामने आए हैं, उससे यह सवाल जरूर खड़ा होता है कि क्या योगी आदित्यनाथ की अब वैसे ही सियासी हैसियत भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच रहेगी, क्या उनकी उसी तरह से चुनाव प्रचार में डिमांड होगी, जैसी अब तक होती रही है।
खास कर तब जब मध्य प्रदेश में नए मुख्यमंत्री मोहन यादव के सत्ता संभालने के कुछ ही महीनों बाद भाजपा ने मध्य प्रदेश में लोकसभा की सभी 29 सीटें जीती हैं। भाजपा शासित राजस्थान में भी लोकसभा चुनाव में पार्टी को करीब 40 फीसदी सीटों का नुकसान हुआ, जबकि यूपी का नुकसान 50 फीसदी से भी ऊपर का रहा।
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बीजेपी के लिए उपयोगी रहेंगे योगी आदित्यनाथ?
उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को पार्टी का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई चुनावी सभाओं में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कामकाज की तारीफ की थी और उन्हें उपयोगी मुख्यमंत्री बताया था।
गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी योगी आदित्यनाथ के कामकाज के स्टाइल की प्रशंसा करते रहे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के इन ताजा चुनाव नतीजों के बाद क्या वह केंद्रीय नेतृत्व की नजर में उतने ही उपयोगी रहेंगे, जितने वह इससे पहले हुआ करते थे। इस सवाल का जवाब भी आने वाले कुछ महीनों में मिलेगा।
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2027 के विधानसभा चुनाव में भी योगी होंगे चेहरा?
उत्तर प्रदेश में ढाई साल बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश सियासी लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। 80 लोकसभा सीटों वाले इस प्रदेश में बीजेपी 2017 और 2022 में विधानसभा का चुनाव जीत चुकी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सपा-बसपा और रालोद के मजबूत गठबंधन के सामने लड़ते हुए भी अच्छा प्रदर्शन किया था और इसे देखते हुए ही पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने 2022 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ पर भरोसा जताया था और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह का प्रदर्शन भाजपा का रहा है, क्या उसके बाद पार्टी का शीर्ष नेतृत्व 2027 के विधानसभा चुनाव में भी योगी आदित्यनाथ पर भरोसा करेगा, यह भी एक बड़ा सवाल है।
हार्डकोर हिंदुत्व की राजनीति से पीछे हटेंगे योगी?
योगी आदित्यनाथ अपनी हार्डकोर हिंदुत्व की राजनीति के लिए जाने जाते हैं। इस लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान भी योगी आदित्यनाथ के भाषणों में हिंदू-मुस्लिम वाले मुद्दे छाए रहे। उन्होंने कई बार पाकिस्तान का नाम लेकर कुछ लोगों को वहां चले जाने को कहा। योगी आदित्यनाथ पर विपक्षी नेता आरोप लगाते हैं कि वह अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के खिलाफ नफरत की राजनीति करते हैं और योगी सरकार बुलडोजर चला कर उनके घरों को तोड़ती है।
बुलडोजर पॉलिटिक्स को लेकर योगी आदित्यनाथ अक्सर विपक्षी दलों के निशाने पर रहे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में लोकसभा के चुनाव नतीजों के बाद क्या हिंदुत्व की राजनीति करने वाले योगी आदित्यनाथ अपनी राजनीतिक लाइन को बदलने पर मजबूर होंगे? क्या वह विकास और अपनी सरकार के कामकाज के मुद्दों पर बात करेंगे? खास कर तब जब अयोध्या में भी भाजपा उम्मीदवार की हार हो गई है।
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अयोध्या में भी मिली हार
उत्तर प्रदेश में बीजेपी को अयोध्या जैसी उस सीट पर भी हार का सामना करना पड़ा है, जहां राम मंदिर का निर्माण हुआ है। बीजेपी ने चुनाव प्रचार के दौरान राष्ट्रवाद से जुड़े तमाम मुद्दों और राम मंदिर निर्माण को चुनाव प्रचार के केंद्र में रखा था। लेकिन चुनाव नतीजों को देखकर ऐसा लगता है कि हिंदुत्व की राजनीति का फायदा बीजेपी को इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में नहीं मिला है।
इसके बजाय समाजवादी पार्टी और विपक्षी गठबंधन की जातीय समीकरणों को साधने वाली राजनीति उनके लिए फायदेमंद रही है। पिछली बार एक सीट जीतने वाली कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 6 सीटों पर जबकि 5 सीट जीतने वाली समाजवादी पार्टी 37 सीटों पर चुनाव जीती है।
![Mallikarjun Kharge Rahul gandhi](https://www.jansatta.com/wp-content/uploads/2024/06/Mallikarjun-Kharge-1.jpg?w=850)
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजों से गदगद हैं और 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए नई ऊर्जा और नई ताकत के साथ तैयार हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में योगी आदित्यनाथ के सामने चुनौतियों का अंबार है और देखना होगा कि योगी इन चुनौतियों से कैसे निपटते हैं।