West Bengal Lok Sabha Chunav 2024: तृणमूल को 2021 में मिले थे 75 फीसदी मुस्लिम वोट, 2024 में किस ओर जाएंगे मुसलमान?
पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं। इनमें से 13 ऐसी हैं, जहां मुस्लिम समुदाय की आबादी 32 से 64 फीसदी तक है। राज्य में 20 लोकसभा सीटों पर हिंंदुओं की आबादी 35 से 50 फीसदी तक है। बीजेपी ने 2019 में 18 सीटें जीती थीं और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने 22। दक्षिण बंगाल को छोड़ बाकी हिस्सों में बीजेपी ने अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली थी। इस बार तृणमूल को अपनी सीटें बढ़ाने के लिए और ज्यादा मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में करना होगा।
2021 के विधानसभा चुनाव में करीब 75 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं ने तृणमूल के पक्ष में मतदान किया था। लोकनीति-सीएसडीएस ने उस चुनाव के बाद एक सर्वे किया था, जिसमें 29.5 प्रतिशत लोगों ने इस कथन से पूर्ण सहमति जताई थी कि ममता बनर्जी सरकार मुस्लिमों को जरूरत से ज्यादा फायदे पहुंचाती है।
पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी 30% है। इसलिए हर राजनीतिक दल चाहता है कि इतने बड़े वोट बैंक को अपने कब्जे में किया जाए। लेकिन सवाल यह है कि बंगाल में मुस्लिम मतदाता किस ओर जाएंगे?
पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतों के सबसे बड़े दावेदार टीएमसी, कांग्रेस और वाम दल हैं लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) नाम का एक संगठन भी मैदान में उतरा था। आईएसएफ इस बार लोकसभा चुनाव भी लड़ रहा है।
2024 Lok Sabha Chunav: मुस्लिम वोट अपने पाले में लाने की कोशिश
2024 में कांग्रेस, वाम दलों का गठबंधन भी मुस्लिम वोट चाहता है लेकिन टीएमसी प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह अपने पाले में रखना चाहती हैं। चुनाव प्रचार के दौरान ममता बनर्जी कांग्रेस, वाम दलों पर आरोप लगा चुकी हैं कि वे अल्पसंख्यक वोटों को बांटने की कोशिश कर रहे हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में सीधा मुकाबला बीजेपी और टीएमसी के बीच दिखाई देता है क्योंकि पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि तब चुनावी लड़ाई इन दोनों दलों के बीच ही सिमट गई थी। आइए, नजर डालते हैं कि बंगाल में पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के नतीजे क्या रहे थे।
West Bengal Election 2019: बीजेपी 2 से 18 तक पहुंची
पश्चिम बंगाल में हुए पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 18 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी जबकि 2014 के चुनाव में उसने सिर्फ दो सीटें जीती थी। बीजेपी ने इस बार राज्य में 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है जबकि टीएमसी भी अपने पिछले प्रदर्शन (22) में सुधार करना चाहती है।
2021 West Bengal Election: बीजेपी-टीएमसी के बीच सिमटा था मुकाबला
2021 के विधानसभा चुनाव को देखें तो राज्य की 294 सीटों में से टीएमसी को 215 सीटों पर जीत मिली थी जबकि पूरी ताकत लगाने के बाद भी बीजेपी 77 सीटें ही हासिल कर सकी थी। तब चुनावी मुकाबला पूरी तरह बीजेपी और टीएमसी के बीच सिमट गया था और सीपीएम और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका था। जबकि कांग्रेस, वाम दलों और आईएसएफ ने मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था।
West Bengal Muslim Population: बहरामपुर में 52 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता
पश्चिम बंगाल में- बहरामपुर, जंगीपुर, मुर्शिदाबाद, रायगंज, मालदा (दक्षिण), मालदा (उत्तर), बशीरहाट, जादवपुर, बीरभूम, कृष्णनगर, डायमंड हार्बर, जयनगर और मथुरापुर सीटों पर मुस्लिम समुदाय की आबादी 32 से 64 फीसदी तक है। इनमें से भी बहरामपुर में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 52 प्रतिशत है।
TMC West Bengal: टीएमसी को मिले थे 75% वोट
पश्चिम बंगाल की राजनीति में 2016 से पहले मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन कांग्रेस और वाम दलों के साथ था। लेकिन सीएसडीएस के सर्वे से पता चलता है कि टीएमसी को 2016 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में 51% मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन मिला था जो 2021 के विधानसभा चुनाव में बढ़कर 75% हो गया जबकि बीजेपी के पक्ष में हिंदू मतदाताओं का ध्रुवीकरण हुआ।2 साल में कम हुए 7% वोट
West Bengal BJP: 2 साल में बीजेपी के 7% वोट हुए कम
सीएसडीएस के मुताबिक, 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हिंदू मतदाताओं के 12% वोट मिले थे जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा बढ़कर 57% हो गया था लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में इसमें गिरावट आई और यह गिरकर 50% पर आ गया।
आंकड़ों से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाता टीएमसी की ओर गए हैं जबकि हिंदू मतदाताओं का झुकाव बीजेपी की ओर बढ़ा है।
Indian Secular Front: आईएसएफ कितना असर डालेगा?
आईएसएफ के संस्थापक पीरजादा अब्बास सिद्दीकी हैं, जो पश्चिम बंगाल के हुगली में मुसलमानों की आस्था के बड़े केंद्र फुरफुरा शरीफ के मुखिया हैं। 2021 के चुनाव में आईएसएसएफ को बड़ी सफलता नहीं मिली और उसका एक ही विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंचा।
इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और वाम दलों ने चुनावी गठबंधन किया है तो आईएसएफ 14 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। इन सभी लोकसभा सीटों पर मुस्लिमों की अच्छी-खासी आबादी है। अगर कांग्रेस, वाम दलों के गठबंधन और आईएसएफ के बीच मुस्लिम वोटों का बंटवारा होता है तो निश्चित रूप से इससे टीएमसी को नुकसान होगा।
West Bengal CAA Protest: सीएए है बड़ा चुनावी मुद्दा
मुस्लिम मतों को पूरी तरह अपने पाले में करने के लिए टीएमसी की मुखिया और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पूरी ताकत झोंक रही है। लोकसभा चुनाव के एलान से ठीक पहले जब मोदी सरकार ने सीएए को लेकर अधिसूचना जारी की तो उसका अन्य विपक्षी दलों के साथ ही ममता बनर्जी ने भी पुरजोर विरोध किया।
2019 में जब मोदी सरकार सीएए लाई थी तब भी पश्चिम बंगाल में इसके खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए थे। चुनाव प्रचार के दौरान ममता बनर्जी सीएए को लेकर मोदी सरकार पर लगातार हमला बोल रही हैं। चुनाव प्रचार के दौरान ममता बनर्जी ने मुस्लिम मतदाताओं को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि वह राज्य के अंदर अकेली ऐसी नेता हैं, जो बीजेपी को सत्ता में आने से रोक सकती हैं।
ममता अपनी चुनावी सभाओं में इस बात को जोर-शोर से कहती हैं कि जब तक वह जिंदा हैं तब तक बंगाल में बंटवारा करने वाली ताकतों को आगे नहीं बढ़ने देंगी। ऐसा कहकर वह सीधे भाजपा पर हमला करती हैं।
दूसरी ओर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पश्चिम बंगाल में अपनी चुनावी सभाओं में कहते हैं कि ममता बनर्जी सीएए का विरोध इसलिए कर रही हैं क्योंकि उन्हें अपने वोट बैंक की चिंता है और वे तुष्टिकरण की राजनीति कर रही हैं।
Ram Mandir Politics: राम मंदिर निर्माण दिलाएगा वोट?
बीजेपी के तमाम नेता चुनावी जनसभाओं में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को भी पुरजोर ढंग से उठाते हैं। बीजेपी को उम्मीद है कि राम मंदिर निर्माण के नाम पर यहां उसे हिंदू मतदाताओं के वोटों का एक बड़ा हिस्सा मिल सकता है। पश्चिम बंगाल में लगभग 20 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर हिंदू मतदाताओं की आबादी 35 से 50% तक है।