क्या भ्रष्टाचार का भी हो रहा 'विकास'? पूरा होने से पहले या उद्घाटन के कुछ ही समय बाद गिर रहे पुल व अन्य कई निर्माण
बिहार में बीते कई दिनों में एक के बाद एक पुल गिरे हैं। आम जनता के लिए यह जानना जरूरी है कि इन पुलों के निर्माण में किस तरह की सामग्री का इस्तेमाल हो रहा है। सरकार निर्माण कार्यों की निगरानी क्यों नहीं करती। सवाल यह भी उठता है कि क्या ठेकेदारों और सरकारी अधिकारियों के बीच मिलीभगत की वजह से ऐसा हो रहा है।
इस वजह से न सिर्फ जनता की मेहनत का पैसा बर्बाद होता है बल्कि लोगों की सुरक्षा को भी खतरा होता है। ऐसे में सरकारों को चाहिए कि निर्माण परियोजनाओं की निगरानी हो और दोषी अफसरों और ठेकेदारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
13 दिन में छह पुल गिरे
बिहार में पिछले 13 दिन में ही छह पुल गिर गए हैं। इससे पहले भी देश भर में कई ऐसी घटनाएं हुई जब उद्घाटन के कुछ ही महीनों या सालों के भीतर निर्माण के ढहने या गिरने की खबर आ गई।
इस तरह की घटनाओं की वजह से सरकारों के कामकाज पर सवाल तो उठे ही, यह भी सवाल उठा कि जनता के टैक्स के पैसे से बने बन रहे इन पुलों या किसी अन्य निर्माण के गिरने का जिम्मेदार कौन है और आखिर इसकी भरपाई किस तरह की जाएगी। बड़ी संख्या में लोगों ने कहा कि सरकारी महकमों में हो रहा भ्रष्टाचार इसके लिए जिम्मेदार है।
आइए, कुछ ऐसी घटनाओं को देखते हैं जिनमें उद्घाटन से पहले या उद्घाटन के कुछ सालों के भीतर कहां-कहां इस तरह की घटनाएं हुई हैं।
सबसे ताजा मामला किशनगंज के ठाकुरगंज ब्लॉक का है। यहां पर खोसीडांगी गांव में बन रहा पुल धंस गया और इस वजह से 60 हजार लोगों पर सीधा असर पड़ा है। यह पुल बूंद नदी पर 2009-10 में 35 लाख की लागत से बनाया गया था।
इसके बाद झारखंड के गिरिडीह जिले के देवरी प्रखंड में अरगा नदी पर बन रहे पुल का गर्डर टूट कर गिर गया जबकि एक और पिलर टेढ़ा हो गया। यह पुल कारीपहरी गांव में 5.5 करोड़ की लागत से बन रहा था। यह पुल मानसून की पहली बारिश को भी नहीं झेल सका।
28 जून की सुबह दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के टर्मिनल-1 पर छत का एक हिस्सा गिर गया था। इस हादसे में एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। इस घटना को लेकर विपक्षी दलों ने मोदी सरकार पर हमला बोला था। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने इस घटना की जांच का आदेश दिया था।
मथुरा में 30 जून को कृष्णा बिहार कॉलोनी में शाम को 6 बजे पानी की एक टंकी गिर गई थी। इसमें दो लोगों की मौत हो गई थी और 12 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए थे। यह टंकी सिर्फ तीन साल पहले ही बनी थी।
29 जून को बिहार के मधुबनी में भुतही नदी पर निर्माणाधीन पुल का गार्डर (बीम) गिर गया। करीब तीन करोड़ की लागत से बन रहे इस पुल का निर्माण चार साल से हो रहा था। पुल की कुल लंबाई 75 मीटर थी लेकिन इसका 25 मीटर हिस्सा ढह गया था।
बिहार में एक के बाद एक हो रही पुल के गिरने की घटनाओं को लेकर नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने सवाल उठाए थे।
उद्घाटन के तीन महीने बाद ही ढह गई छत
जबलपुर में डुमना एयरपोर्ट के नए विस्तारित टर्मिनल पर 27 जून को भारी बारिश के कारण छत का एक हिस्सा ढह गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन महीने पहले ही इस एयरपोर्ट का उद्घाटन किया था।
22 जून को बिहार के सीवान जिले में एक छोटा पुल ढह गया था। इससे पहले पूर्वी चंपारण जिले में 23 जून को एक निर्माणाधीन छोटा पुल भी गिर गया था। 16 मीटर लंबा यह पुल 1.5 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा था।
18 जून को अररिया जिले में पुल ढहने की घटना हुई थी। यह पुल बकरा नदी के पड़रिया घाट पर बन रहा था। पुल के दो पिलर ध्वस्त हो गए थे जबकि एक पाया नदी में धंस गया था। पुल का निर्माण लगभग पूरा हो गया था और इस पर आठ करोड़ रुपये खर्च हो चुके थे।
तेलंगाना में 49 करोड़ की लागत का पुल गिरा
तेलंगाना के पेद्दापल्ली जिले में अप्रैल महीने में एक निर्माणाधीन पुल ढह गया था। इस पुल का शिलान्यास 8 साल पहले हुआ था और इसके निर्माण के लिए 49 करोड़ का बजट रखा गया था। पुल के भुगतान की राशि में देरी होने के कारण इसका निर्माण कार्य रुका था।
22 मार्च 2024 को बिहार के सुपौल में कोसी नदी पर निर्माणाधीन एक और पुल गिर गया था। इस पुल का निर्माण 1200 करोड़ रुपये की लागत से किया जा रहा था।
मई, 2023 में बायसी प्रखंड के चंद्रगामा पंचायत में सलीम चौक के पास एक पुल गिर गया था। इस घटना में कई मजदूर घायल भी हुए थे।
जून, 2023 को अगुवानी गंगा घाट पर निर्माणाधीन पुल के पिलर नंबर 10, 11 और 12 नदी में बह गए थे। 19 फरवरी, 2023 को पटना के सरमेरा में फोर लेन पुल गिर गया था।
18 नवंबर, 2022 को बिहार के नालंदा जिले में एक निर्माणाधीन पुल गिर गया था। पुल गिरने से 1 शख्स की मौत हो गई थी। जुलाई, 2022 में बिहार के कटिहार जिले में भी एक निर्माणाधीन पुल गिर गया था और पुल गिरने से 10 मजदूर घायल हो गए थे।
इस तरह की तमाम घटनाओं में बड़ी संख्या में लोगों को अपनी जान तो गंवानी ही पड़ी, सरकारी पैसा भी बर्बाद हुआ है। लेकिन सवाल फिर वही आकर खड़ा होता है कि आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है और ऐसे लोगों को कब कानून के दायरे में लाकर सजा दी जाएगी।