Khadoor Sahib Lok Sabha Election: क्या असम की जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृतपाल खडूर साहिब में दोहराएगा लुधियाना का इतिहास?
पंजाब की खडूर साहिब लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहा अमृतपाल सिंह भले ही अपने निर्वाचन क्षेत्र से 2300 किमी. दूर हो लेकिन यहां उसके पक्ष में कुछ हलचल जरूर है। अमृतपाल सिंह खालिस्तान समर्थक वारिस पंजाब दे नाम के संगठन का मुखिया है और इन दोनों असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद है।
Amritpal Singh: अमृतपाल के खिलाफ हैं सुखबीर बादल
31 साल के अमृतपाल सिंह के चुनाव मैदान में उतरने के बाद शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल उसकी उम्मीदवारी को पंजाब को अस्थिर करने की एक खतरनाक साजिश बता चुके हैं। खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र माझा इलाके में पड़ता है।
जब आप माझा इलाके के कुछ गांवों के प्रवेश द्वार पर पहुंचते हैं तो वहां पर इस तरह के बैनर लगे हुए हैं कि अमृतपाल सिंह के अलावा अन्य उम्मीदवार यहां से दूर रहें।
आर्मी में जाने की तैयारी कर रहे ग्रेजुएट छात्र जगमीत सिंह कहते हैं कि अमृतपाल केवल ड्रग्स के खिलाफ अपनी बात रख रहा था लेकिन उसे सलाखों के पीछे डाल दिया गया।
अमृतपाल खालिस्तान समर्थक तत्वों की एक आवाज बनकर पंजाब में सामने आया था लेकिन उसके समर्थकों के द्वारा एक पुलिस थाने पर हमला करने के बाद उस पर एनएसए लगा दिया गया।
फिरोजपुर शहर में रहने वाले मनमीत सिंह कहते हैं कि अमृतपाल सिंह को यहां पर समर्थन मिलने की वजह सरकार का उसके मामले को ज्यादा तूल देना है। वह कहते हैं कि किस तरह अमृतपाल को पकड़ने के लिए ऑपरेशन चलाया गया। यहां एक हफ्ते से ज्यादा वक्त तक इंटरनेट बंद कर दिया गया था और ऐसे युवा जिन्होंने सिर्फ उसके ट्वीट को रिट्वीट किया था, उन्हें भी पकड़ लिया गया।
Khadoor Sahib: खडूर साहिब के कुछ इलाकों में मिल रहा समर्थन
तरनतारन के नजदीक चब्बल कलां गांव में स्थित एक गुरुद्वारे में आए पंजाब पुलिस के एक कर्मचारी इस बात को स्वीकार करते हैं कि खडूर साहिब के कुछ इलाकों में अमृतपाल को समर्थन मिल रहा है। वह कहते हैं कि अमृतपाल सिंह के साथ काफी नाइंसाफी हुई है।
गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर में प्रोफेसर अमरजीत सिंह कहते हैं कि अमृतपाल को मिल रहे समर्थन को खालिस्तान के समर्थन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
प्रोफेसर अमरजीत सिंह इसे पंजाब के लोगों की किसी भी तरह की नाइंसाफी के खिलाफ खड़े होने से जोड़कर देखते हैं। वह कहते हैं कि अगर आप पंजाब के इतिहास को देखें तो यहां के लोग या तो उन लोगों के साथ खड़े मिलेंगे जो किसी तरह की नाइंसाफी का सामना कर रहे हैं या फिर उन लोगों के साथ जो मनमानी के खिलाफ खड़े हैं।
Amarinder Singh: जेटली को हराया था अमरिंदर सिंह ने
प्रोफेसर अमरजीत सिंह के मुताबिक, कुछ ऐसा ही माहौल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी बना था। तब जबरदस्त मोदी लहर के बाद भी अमृतसर से कांग्रेस के उम्मीदवार अमरिंदर सिंह ने बीजेपी के उम्मीदवार अरुण जेटली को हरा दिया था। तब अमरिंदर सिंह ने केंद्र के द्वारा 2004 में किए गए जल बंटवारे के सभी समझौतों को रद्द करने का मुद्दा उठाया था।
शिअद (मान) को मिली थी जीत
वह बताते हैं कि 1989 में भी ऐसा ही हुआ था जब कट्टरपंथी दल शिरोमणि अकाली दल (मान) के द्वारा चुनाव मैदान में उतारे गए या इसके द्वारा समर्थित उम्मीदवारों को जीत मिली थी। तब शिरोमणि अकाली दल (मान) ने पुलिस ज्यादती का आरोप लगाया था। तब एक उम्मीदवार राजिंदर कौर भी थीं जिनके पति को एक एनकाउंटर में मार दिया गया था और इस एनकाउंटर की कभी जांच ही नहीं की गई।
राजिंदर कौर लुधियाना लोकसभा सीट से चुनाव जीती थीं और इससे पहले उन्हें राजनीति का कोई अनुभव नहीं था।
Sarabjit Singh: फरीदकोट से चुनाव लड़ रहा सरबजीत सिंह
अमृतपाल के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह का बेटा सरबजीत सिंह फरीदकोट सीट से चुनाव मैदान में है। सरबजीत सिंह अपने ‘खोए हुए बचपन और जवानी’ को लेकर सहानुभूति वोट मांग रहा है।
सरबजीत सिंह की मां बिमल कौर खालसा लोकसभा का चुनाव जीत चुकी हैं जबकि सरबजीत तीन बार चुनाव लड़ चुका है लेकिन आज तक उसे जीत नहीं मिली।
अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर एक शख्स कहते हैं कि सरबजीत के परिवार ने बहुत त्याग किया है और वह उसे ही वोट देंगे।
Simranjit Singh Mann: सिमरनजीत सिंह मान संगरूर से हैं मैदान में
शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान अमृतपाल सिंह का समर्थन कर रहे हैं। सिमरनजीत सिंह मान खुद भी संगरूर से चुनाव लड़ रहे हैं और इस सीट से मौजूदा सांसद भी हैं। सिमरनजीत सिंह मान को भी जेलों में बंद सिख कैदियों की रिहाई की उनकी पुरानी मांग को लेकर समर्थन मिल रहा है।
पंजाब में ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें इन सब बातों की वजह से आतंकवाद का दौर याद आता है। खडूर साहिब में रहने वाले जगरूप सिंह सेखों कहते हैं कि इस लोकसभा क्षेत्र के लोगों ने आतंकवाद के दौर के सालों में खुद को आतंकवादियों और पुलिस की ज्यादतियों के बीच फंसा हुआ पाया। वह कहते हैं कि अमृतपाल सिंह के हक में उठ रही आवाज़ें तेज होने की वजह से मजबूत दिखाई दिखती हैं लेकिन यहां विपक्ष काफी मजबूत है।
जगरूप सिंह सेखों कहते हैं कि चुनाव जीतने के लिए आपको चुनाव मशीनरी और विचारधारा की जरूरत होती है लेकिन अमृतपाल सिंह के पास कुछ भी नहीं है।
एक ग्रामीण नवप्रीत सिंह कहते हैं कि अमृतपाल सिंह लगातार अपने बयान बदलता रहता है, हम उस पर भरोसा नहीं कर सकते। एक बुजुर्ग कहते हैं कि अमृतपाल सिंह चुनाव मैदान में खड़े बाकी 100 उम्मीदवारों में से एक है, पंजाब शांति और विकास चाहता है।
Taran Taran Lok Sabha: कांग्रेस का गढ़ था तरनतारन
खडूर साहिब लोकसभा सीट को पहले तरनतारन के नाम से जाना जाता था। 1977 में यहां से शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार मोहन सिंह तूर को जीत मिली थी। उससे पहले यह सीट कांग्रेस का गढ़ थी। 2019 में यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार जसवीर सिंह डिंपा जीते थे और अकाली दल की उम्मीदवार और एसजीपीसी की पूर्व अध्यक्ष बीबी जागीर कौर दूसरे नंबर पर रही थीं। मानवाधिकार कार्यकर्ता जसवंत सिंह खलारा की पत्नी बीबी परमजीत कौर खलारा तीसरे नंबर पर आई थीं।
कट्टरपंथी उम्मीदवारों को लेकर सवाल पूछने पर भारत-पाकिस्तान सीमा के नजदीक रहने वाले पिछौड़ा सिंह कहते हैं कि पंजाब में कई ऐसे मुद्दे हैं जो अब तक हल नहीं हुए हैं। चाहे नदियों के पानी का मुद्दा हो, राजनीतिक कैदियों का हो या 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों को इंसाफ का हो, सरकार को पहले इन मुद्दों को सुलझाना चाहिए। वह कहते हैं कि माहौल खराब नहीं होना चाहिए।