Akash Anand: चंद्रशेखर आजाद की 'चुनौती' की वजह से मायावती को फिर से आकाश को देनी पड़ी जिम्मेदारी?
लोकसभा चुनाव में सबसे खराब प्रदर्शन के कुछ ही हफ्ते बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती ने रविवार को एक बड़ा फैसला लिया। उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद पर बहाल किया और उन्हें अपना एकमात्र राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बताया। मायावती ने पार्टी के नेताओं से अपील की कि वे आकाश आनंद को पहले से ज्यादा सम्मान दें।
मायावती ने आकाश आनंद को 2019 में नेशनल कोआर्डिनेटर बनाया था और पिछले साल दिसंबर में उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी घोषित किया था। लेकिन पिछले महीने उन्हें हटा दिया था।
बीएसपी के नेताओं का कहना है कि उन्हें इस बात का पूरा भरोसा था कि आकाश आनंद को फिर से बहाल किया जाएगा लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि मायावती यह फैसला इतनी जल्दी ले लेंगी।
पार्टी के अंदर कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि मायावती के इस फैसले के पीछे वजह नगीना से चंद्रशेखर आजाद का चुनाव जीतना है। क्योंकि चंद्रशेखर आजाद बहुजन आंदोलन में एक ताकतवर विकल्प के रूप में उभर रहे हैं।
ढाई साल बाद हैं यूपी में विधानसभा चुनाव
सवाल यह है कि आकाश आनंद को फिर से बसपा में बड़ी जिम्मेदारी दिए जाने का क्या मतलब है। खासकर ऐसे वक्त में जब उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं और राज्य में 2027 में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं।
आकाश आनंद को क्यों हटाया गया?
7 मई को बसपा सुप्रीमो मायावती ने आकाश आनंद को हटा दिया था और कहा था कि उन्होंने यह फैसला पार्टी और मूवमेंट के व्यापक हित में लिया है और यह फैसला तब तक प्रभावी रहेगा जब तक आकाश आनंद पूरी तरह परिपक्व नहीं हो जाते।
इससे पहले उत्तर प्रदेश पुलिस ने आकाश आनंद के खिलाफ सीतापुर में मुकदमा दर्ज किया था क्योंकि एक भाषण के दौरान आकाश ने बीजेपी सरकार को आतंकवादियों की सरकार कहा था।
नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद से हटाए जाने के बाद आकाश आनंद ने लोकसभा चुनाव के बीच में ही प्रचार करना बंद कर दिया था और तब मायावती ने अकेले ही पार्टी के प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया था।
बसपा को लोकसभा चुनाव में हारे अपने प्रत्याशियों से फीडबैक मिला है कि अगर आकाश आनंद चुनाव प्रचार जारी रखते तो जाटव और मुस्लिम तबके का एक वर्ग लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन का समर्थन नहीं करता।
मायावती ने लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान मुख्य रूप से सपा और कांग्रेस को निशाने पर रखा था जबकि आकाश आनंद ने बीजेपी को शिक्षा, गरीबी, अर्थव्यवस्था और कानून और व्यवस्था के मुद्दे पर घेरा था। बीएसपी के नेताओं का कहना है कि आकाश के चुनाव प्रचार से हटने के बाद दलितों और मुसलमानों के बीच यह संदेश गया कि मायावती ने बीजेपी के दबाव के आगे घुटने टेक दिए हैं।
बसपा नेता बोले- बीजेपी की बी टीम होने का टैग हटेगा
बसपा के एक नेता ने कहा कि आकाश आनंद को फिर से जिम्मेदारी मिलने के बाद बसपा से बीजेपी की बी टीम होने का टैग हटाने में मदद मिलेगी। साथ ही बसपा के कोर वोट बैंक जाटव और दलित समुदाय के अन्य तबकों के बीच फिर से भरोसा बहाल करने में भी मदद मिलेगी और लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद निराश हो चुके हमारे कैडर को भी ऊर्जा मिलेगी।
आकाश आनंद की बहाली और चंद्रशेखर आजाद की जीत
बीएसपी के कई जानकारों का कहना है कि मायावती ने यह फैसला आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद को नगीना लोकसभा सीट से जीत मिलने की वजह से लिया है। बसपा 2019 में नगीना लोकसभा सीट से चुनाव जीती थी हालांकि तब उसने चुनाव सपा और आरएलडी के साथ मिलकर लड़ा था।
बसपा को नहीं मिली एक भी सीट, वोट शेयर भी गिरा
2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा एक भी सीट नहीं जीत सकी और उत्तर प्रदेश में उसका वोट शेयर गिरकर 19.3% से 9.3% हो गया। ऐसा लगता है कि चंद्रशेखर आजाद को दलित और मुस्लिम समुदाय की ओर से मिल रहे समर्थन के बाद ही आकाश आनंद को जल्दी में बहाल करने का फैसला लिया गया है।
चंद्रशेखर आजाद ने इस लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं किया और नगीना लोकसभा सीट पर 1.53 लाख वोटों से जीत हासिल की। नगीना में बसपा चौथे नंबर पर रही है।
बसपा के एक नेता ने कहा, ‘बसपा के पास अब कोई भी लोकसभा सांसद नहीं है और चंद्रशेखर आजाद ही देशभर में घूमते हुए लोकसभा में दलितों और मुसलमानों के मुद्दों को उठाएंगे और इससे चंद्रशेखर आजाद को एक दलित नेता के रूप में उभरने और मायावती का विकल्प बनने में मदद मिलेगी, इससे बसपा और कमजोर होगी। इस नुकसान को रोकने के लिए ही आकाश आनंद का लौटना बेहद जरूरी था।’
दलित, ओबीसी और मुस्लिम नेता बसपा से हुए दूर
लोकसभा चुनाव में बसपा के खराब प्रदर्शन के पीछे किसी लोकप्रिय चेहरे का ना होना भी था। पार्टी में सिर्फ मायावती ही एक बड़ा चेहरा बची हैं जबकि पार्टी के अन्य दलित, ओबीसी और मुस्लिम नेता जैसे- लालजी वर्मा, आर के चौधरी, राजा राम पाल, स्वामी प्रसाद मौर्य, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, रामअचल राजभर, इंद्रजीत सरोज और बाबू सिंह कुशवाहा दूसरे दलों में जा चुके हैं या उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। जो लोग बसपा में बचे हैं, वे संगठन के काम में लगे हैं या उनकी मायावती या आकाश आनंद जैसी फॉलोइंग नहीं है।
चुनावी राज्यों का दौरा करेंगे आकाश आनंद
2019 में नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाए जाने के बाद भी आकाश आनंद की शक्तियां सीमित थी। लोकसभा के चुनाव में टिकट वितरण में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। बसपा के एक नेता ने कहा है कि अब जब 2027 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं तो पार्टी को एक युवा नेता की जरूरत है जो पूरे राज्य का दौरा करे, जिलों में जाकर बैठक ले और जमीन से फीडबैक हासिल कर सके।
बसपा के सूत्रों का कहना है कि आकाश आनंद अब उत्तर प्रदेश के अलावा दूसरे अन्य राज्यों में, जहां इस साल के अंत में और 2025 में विधानसभा के चुनाव होने हैं उनका भी दौरा करेंगे।