लोकसभा चुनाव परिणाम से कमजोर हुई भाजपा, पार्टी में भी तेज होंगे विरोधी स्वर?
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे बीजेपी के लिए मनमुताबिक नहीं रहे। पार्टी को 240 सीटों पर जीत के साथ अकेले बहुमत नहीं मिला, हालांकि 293 सीटों के साथ एनडीए केंद्र में सरकार बना सकती है।
ऐसे चुनाव परिणाम सामने आने के बाद बीजेपी के बीच उम्मीदवारों के चयन, नेताओं के बर्ताव और केंद्रीय नेतृत्व की कार्यशैली को लेकर आवाजें उठने लगी हैं।
असम में तो एक विधायक ने सार्वजनिक रूप से जोरहाट की सीट कांग्रेस के हाथों खोने को लेकर कहा कि यह मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा के अहंकारी बर्ताव की वजह से हुआ है।
पश्चिम बंगाल में दो वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों और एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष की हार और पार्टी द्वारा 2019 की तुलना में छह सीटें कम जीतने के बाद राज्य के कुछ वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया और चुनाव प्रबंधन को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।
अंग्रेजी अखबार 'द टेलीग्राफ' के मुताबिक, बंगाल में भाजपा को केवल 12 लोकसभा सीटें मिलने के एक दिन बाद राज्य इकाई के कई नेताओं ने कहा कि नतीजों ने प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार की अध्यक्षता में मौजूदा पार्टी संगठन की कमियों को उजागर कर दिया है।
लोकसभा चुनाव 2024 परिणाम: पश्चिम बंगाल में किस पार्टी को कितनी सीटें
पार्टी | सीटें |
टीएमसी | 29 |
बीजेपी | 12 |
कांग्रेस | 1 |
बंगाल भाजपा में क्यों है असंतोष?
बंगाल के पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष को उनके निर्वाचन क्षेत्र मिदनापुर से बर्धमान-दुर्गापुर में स्थानांतरित कर दिया गया था, जहां तृणमूल के कीर्ति आज़ाद ने उन्हें 1.37 लाख से अधिक वोटों से हराया। दिलीप घोष का कहना है कि पार्टी में पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने का चलन ठीक नहीं है।
एक भाजपा नेता ने 'द टेलीग्राफ' से बातचीत के दौरान कहा, “दिलीप दा ने 2019 में मिदनापुर में लगभग 89,000 वोटों से जीत हासिल की इसके बावजूद उन्हें बर्धमान-दुर्गापुर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा, जहां पार्टी के निवर्तमान सांसद एसएस अहलूवालिया केवल 2,439 वोटों से जीते थे। अगर उन्हें दूसरी बार मिदनापुर से चुनाव लड़ने दिया गया होता तो हम सीट नहीं हारते।”
भाजपा के कई अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय नेताओं ने सुवेंदु अधिकारी के सुझाव के बाद दिलीप घोष के स्थानांतरण को मंजूरी दी थी। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा नेताओं के एक बड़े वर्ग का मानना है कि खराब उम्मीदवार चयन और कुछ वरिष्ठ भाजपा नेताओं के अति आत्मविश्वास के कारण बंगाल में पार्टी को नुकसान हुआ।
हार के बाद बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को बदलनी होगी कार्यशैली
वहीं, दूसरी ओर भाजपा को इस बार अपने दम पर पूर्ण बहुमत न मिलने के बाद पार्टी के कुछ नेताओं ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि ऐसे नतीजे के बाद आने वाले समय में पार्टी के भीतर भी मंथन तेज हो सकता है और शीर्ष नेतृत्व की कार्यशैली में बदलाव के लिए आवाज उठ सकती है। सूत्रों ने कहा कि अब भाजपा को जिस तरह एनडीए के अपने सहयोगियों की बातें सुननी और उसे साथ लेकर चलने की मजबूरी के साथ चलना होगा, उसी तरह पार्टी के भीतर भी अधिक सहमतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना होगा। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “यह लोकसभा चुनाव भाजपा में एक नया अध्याय बनाएगा। नेतृत्व अब सवाल या आलोचना से परे नहीं है।”
'बाहरी लोगों' को लेकर RSS में असंतोष?
चुनाव से पहले टिकट वितरण को लेकर आरएसएस के भीतर असंतोष का संकेत देने वाली कुछ रिपोर्टें भी सामने आई थीं। दरअसल, अनुभवी पार्टी कार्यकर्ताओं के बजाय 'बाहरी लोगों' को तरजीह दी गई, जिससे जमीनी स्तर पर चुनाव अभियान कमजोर हुआ। आरएसएस के साथ संबंधों के बारे में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयान, "हम और अधिक सक्षम हो गए हैं" ने भी नुकसान पहुंचाया। हालांकि नड्डा ने स्पष्टीकरण दिया था कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया था।
उत्तर प्रदेश बीजेपी में भी नहीं है सब सही
उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए अप्रत्याशित रहे। पार्टी को यहां हार का सामना करना पड़ा है। सपा और कांग्रेस गठबंधन ने यूपी में 43 सीटें जीती हैं वहीं, बीजेपी के खाते में 33 सीटें आयीं।
यहां भाजपा की हार का एक कारण पार्टी के भीतर असंतोष के साथ ही और पार्टी और केंद्र सरकार के बीच कई मुद्दों पर असहमति हो सकता है। चुनाव हारने वालीं पूर्व केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने आरोप लगाया है कि उनके साथ भीतरघात हुआ है। उन्होंने कहा कि वह उन्हें हराने वाले भीतरघातियों की पहचान कर उन्हें सामने लाएंंगी।
यूपी में बीजेपी के लिए निराशाजनक परिणामों के चलते मुख्यमंत्री आदित्य नाथ भी सवालों के घेरे में आने से बच नहीं पाएंगे, इस तरह की अटकलें भी लगाई जा रही हैं। कहा जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ द्वारा सुझाए गए कई उम्मीदवारों के नामों को स्वीकार नहीं किया गया और इन निर्वाचन क्षेत्रों में परिणाम पार्टी के लिए प्रतिकूल रहे हैं। भाजपा सूत्रों का कहना है कि इससे पार्टी कार्यकर्ताओं के उत्साह और मनोबल पर असर पड़ा और आंतरिक विभाजन गहरा गया।
यूपी में किसे मिली कितनी सीटें
पार्टी | सीट |
बीजेपी | 33 |
सपा | 37 |
कांग्रेस | 6 |
आरएलडी | 2 |
आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) | 1 |
अपना दल (सोनेलाल) | 1 |
राजस्थान में वसुंधरा राजे को साइडलाइन करना पड़ा भारी?
राजस्थान की पूर्व सीएम और बीजेपी की वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे के बीजेपी के चुनाव अभियान से दूर होने का राज्य में पार्टी के प्रदर्शन पर बुरा प्रभाव पड़ा। उनके कई वफादार समर्थकों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया, जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं में आंतरिक असंतोष और उत्साह की कमी हो गई। राजस्थान में भाजपा की सरकार है और वहां के एक मंत्री चुनाव के बीच में ही अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठा चुके हैं।
राजस्थान में किसे कितनी सीटें
पार्टी | सीटें |
सीपीआई (एम) | 1 |
बीजेपी | 14 |
कांग्रेस | 8 |
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी | 1 |
भारत आदिवासी पार्टी | 1 |
राजे सभी चुनावी रैलियों से अनुपस्थित रहीं, चाहे वह पीएम मोदी की हों या अमित शाह की। पार्टी के एक सूत्र ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत के दौरान कहा, "वसुंधरा राजे के वफादारों- दो बार के सांसद राहुल कस्वां (चूरू), मनोज राजोरिया (करौली-धौलपुर) और निहाल चंद मेघवाल (गंगानगर) को उनके आग्रह के बावजूद टिकट नहीं दिया गया। चुनाव के नतीजे आने पर पार्टी तीनों सीटें हार गई, जबकि कासवान कांग्रेस के टिकट पर जीतने में कामयाब रहे।” राजे जैसे लोकप्रिय नेता की तुलना में नए भजन लाल शर्मा की मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति मतदाताओं को सही नहीं लगी।
TOI से बातचीत के दौरान ही एक भाजपा नेता ने कहा, "यह हार मुख्यमंत्री की छवि के लिए नुकसान है। उन्हें पार्टी अध्यक्ष सीपी जोशी के साथ हार की जिम्मेदारी लेनी होगी। जोशी, आंतरिक विवादों को मैनेज करने में विफल रहे।''
अखबार ने पार्टी के एक अन्य नेता के हवाले से लिखा है, “संगठन पर जोशी की कमजोर पकड़ ने उनके नेतृत्व पर संदेह पैदा कर दिया है। अटकलें लगाई जा रही हैं कि उन्हें बदला जा सकता है।''