लोकसभा चुनाव 2024 में सभी पार्टियां खूब कर रही हैं AI का इस्तेमाल, दिवंगत नेताओं के भी कराए जा रहे हैं भाषण
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए तेजी से चल रहे प्रचार अभियान में तमाम राजनीतिक दल अपना मैसेज देने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह तकनीक भाषणों का तुरंत अनुवाद करने, डिजिटल एंकर बनाने और यहां तक कि किसी दिवंगत नेता की आकृति को भी असली जैसा दिखाकर भाषण दिलवाने में भी मदद करती है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस बार के चुनाव में AI का इस्तेमाल जोरशोर से किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2023 में वाराणसी में एक कार्यक्रम में अपने हिंदी भाषण का तमिल भाषी दर्शकों के लिए उनकी भाषा में अनुवाद करने के लिए AI से चलने वाले टूल 'भाषिनी' का इस्तेमाल किया था। तब पीएम ने कहा था, "मैं पहली बार एआई तकनीक का इस्तेमाल कर रहा हूं और भविष्य में भी इसका उपयोग करूंगा।"
इन दिनों चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी अपनी रैलियों में लोगों को सोशल मीडिया साइट 'एक्स' और यूट्यूब पर जाकर एआई द्वारा ट्रांसलेटेड उनके भाषणों को सुनने के लिए कह रहे हैं। दरअसल, भारतीय जनता पार्टी ने यूट्यूब चैनल बनाए हैं जो बांग्ला, तमिल, उड़िया, मलयालम और अन्य भाषाओं में पीएम मोदी के भाषणों का अनुवाद कर चलाते हैं।
AI तकनीक से चुनाव प्रचार में जुटी पार्टियां
भाजपा की तरह ही कांग्रेस और DMK भी चुनाव प्रचार में इस्तेमाल होने वाले कंटेंट को बनाने के लिए एआई का इस्तेमाल कर रहे हैं। डीएमके, चुनाव प्रचार के लिए एआई जेनरेटेड वीडियो का उपयोग कर रही है, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि मतदाताओं से समर्थन मांगते हुए दिखाई दे रहे हैं। गौरतलब है कि करुणानिधि का साल 2018 में निधन हो गया था।
पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) अपने चुनावी संदेश को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक तक पहुंचाने के लिए वीडियो बना रही है, इसके लिए पार्टी समता (Samata) नाम की एआई जेनरेटेड एंकर का इस्तेमाल कर रही है। इससे पहले कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने भी कहा था कि पार्टी GenAI और मशीन लर्निंग का उपयोग कर राहुल गांधी के भाषणों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद करने की योजना बना रही है।
प्रत्येक राजनीतिक दल क्लोन वीडियो, फोटो और वीडियो जैसे कंटेंट एआई-जेनरेटेड की मदद से बना रहे हैं। पॉलिटिकल कंटेंट बनाने वाले स्टूडियो और क्रिएटिव फर्म चुनाव को एआई के इस्तेमाल के ट्रायल के रूप में देख रहे हैं और बाद में इस तकनीक पर आने वाले रिएक्शन का इंतजार कर रहे हैं।
सोशल मीडिया और चुनाव अभियान
पिछले तीन दशकों में उभरती तकनीकों के कारण भारत की चुनावी रणनीति बदलती गई है। यह बदलाव 1990 के दशक में फोनकॉल के व्यापक उपयोग, 2007 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बड़े स्तर पर मोबाइल फोन का इस्तेमाल, 2014 में होलोग्राम का उपयोग और अब एआई के युग से देखा जा सकता है।
उदाहरण के लिए, राजनीतिक अभियान टूल के रूप में सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के महत्व को खासतौर पर 2014 के आम चुनावों के संबंध में याद किया जाएगा। डिजिटल खर्च में अनुमानित ₹500 करोड़ को देखते हुए कई विश्लेषकों ने इसे भारत का पहला "सोशल मीडिया चुनाव" या "फेसबुक चुनाव" भी कहा था। निस्संदेह, भारत की बड़ी युवा आबादी से जुड़ने के लिए इन तकनीकी उपकरणों का व्यापक रूप से उपयोग करने वाली पहली पार्टी होने से भाजपा को लाभ हुआ।
इससे अलग, 2024 के चुनाव 'एआई चुनाव' हैं। जनवरी में न्यू हैम्पशायर के मतदाताओं को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की तरफ से फोन कॉल आया। दरअसल, यह एआई द्वारा किया गया एक रोबोकॉल था जिसका उद्देश्य डेमोक्रेटिक मतदाताओं को चुनाव के दिन मतदान केंद्रों पर न आने के लिए हतोत्साहित करना था।
AI के साइड इफेक्ट
एआई की मदद से किए जाने वाले दुष्प्रचार, चुनाव अभियान और परिणाम दोनों को प्रभावित कर सकते हैं। एआई मोटे तौर पर तीन तरीकों से दुष्प्रचार और फेक कंटेंट को बढ़ावा दे सकता है, जिससे मतदाताओं को प्रभावित किया जा सकता है। सबसे पहले, एआई दुष्प्रचार के पैमाने को हजारों गुना तक बढ़ा सकता है। दूसरा, डीप फेक फोटो, ऑडियो या वीडियो जो मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं। मतदाताओं पर असर डालने का तीसरा तरीका है माइक्रोटारगेटिंग यानी सूक्ष्म स्तर पर मतदाताओं को टार्गेट करना। एआई का उपयोग बड़े पैमाने पर प्रचार के साथ मतदाताओं को लुभाने के लिए किया जा सकता है।
PNAS Nexus में प्रकाशित एक स्टडी में कहा गया है कि चुनाव अभियान के दौरान दुष्प्रचार और झूठ का प्रचार करने के लिए जेनेरिक एआई का तेजी से उपयोग किए जाएगा। इस रिसर्च में ऑनलाइन एआई गतिविधियों के प्रसार का विश्लेषण, मॉडल और प्रारूप तैयार करने के लिए साइबर और स्वचालित एल्गोरिदम के पूर्व अध्ययन का इस्तेमाल किया गया था। रिसर्च में सामने आया कि 2024 में एआई सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर टॉक्सिक कंटेंट फैलाने में मदद करेगा। इसका असर संभावित रूप से 50 से अधिक देशों में चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है।
क्या कदम उठा रही है सरकार?
भारत सरकार ने डिजिटल प्लेटफॉर्मों से समाज और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने वाली गलत सूचनाओं को रोकने और खत्म करने के लिए तकनीकी और व्यावसायिक समाधान प्रदान करने को कहा है। आईटी और संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि चुनाव के बाद डीपफेक और दुष्प्रचार के खिलाफ कानून को अंतिम रूप दिया जाएगा।
इस महीने की शुरुआत में, आईटी मंत्रालय ने Google और OpenAI जैसी कंपनियों और फाउंडेशनल मॉडल और रैपर चलाने वाली कंपनियों को एक एडवाइजरी जारी की थी कि उन्हें ऐसी सर्विस नहीं देनी चाहिए जो भारतीय कानूनों के तहत अवैध हैं या चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को खतरे में डालती हैं।" इस एडवाइजरी को कुछ जेनेरिक एआई स्पेस स्टार्टअप्स की ओर से विरोध का सामना करना पड़ा था। हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया कि यह एडवाइजरी केवल बड़े प्लेटफार्मों के लिए थी, स्टार्टअप के लिए नहीं।
राजनीतिक परिदृश्य बदल रहा है
एआई केवल दुष्प्रचार फैलाने की तुलना में चुनावों में कहीं अधिक व्यापक भूमिका निभा सकता है। इसका उपयोग अभियान के लिए रणनीति बनाने में किया जा सकता है। मतदाता पहचान के प्रारंभिक चरणों से लेकर कंटेंट डेवलपमेंट और डिस्ट्रीब्यूशन के जटिल विवरण तक। पार्टियों और उम्मीदवारों के प्रदर्शन के विश्लेषण के साथ, एआई की मदद से राजनीतिक अभियानों को नए लेवल पर ले जाया जा सकता है। GenAI तकनीक के कारण राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है जो 2024 के चुनावों के लिए नयी क्षमताएं और चुनौतियां दोनों पैदा कर रहा है।
मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए क्या कर रहा है EC?
देश में 14 ऐसे भी गांव हैं, जहां के मतदाताओं के पास दो-दो वोटर कार्ड, वे दो-दो बार वोट डालते हैं। लेकिन एक तरफ कश्मीरी पंडित हैं, जो आज भी जमकर मतदान नहीं कर पा रहे हैं। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें: