राम के नाम पर खुले-आम वोट मांग रही भाजपा, मंदिर निर्माण में मोदी का कितना योगदान?
लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) खुले-आम हिंदुओं के आराध्या राम के नाम पर वोट मांग रही है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को भाजपा अपनी उपलब्धि बता रही है। लेकिन वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) के नेता प्रकाश अंबेडकर का मानना है कि राम मंदिर निर्माण में भाजपा का योगदान शून्य है।
अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ से बातचीत में जब प्रकाश अंबेडकर से पूछा गया कि वह उस भाजपा का मुकाबला कैसे करेंगे जिसके कार्यकर्ता राम मंदिर के निर्माण, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को मोदी सरकार की प्रमुख उपलब्धियों के रूप में पेश कर रहे हैं?
बिना किसी गठबंधन चुनावी मैदान में उतरे प्रकाश अंबेडकर ने जवाब दिया- अनुच्छेद 370 हटने के बाद भी जम्मू-कश्मीर में हालात शांतिपूर्ण नहीं हैं। हालात काबू में नहीं होने के कारण कश्मीर में विधानसभा चुनाव नहीं हो रहे हैं। जहां तक राम मंदिर की बात है तो देश के हर गांव में राम मंदिर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ही राम मंदिर पर फैसला सुनाया था। भाजपा का योगदान शून्य है।
सवाल उठता है कि प्रकाश अंबेडकर के बयान में कितनी सच्चाई है, राम मंदिर के लिए चलाए गए अभियान में भाजपा और मोदी की क्या भूमिका थी? ये सही है कि भाजपा के घोषणा पत्र में लंबे समय तक राम मंदिर निर्माण का मुद्दा रहा है लेकिन वास्तव में तकनीकी रूप से मंदिर के निर्माण में भाजपा का क्या योगदान रहा है?
राम मंदिर भाजपा का मुद्दा कब बना?
भाजपा जनता पार्टी और जनसंघ की स्थापना के बहुत पहले से कांग्रेस का एक धड़ा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान में कूद चुका था। 22-23 दिसंबर, 1949 की रात बाबरी मस्जिद में राम के बालरूप की मूर्ति रखी गई थी। जब नेहरू को ये बात पता चली तो वह बहुत नाराज हुए। उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को मूर्ति हटाने के लिए कहा।
फैजाबाद के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट केके नायर और सिटी मजिस्ट्रेट गुरु दत्त सिंह ने मूर्ति हटाने का विरोध किया। इतना ही नहीं फैजाबाद कांग्रेस के भीतर इसे लेकर आम सहमति नहीं थी। कांग्रेस विधायक बाबा ने तो खुले-आम धमकी दे डाली थी कि अगर मूर्ति हटाई गई तो वह वह विधानसभा और पार्टी से इस्तीफा दे देंगे।
बाबा राघव दास फैजाबाद के बड़े नेता थे, उनके लिए खुद पंत ने प्रचार किया था। वह दिग्गज समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव को हराकर विधानसभा पहुंचे थे। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:
मंदिर और राम समर्थक कांग्रेस नेताओं की सूची में आगे कई नाम जुड़े। राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया। सरकार टीवी चैनल पर 'रामायण' चलवाने के लिए अपने सूचना एवं प्रसारण मंत्री को बदल दिया। नरसिंह राव की सरकार में बाबरी मस्जिद गिराई गई। नीरजा चौधरी की किताब बताती है कि वह राव खुद राम मंदिर बनवाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने ट्रस्ट बनाकर जमीन का अधिग्रहण भी किया था। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:
जहां तक राम मंदिर अभियान से भाजपा के जुड़ने की बात है तो यह 1989 में हुआ। दरअसस, 1984 के चुनाव में भाजपा दो सीट पर सिमट गई थी। इसके बाद पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी को अध्यक्ष पद से हटाकर लाल कृष्ण आडवाणी को कमान सौंप दी। अध्यक्ष बनते ही आडवाणी ने मुरली मनोहर जोशी को राष्ट्रीय महासचिव बना दिया।
आडवाणी के अध्यक्ष बनने के करीब एक माह बाद 11 जून 1989 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। उसी बैठक में आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने VHP की राम मंदिर की मांग का औपचारिक रूप से समर्थन करने का प्रस्ताव पास किया।
बता दें कि विश्व हिंदू परिषद अपनी स्थापान के कुछ बाद से राम मंदिर के लिए अभियान चला रहा था। वीएचपी के संस्थापक सदस्यों में तुकडोजी महाराज भी शामिल थे। तुकडोजी महाराज उस 'भारत साधु समाज' के पहले अध्यक्ष थे, जिसकी स्थापना में कांग्रेस की भूमिका थी। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:
ये तो हो गई भाजपा के मंदिर आंदोलन में आने की बात। जहां तक नरेंद्र मोदी के मंदिर अभियान से रिश्ते की बात है, आइए उसकी भी पड़ताल कर लेते हैं।
मंदिर अभियान में मोदी की भूमिका
वर्तमान में भाजपा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राम मंदिर निर्माण के नाम पर वोट मांग रही है। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान भाजपा ने नरेंद्र मोदी आडवाणी की रथयात्रा का शिल्पी बताया था। भाजपा के आधिकारिक सोशल मीडिया हैडंल से एक वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा गया था, “1990 में मंदिर निर्माण के लिए भाजपा ने शुरू की सोमनाथ से अयोध्या की रथ यात्रा, जिसके शिल्पी और रणनीतिकार थे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी।”
भाजपा के इस दावे की पुष्टि संघ की पत्रिका से जुड़े पत्रकार भी नहीं करते। आरएसएस से संबंद्ध साप्ताहिक पत्रिका ऑर्गनाइजर के पूर्व संपादक शेषाद्री चारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि "...राम मंदिर आंदोलन को एक जन आंदोलन कैसे बनाया जाए, इसकी योजना बनाने के लिए आरएसएस ने पहली बैठक 1980 में की थी। इस आंदोलन के पीछे मोरापंत पिंगले का दिमाग था। गंगा माता यात्रा और ईंटें रखने जैसे कार्यक्रम पूरी योजना का हिस्सा थे। आडवाणी की रथ यात्रा शायद उस कड़ी में चौथी घटना थी।"
राम मंदिर अभियान को 30 वर्षों से अधिक समय तक कवर करने वालीं रिपोर्टर सुमन गुप्ता ने अगस्त 2020 में रेडिफ डॉट कॉम के सैयद फिरदौस अशरफ से बातचीत में कहा था कि मंदिर आंदोलन में मोदी की कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं थी।
ज्यादतर विश्लेषकों का यह मानना है कि नरेंद्र मोदी ने आडवाणी की रथ यात्रा के गुजरात चरण के आयोजन में मदद की थी। पूरे अभियान में उनकी कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं थी। भाजपा ने अपनी वेबसाइट पर भी मोदी के योगदान का जिक्र नहीं किया है। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:
मंदिर निर्माण में भाजपा की कितनी भूमिका?
अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हुआ है। मंदिर के ट्रस्ट का गठन भारत सरकार ने किया था। कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जब मोदी नई दिल्ली की राजनीति करने आए, तब वह खुद को राम मंदिर के मुद्दे से जोड़ने के इच्छुक नहीं थे।
एक लेख में द इंडियन एक्सप्रेस की लिज़ मैथ्यू लिखती हैं," प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में अयोध्या या राम मंदिर का जिक्र करने से परहेज किया। हालांकि जब 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर निर्माण के लिए रास्ता साफ कर दिया, तब प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि वह अयोध्या में निर्माण की पहल के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में पहचान चाहेंगे।"
आम चुनाव में राम का जमकर इस्तेमाल कर रही है भाजपा
भाजपा अपने चुनाव प्रचार में लगातार राम के नाम का इस्तेमाल कर रही है। 17 अप्रैल को राम नवमी (हिंदू त्योहार) पर प्रधानमंत्री मोदी ने असम में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए लोगों से अयोध्या में राम मंदिर में होने वाले "सूर्य तिलक" अनुष्ठान में भाग लेने के लिए अपने मोबाइल फोन की फ्लैशलाइट चालू करने के लिए कहा था।
जनसभा के बाद मोदी ने अपनी तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा कि उन्होंने "सूर्य तिलक" अनुष्ठान का वीडियो देखा। भाजपा के आधिकारिक हैंडल ने अनुष्ठान की एक तस्वीर पोस्ट की और कैप्शन दिया: "आपके 'एक वोट' की शक्ति!"
कई अन्य भाजपा नेताओं ने भी वोट के लिए राम को एक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया है। मेरठ से भाजपा उम्मीदवार अरुण गोविल को एक चुनावी रैली में राम की तस्वीर प्रदर्शित करने के बाद जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय से नोटिस मिल चुका है। हालांकि, इससे भाजपा नेताओं ने राम के नाम पर वोट मांगना छोड़ा नहीं। एक चुनावी रोड शो में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी राम की तस्वीर हाथ में लिए देखा गया था।