Lok Sabha Chunav 2024: यहां 25 में से 22 सीटें जीतना चाहते हैं हिमंता बिस्वा सरमा, पूरा जोर लगा रही बीजेपी, पर चुनौतियां हैं बड़ी
लोकसभा चुनाव 2024 में 400 पार का नारा देने वाली बीजेपी इस बार भी पूर्वोत्तर की 25 में से ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए पूरा जोर लगा रही है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन ने यहां 19 सीटों पर जीत हासिल की थी।
BJP Himanta Biswa Sarma: हिमंता ने बढ़ाया बीजेपी का आधार
बीजेपी ने पिछले कुछ सालों में पूर्वोत्तर में लगातार अपना आधार बढ़ाया है और इसमें असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा उसके लिए एक मजबूत कड़ी साबित हुए हैं। हिमंता पहले कांग्रेस में थे लेकिन साल 2015 में वह बीजेपी में शामिल हो गए थे। बीजेपी ने साल 2016 में नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) बनाया था और इसका संयोजक हिमंता को ही बनाया गया था।
हिमंता जब कांग्रेस में थे तो वह राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और बड़े कांग्रेसी नेता तरुण गोगोई के खास लोगों में शुमार थे और कांग्रेस की जीत के रणनीतिकार भी माने जाते थे। हिमंता के बीजेपी में शामिल होने के बाद पार्टी गठबंधन के सहयोगियों के साथ मिलकर असम में 2016 और 2021 का विधानसभा चुनाव जीत चुकी है। जबकि इससे पहले वहां कांग्रेस ने लगातार 15 साल तक शासन किया था।
2019 में बीजेपी ने असम की 10 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 2014 में मिली 7 सीटों के मुकाबले 9 सीटें जीती थी। 2021 के चुनाव में कांग्रेस ने महागठबंधन बनाकर बीजेपी को सत्ता से हटाने की पूरी कोशिश की थी लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं हो पाई थी। तब एनडीए गठबंधन को 75 सीटें मिली थी लेकिन कांग्रेस की अगुवाई वाला महा गठबंधन यानी महाजोत 50 सीटें ही जीत सका था।
असम के अलावा बीजेपी अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा और मेघालय में भी अपने दम पर या सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार चला रही है। लेफ्ट फ्रंट का गढ़ माने जाने वाले त्रिपुरा में भी बीजेपी दो बार लगातार सरकार बनाने में कामयाब रही है।
Congress North East: कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन
दूसरी ओर, कांग्रेस का ग्राफ पूर्वोत्तर में लगातार गिरता गया है। साल 2009 में पार्टी को यहां की 13 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 2019 में वह 4 सीटों पर आकर सिमट गयी। दूसरी ओर बीजेपी जिसने 2009 में सिर्फ चार सीटें जीती थी वह 2019 में 14 सीटों के आंकड़े पर पहुंच गई।
2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्वोत्तर में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा और अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा में आने वाली 9 लोकसभा सीटों से उसका सफाया हो गया। दिलचस्प बात यह है कि चार राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और त्रिपुरा में बीजेपी ने जिन नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया है, वे सभी कांग्रेस से ही आए हैं।
अरुणाचल प्रदेश में तो हाल यह है कि बीजेपी वहां विधानसभा चुनाव में 60 में से 10 सीट तो बिना लड़े ही जीत गई है। यानी 10 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों के सामने विपक्षी दलों के उम्मीदवार ही खड़े नहीं हुए।
NDA North East: एनडीए ने रखा 22 सीटें जीतने का लक्ष्य
पूर्वोत्तर की 25 में से सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें असम में हैं। 14 लोकसभा सीटों वाले असम में बीजेपी 11 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि उसने दो सीटें अपने सहयोगी दल- असम गण परिषद और एक सीट यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल के लिए छोड़ी है। दूसरी ओर कांग्रेस असम में 13 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि उसका सहयोगी दल असम जातीय परिषद (एजेपी) एक सीट पर चुनाव लड़ रहा है। हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा है कि एनडीए इस बार पूर्वोत्तर की 25 में से 22 सीटों पर जीत हासिल करेगा।
North East BJP Politics: नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी की चुनौतियां
आंकड़ों को देखकर ऐसा लगता है कि बीजेपी और एनडीए के लिए पूर्वोत्तर में राह आसान है। लेकिन ऐसा कहना पूरी तरह ठीक नहीं होगा। मणिपुर पिछले काफी समय से जातीय हिंसा की आग में जल रहा है और इस वजह से राज्य की बीजेपी सरकार विपक्षी दलों के निशाने पर है। कांग्रेस और तमाम विपक्षी दलों ने मणिपुर हिंसा को राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा बनाया था और कहा था कि बीजेपी पूर्वोत्तर के एक छोटे से राज्य तक में हिंसा नहीं रोक पा रही है।
इसके अलावा नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को लेकर मेघालय और असम में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं। ये दोनों ही मुद्दे पूर्वोत्तर में बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने हैं।
अरुणाचल में एनपीपी ने दिखाई आंख
इसके अलावा बीजेपी का अपने सहयोगी दल नेशनल पीपुल्स पार्टी के साथ सियासी गठजोड़ बहुत मजबूत नहीं है क्योंकि एनपीपी अरुणाचल प्रदेश की दो लोकसभा सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों का समर्थन कर रही है लेकिन वह राज्य में हो रहे विधानसभा चुनाव में 23 सीटों पर बीजेपी की उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ रही है। ऐसे में यह भी एक बड़ी मुश्किल पार्टी के सामने है।