फाइनल मीटिंग से पहले ही ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने कर दी थी प्रेस कांफ्रेंस, जानिए इंदिरा ने कैसे किया था शिमला समझौता
1971 में हुए बांग्लादेश के युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह से हराने के बाद इंदिरा गांधी ने इस पड़ोसी देश के साथ नए रिश्तों की शुरुआत करने की कोशिश की थी। पाकिस्तान को भी ऐसी किसी पहल की सख्त जरूरत थी।
हालांकि ऐसे माहौल में दोनों देशों के बीच रिश्तों को सामान्य करना आसान काम नहीं था लेकिन फिर भी 2 जुलाई, 1972 की रात को पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो और भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच शिमला समझौते पर दस्तखत किए गए।
इसके साथ ही भारत-पाकिस्तान के बीच 5 दिन तक चले शिमला शिखर सम्मेलन का भी समापन हो गया था। दस्तखत करने का यह कार्यक्रम (साइनिंग सेरेमनी) रात 12:40 पर हिमाचल भवन के दरबार हॉल में रखा गया था।
![Shimla agreement](https://www.jansatta.com/wp-content/uploads/2024/06/shimla.jpg?w=670)
कश्मीर मुद्दे का समाधान चाहती थीं इंदिरा
इंदिरा गांधी कश्मीर के मुद्दे का पूरी तरह समाधान चाहती थीं और जुल्फिकार अली भुट्टो की कोशिश 93,000 युद्ध बंदियों की रिहाई और पाकिस्तान के 5000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को भारत के कब्जे से वापस लाने की थी।
ऐसे हालात में इंदिरा गांधी के भरोसेमंद सहयोगी डीपी धर और पाकिस्तान के विदेश सचिव अजीज अहमद के बीच बातचीत शुरू हुई। जून, 1972 में शिमला में इंदिरा गांधी और भुट्टो की मुलाकात से पहले धर और अहमद दो बिंदुओं को लेकर सहमत हो गए थे।
इसमें पहला था- संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रायोजित युद्ध विराम की रेखा को लाइन ऑफ कंट्रोल में बदलने, दोनों ही देशों के द्वारा इसका पालन करने और दूसरा था- दोनों देशों के बीच सभी विवादों को शांतिपूर्ण और द्विपक्षीय तरीके से हल करना।
शिमला समझौते पर पहुंचने से पहले ही दोनों पक्षों ने अपनी तरफ से जमकर सौदेबाजी करने की कोशिश की। कश्मीर के गठन को लेकर जब आम सहमति नहीं बनी तो समझौते को रोक दिया गया था। इससे पहले इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच दिन में दो दौर की बातचीत भी हुई और इसके बाद एक समझौता सामने आया। फाइनल राउंड में जुल्फिकार अली भुट्टो की तरफ से इंदिरा गांधी के सम्मान में रात्रि भोज का आयोजन किया गया।
स्पेशल डिनर के बाद दोनों नेताओं ने अलग से 10 मिनट की एक बैठक भी की थी।
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इसके बाद भारत और पाकिस्तान दोनों पक्षों के प्रमुख सहयोगियों को बुलाया गया और फिर भारत की केंद्रीय कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति के सदस्य जिसमें- वित्त मंत्री वाईबी चव्हाण, कृषि मंत्री फखरुद्दीन अली अहमद, रक्षा मंत्री जगजीवन राम, विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह से भी विचार-विमर्थ किया गया। ये सभी नेता डिनर में भी शामिल हुए थे।
इसके बाद इंदिरा गांधी ने समझौते को अंतिम रूप देने के बारे में फैसला किया। साइनिंग सेरेमनी को भारत की केंद्रीय कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति के सदस्यों ने भी देखा था।
भारत ने पहले पाकिस्तान के द्वारा रखे गए ड्राफ्ट में संशोधन के बाद पाकिस्तान की ओर से की गई मांगों को कुछ हद तक पूरा करने की कोशिश की। नए ड्राफ्ट को केंद्रीय कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति की बैठक में मंजूरी दी गई और इसे प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीएन हक्सर और विदेश सचिव टीएन कौल भुट्टो के पास ले गए।
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भुट्टो को थी सहमति बनने की उम्मीद
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ दोपहर की बातचीत खत्म होने के बाद जुल्फिकार अली भुट्टो ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया। जहां उन्होंने इस बात की उम्मीद जताई कि इंदिरा गांधी के साथ उनकी अंतिम बैठक में कोई ना कोई सहमति जरूर बनेगी। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि कश्मीर के मामले में सहमति न बनने की वजह से यह पूरा मामला अटका हुआ है।
जब तक भुट्टो न्यूज कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने नहीं आए थे तब तक उनकी शिमला शिखर सम्मेलन को लेकर यही सोच थी कि हम सफल नहीं हुए हैं और हम फेल भी नहीं हुए हैं लेकिन उन्होंने कहा था कि डिनर के बाद हालात बदल सकते हैं।
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दोनों देशों को हुआ नुकसान
भुट्टो ने कहा था कि यह बातचीत भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में एक अहम कदम है। हमें 25 साल पुराने पूर्वाग्रह को दूर करने की जरूरत है। इस बारे में शुरुआत हो चुकी है और यह बड़ी बात है। दोनों ही देशों को एक-दूसरे के लिए दरवाजे बंद करने का खामियाजा उठाना पड़ा है।
शिमला में भारत ने पाकिस्तान से सख्त शब्दों में कहा था कि वह युद्ध के दौरान कब्जे में लिए गए पाकिस्तानी के सभी इलाकों को वापस कर देगा लेकिन कश्मीर के मामले में ऐसा कुछ नहीं किया जाएगा।
जहां तक 93,000 युद्धबंदियों का सवाल है, इंदिरा गांधी ने इस मामले में भी स्पष्ट रूख अपनाया था और कहा था कि उन्हें बांग्लादेश की सहमति के बिना वापस नहीं किया जा सकता। तब तक पाकिस्तान ने बांग्लादेश को मान्यता नहीं दी थी।
आखिरकार समझौते के लिए हुए तैयार
आखिरकार इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो एन मौके पर शिमला समझौते के लिए सहमत हो गए थे। यह समझौता निश्चित रूप से भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में एक बड़ी कामयाबी की तरह था।