सुनीता कृष्णन: जिस समाज की सेवा में थीं, उसी ने बनाया ज्यादती का शिकार
देह व्यापार और यौन अपराधों के खिलाफ मुहिम चलाने वालीं सुनीता कृष्णन ने एक किताब के जरिए अपनी जिंंदगी की कहानी बयां की है। आई एम, व्हाट आई एम नाम की इस किताब में उन्होंने वह आपबीती भी बयां की है, जिसके बाद उन्होंने उस मुहिम को शुरू कराने का संकल्प लिया, जिसमें वह आज बहुत आगे बढ़ गई हैं।
सुनीता जब 15 साल की थीं, तब वह यौन अपराध का शिकार हो गई थीं। वह जिस गांव में शिक्षा की अलख जगाने के लिए साक्षरता अभियान चला रही थीं, वहीं के कुछ लोगों ने उनके साथ ज्यादती की। अंधेरे का फायदा उठा कर उन्होंने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया।
कुछ घंटे बाद जब सुनीता को होश आया तब उन्हें अहसास हुआ कि उनके साथ क्या हुआ है। उनका मन गुस्से से भर गया था। उन्होंने लड़ने का फैसला किया। लेकिन, इस लड़ाई में उन्हें जो झेलना पड़ा, वह हैरान करने वाला था। होश में आने के बाद सुनीता गांव की जिन महिलाओं के पास गईं, उनमें से ज्यादातर ने यही कहा, 'हो हुआ, सो हुआ। अब बखेड़ा खड़ा करने से क्या फायदा?' उन्होंने सब कुछ भूल कर शहर लौट जाने की सलाह दी। लेकिन, सुनीता यह मानने को तैयार नहीं थींं।
सुनीता लिखती हैं, 'मुझे यह मंजूर नहीं था। मैंने सोचा कि मुझे शर्मिंंदगी क्यों उठानी चाहिए? शर्म तो उन दरिंंदों को अपने चेहरे दिखाने में आनी चाहिए।'
...सब तुम्हारी गलती है
इसके बाद सुनीता पंचायत के पास गईं। पंचायत में ज्यादातर पुरुष थे। उनका जवाब तो और भी अपमानजनक था। उन्होंने कहा, 'तुम्हारे साथ तो यह होना ही था। सब तुम्हारी गलती है।' उन्होंने लड़कियों को गलत शिक्षा देकर बहकाने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह बात लोगों में गुस्से की आग लगातार सुलगा रही थी। उनका यह भी कहना था कि यह घटना तुम जैसे और लोगों के लिए सबक है।
पंच सुनीता के साथ ऐसा बर्ताव कर रहे थे, मानों वही गुनहगार हों। इस बात ने सुनीता का आक्रोश और भड़का दिया। घर पर जब घटना की जानकारी दी तो परिवार खामोश रहा। माता-पिता ने दर्द झेलते हुए भी कोई सवाल नहीं किया। वे पुलिस में जाना चाहते थे, लेकिन सुनीता एक बार फिर से वही अपमान के घूंट पीने को तैयार नहीं थीं।
पीड़ित लड़कियों से मिलने का फैसला
कुछ दिनों तक पिता एकदम शांत रहे। इससे सुनीता को खुद को संवारने और जिंदगी को पटरी पर लौटाने में बड़ी मदद मिली। समाज की विपरीत प्रतिक्रियाओं के बावजूद सुनीता का हौंसला डिगा नहीं। बाद के समय में उनका यह दृढ़ विश्वास और मजबूत ही हुआ कि जो हुआ उसमें उनकी कोई गलती नहीं है। साथ ही, उन्हें यह अहसास भी हुआ कि केवल इस भाव से उन्हें इंसाफ नहीं मिलने वाला।
इंसाफ पाने के लिए कुछ करना होगा। उन्होंने फैसला किया ऐसी लड़कियों से मिलने का, जिनकी कहानी उनकी अपनी कहानी से मिलती-जुलती हो। जिनके साथ समाज ने ऐसा ही बर्ताव किया, जैसा सुनीता को झेलना पड़ा था।
इसके बाद सुनीता की हर सांस के साथ सेक्स क्राइम की शिकार लड़कियों और महिलाओं के लिए लड़ने का उनका संकल्प मजबूत होता गया। उन्हें अहसास हुआ कि सबसे बड़ा सेक्स क्राइम तो वेश्यावृत्ति है। जब एक बार की ज्यादती के बाद इतनी वेदना से गुजरना पड़ता है तो जिसके साथ रोज कई-कई बार ऐसा हो, उसकी हालत क्या होती होगी! इस ख्याल ने ही सुनीता को झकझोर दिया।
सारा दर्द अंदर दबाए सुनीता जिंंदगी के अपने मिशन पर आगे बढ़ती गईं।