वाजेपयी की मदद से कांग्रेसी गुलाम नबी आजाद जीते थे पहला लोकसभा चुनाव, जिसे हराया उसी के घर मना था पहला जश्न
लोकसभा चुनाव 2024 के मैदान से गुलाम नबी आजाद पीछे हट गए हैं। 75 साल के आजाद ने कहा है कि वह अनंतनाग राजौरी से चुनाव नहीं लड़ेंगे। आजाद ने बिना कोई कारण बताए चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। उनकी पार्टी ने दूसरे उम्मीदवार की घोषणा कर दी है।
75 साल के आजाद चार दशक से भी ज्यादा समय तक कांग्रेस में रहे। 2022 में कांग्रेस छोड़कर उन्होंने की एक पार्टी बनाई- डीपीएपी यानी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी।
आजाद 1980 में पहली बार सातवीं लोकसभा के लिए चुने गए थे और फिर 84 में भी वह लोकसभा के सांसद बने। फिर 1991 से 2006 तक लगातार वह राज्यसभा सांसद रहे थे। गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस में रहते हुए सांसद से लेकर मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष तक का सफर तय किया।
Azaad an autobiography में गुलाम नबी आजाद ने बताया पहली बार सांसद बनने का पूरा किस्सा
गुलाम नबी आजाद पहली बार 1980 में सांसद बने थे। पहली बार उनके सांसद बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। इसका जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा 'आजाद एन ऑटोबायोग्राफी' में किया है। उनकी यह जीवनी रूपा पब्लिकेशंस से प्रकाशित हुई है।
आजाद ने बताया है कि किस तरह इंदिरा गांधी ने पहली बार उन्हें लोकसभा का टिकट दिया था। संसदीय बोर्ड के सदस्य की आपत्ति के बावजूद।
1980 Lok Sabha elections: टिकट के बारे में सोचा तक नहीं था
जब 1980 के लोकसभा चुनाव के लिए टिकट देने का काम चल रहा था तो आजाद के मन में अपने लिए टिकट मांगने का ख्याल तक नहीं था। इसकी वजह यह थी कि कांग्रेस का नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ समझौता हुआ था और राज्य की केवल एक सीट (जम्मू) कांग्रेस को मिली थी। पांच सीटों पर अब्दुल्ला की पार्टी को लड़ना था। जब आजाद ने इंदिरा गांधी से कहा कि यह डील तो एकतरफा है तो इंदिरा ने तर्क दिया कि यह देश भर में मुसलमानों की आबादी के लिहाज से कांग्रेस के पक्ष में सकारात्मक असर करेगी।
कांग्रेस ने जम्मू की इकलौती सीट से राज्य के पूर्व वित्त मंत्री और वरिष्ठ नेता गिरधारी लाल डोगरा को उम्मीदवार बनाया। डोगरा दिवंगत भाजपा नेता अरुण जेटली के श्वसुर थे।
Indira Gandhi Ghulam Nabi Azad: पर्ची में था तीन सीटों का नाम
टिकट बंटवारे का काम जब आखिरी चरण में था तो इंदिरा गांधी ने गुलाम नबी आजाद को बुलवाया। जिस कमरे में कांग्रेस पार्लियामेंट्री बोर्ड (सीपीबी) की मीटिंग चल रही थी, उस कमरे में आजाद गए तो इंदिरा गांधी ने कागज का एक टुकड़ा थमा दिया और उनसे कहा कि एक सीट चुन लें जहां से वह चुनाव लड़ना चाहते हैं। पर्ची में तीन सीटों का नाम था। दो नाम महाराष्ट्र से थे और एक मध्य प्रदेश से था।
मीटिंग रूम में मीर कासिम भी बतौर सीपीबी सदस्य मौजूद थे। उन्होंने आजाद को टिकट की पेशकश किए जाने पर बड़ी हैरानी जताई और एक तरह से यह कहते हुए आपत्ति जताई कि यह लड़का जम्मू कश्मीर से दूर किसी अनजान सीट से चुनाव लड़ने के लिए कैसे चुना जा सकता है! इंदिरा गांधी उन पर एक तरह से बरस पड़ी थीं।
आजाद लिखते हैं- इंदिरा ने उन्हें यह कह कर चुप करा दिया कि आप को भी उपचुनाव के दो मौकों पर आंध्र प्रदेश में सिकंदराबाद और उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ से लड़ने के लिए कहा गया था, लेकिन दोनों ही मौकों पर आपने यह कहते हुए नकार दिया कि हम हार जाएंगे। पर, दोनों ही जगह हम जीते। असल में आपमें चुनाव लड़ने की हिम्मत ही नहीं है और अब आप इस लड़के को भी हतोत्साहित करना चाहते हैं।
Ghulam Nabi Azad Washim seat: वाशिम सीट से लड़ा चुनाव
इंदिरा की बात सुन मीर कासिम शांत पड़ गए। इस बीच गुलाम नबी आजाद ने मन बना लिया था। उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा- मैं महाराष्ट्र के वाशिम से लड़ने के लिए तैयार हूं।
महाराष्ट्र की वाशिम सीट चुनने की एक वजह थी। आजाद लिखते हैं कि जब वह इंडियन यूथ कांग्रेस (आईवायसी) के महासचिव थे और महाराष्ट्र के प्रभारी थे तो उस समय संजय गांधी ने कुछ समय के लिए उन्हें महाराष्ट्र आईवायसी का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया था। इस दौरान कांग्रेस के कई नेताओं से गुलाम नबी आजाद के अच्छे संबंध बन गए थे।
इस तरह वाशिम सीट से आजाद की उम्मीदवारी तय हो गई। इसके बाद इंदिरा गांधी ने वरिष्ठ नेता ए आर अंतुले और जवाहरलाल दर्डा को कहा कि आजाद की पूरी मदद की जाए। ए आर अंतुले उस समय कांग्रेस महासचिव और संसदीय दल के सदस्य हुआ करते थे, जबकि जवाहरलाल दर्डा नागपुर के वरिष्ठ नेता थे।
अब बात आई नामांकन पत्र दाखिल करने की। केवल 2 दिन बचे थे। इन दो दिनों में गुलाम नबी आजाद को वाशिम पहुंचना था। नागपुर से वाशिम, 5 घंटे का रास्ता था। वहां पहुंचने से पहले उन्हें जम्मू भी जाना था क्योंकि वहां से उन्हें वोटर लिस्ट की एक सर्टिफाइड कॉपी लेनी थी जो नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए जरूरी था।
आजाद ने उसी रात का जम्मू का टिकट कटाया। रेलवे स्टेशन जाने से पहले वह इंदिरा गांधी के यहां गए, ताकि उन्हें औपचारिक रूप से धन्यवाद कह सकें। वहां इंदिरा गांधी ने उन्हें एक और बात पता चली।
छोटी सी मुलाकात में इंदिरा से कई बातें पता चलीं
इंदिरा ने उन्हें बताया कि 6 महीने पहले ही उन्होंने वीसी शुक्ला और एआर अंतुले से कहा था कि आजाद के लिए कोई सुरक्षित सीट तलाशें। उन्हें यह बात सार्वजनिक नहीं करने की हिदायत भी दी थी। उसी मुलाकात में इंदिरा गांधी ने आजाद को यह भी बताया कि ऐसा पहली बार हुआ था कि महाराष्ट्र की सीटों के बंटवारे में उन्होंने दखल दिया हो, वरना पहले वायबी चौहान ही महाराष्ट्र के सारे उम्मीदवार तय किया करते थे। साथ ही, इंदिरा ने यह भी बताया कि पूरे देश में सुरक्षित सीटों पर उम्मीदवार तय करने की जिम्मेदारी जगजीवन राम की थी।
बहरहाल, आजाद जम्मू गए फिर वहां से लौट कर पर्चा भरने के लिए वाशिम पहुंचे। वहां आजाद को स्थानीय कांग्रेसियों का भरपूर साथ मिला। एक पुराने कांग्रेसी और वकील आईजी राठी ने अपनी नई फिएट कार की चाबी आजाद को सौंप दी। आज़ाद पूरे प्रचार में इसी कार से घूमते रहे।
इंदिरा को प्रचार करने से मना किया
आजाद ने अपनी कैंपेनिंग शुरू की। इस बीच इंदिरा गांधी ने अपने निजी सचिव आरके धवन के जरिए खबर भिजवाई कि वह आजाद के लिए प्रचार करने के लिए आना चाहती हैं। आजाद ने कहलवाया- उनका समय बेकार जाएगा क्योंकि उनकी हार तो निश्चित ही है। बेहतर होगा कि इंदिरा जी यूपी व जीत की संभावनाओं वाली अन्य सीटों पर प्रचार करें।
वाजपेयी के प्रचार से हो गया आजाद का फायदा
वाशिम से आजाद के खिलाफ जनता पार्टी और शरद पवार की इंडियन नेशनल कांग्रेस (यू) ने साझा उम्मीदवार खड़ा किया था। वाशिम संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस का कोई भी विधायक नहीं था। इस वजह से आजाद की अपनी हार निश्चित लग रही थी। पूरे चुनाव में उनके विरोधियों ने उनके बाहरी होने का मुद्दा उठाया।
आजाद लिखते हैं कि उनके चुनाव अभियान के छठे या सातवें दिन अटल बिहारी वाजपेयी जनता पार्टी के उम्मीदवार का प्रचार करने के लिए एक सभा को संबोधित करने आए थे। उन दिनों वह वाजपेई से परिचित नहीं थे। अपने भाषण में वाजपेई ने आजाद पर जमकर निशाना साधा और कांग्रेस पर भी हमला किया। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी को कोई स्थानीय उम्मीदवार इस क्षेत्र से खड़ा करने के लिए नहीं मिला, इसलिए उन्हें कश्मीर से उम्मीदवार आयात करना पड़ा।
वाजपेयाी की जनसभा एक तरह से आजाद के लिए वरदान साबित हो गई। अब हर व्यक्ति यह देखना चाहता था कि आखिर वह कश्मीरी लड़का है कौन, जिस पर वाजपेई निशाना साध गए। इस वजह से आजाद की सभाओं में भीड़ जुटने लगी। 10000 से 15000 लोगों की भीड़ उनकी सभाओं में आने लगी। अब लोग आजाद को गंभीरता से लेने लगे थे। एक-दो दिन बाद प्रचार के लिए शरद पवार और उनके बाद जगजीवन राम के आने से भी आजाद की लोकप्रियता बढ़ी।
विपक्ष ने उठाया बाहरी का मुद्दा, उल्टा हो गया फायदा
जाद का कश्मीर से होना एक तरह से फायदे की बात साबित होने लग गई थी। आजाद की सभा में ज्यादा से ज्यादा लोग जुटने लगे। कभी-कभार भीड़ को काबू में करने के लिए लाठी चार्ज तक की नौबत आ जाती थी। 10 दिन तक पूरे राज्य की मीडिया में आजाद का नाम छाया रहा और वह सेलिब्रिटी बन गए थे। पूरे महाराष्ट्र से उम्मीदवार उन्हें अपने क्षेत्र में बुलाने बुलाने लगे पूरे राज्य में कांग्रेस के कई उम्मीदवारों के लिए आजाद ने प्रचार भी किया।
आजाद अपने भाषणों में अपने विरोधी उम्मीदवार का नाम लेकर कुछ नहीं बोलते थे। वह जनता पार्टी पर निशाना चाहते थे और जीतने पर क्षेत्र के लिए किए जाने वाले काम की बात करते थे। इस वजह से उनकी लोकप्रियता और बढ़ी। जनता पार्टी के नेताओं ने भी इस बात को नोटिस किया कि आजाद विरोधी उम्मीदवार का नाम नहीं लेते हैं। शायद यही कारण रहा कि जब उनके विरोधी उम्मीदवार प्रताप सिंह राम सिंह ने अपने घर पर आजाद के पोस्टर लगे देखे तो भी उन्हें हटाने का आदेश नहीं दिया।
आजाद से विरोधी उम्मीदवार ने कहा- मेरे घर मने आपकी जीत का पहला जश्न
चुनाव के बाद जब मतगणना हो रही थी तो चौथे चरण के बाद ही यह साफ हो गया था कि आजाद जीत रहे हैं। राम सिंह उनके पास आए और कहा कि आपकी जीत का पहला जश्न मेरे घर पर होना चाहिए। आजाद ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। राम सिंह अपने घर गए और जश्न की तैयारी करने लगे। परिणाम की घोषणा हुई तो आजाद भी राम सिंंह के घर पहुंच गए। वहां करीब 5000 लोगों की भीड़ थी जिसमें आजाद के समर्थकों के साथ-साथ राम सिंंह के समर्थक भी मौजूद थे। राम सिंह ने छोटा सा भाषण भी दिया और अंत में उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन करने की घोषणा कर दी।