गौतम अडानी ने की नरसिंंह राव, मनमोहन सिंंह के काम की तारीफ
अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी ने कांग्रेस सरकार में किए गए आर्थिक सुधारों की प्रशंसा की है। अडानी ने कांग्रेस शासन के दौरान शुरू किए गए 1991 के सुधारों को भारत की आर्थिक प्रगति की नींव कहा। उन्होंने 2014 के बाद के कार्यकाल को विकास का "टेक-ऑफ" भी कहा।
अडानी बुधवार को मुंबई में आयोजित क्रिसिल इंफ्रास्ट्रक्चर शिखर सम्मेलन में बोल रहे थे। इस दौरान अडानी ने कहा, "अगर 1991 से 2014 के बीच की अवधि नींव रखने और रनवे के निर्माण के बारे में थी तो 2014 से 2024 तक की अवधि विमानों के उड़ान भरने के बारे में है।"
वर्तमान सरकार की प्रशंसा करते हुए अडानी ने कहा, “इस उड़ान को सक्षम बनाने वाला एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण कारण पिछले दशक में अच्छा शासन रहा है।"
गौतम अडानी ने की नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की प्रशंसा
गौतम अडानी ने कहा, "दिवंगत प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव और उस समय के वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा लाये गए सुधारों ने भारत के आर्थिक इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।" 1991 में कांग्रेस की केंद्र सरकार ने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के उद्देश्य से आर्थिक सुधारों की श्रृंखला शुरू की। अडानी ने साल 1991 और उसके सुधारों को भारत के विकास में बड़ा मोड़ बताया।
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तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा घोषित उदारीकरण नीति में बदलाव की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा, “लाइसेंस राज के टूटने का मतलब था कि सरकार ने अधिकांश क्षेत्रों के लिए औद्योगिक लाइसेंसिंग को खत्म कर दिया। इसने व्यवसायों को निवेश करने या कीमतें निर्धारित करने या क्षमता निर्माण करने के लिए सरकारी अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता को समाप्त कर दिया।"
नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह द्वारा किए गए आर्थिक सुधार
पीवी नरसिम्हा राव को एक ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में देखा जाएगा, जिन्होंने आर्थिक सुधारों की शुरुआत करके भारत को समृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ाया। उनका आर्थिक सुधार एजेंडा मुख्य रूप से 'उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण' पर केंद्रित था, जिसे अक्सर LPG के रूप में जाना जाता है। राव-मनमोहन सिंह की जोड़ी को देश को गंभीर विदेशी मुद्रा संकट से वापस निकालने का श्रेय जाता है।
राव की 1991 की सरकार ने यह उपलब्धि तब हासिल की जब भारतीय अर्थव्यवस्था डिफ़ॉल्ट के कगार पर थी और उसे बेल आउट पैकेज के लिए देश के स्वर्ण भंडार को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में गिरवी रखने की बदनामी झेलनी पड़ी थी। जनवरी 1991 में तो भारत के पास महज 89 करोड़ डॉलर विदेशी मुद्रा थी, जो लगभग दो सप्ताह के आयात के लिए ही पर्याप्त थी।
उसी समय अप्रवासी भारतीयों ने भारतीय बैंकों से अपने पैसे निकालने शुरू कर दिए थे। इसके अलावा भारत द्वारा अस्सी के दशक में लिए गए अल्पकालीन ऋण की ब्याज दर बढ़ चुकी थी। अगस्त, 1991 तक मुद्रा स्फीति भी बढ़ कर 16.7 फ़ीसदी हो गई थी।
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देश में उदारीकरण की शुरुआत
डॉ. मनमोहन सिंह 1991 में वित्त मंत्री थे जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने बजट पेश किया था जो भारतीय अर्थव्यवस्था को उदार बनाने के लिए जाना जाता है। पी. चिदम्बरम वाणिज्य मंत्रालय के राज्य मंत्री थे और मोंटेक सिंह अहलूवालिया वाणिज्य सचिव थे। बजट में नई आर्थिक नीतियों को लागू कर भारत की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से खोल दिया गया। यहीं से देश में उदारीकरण की शुरुआत हुई। इन सुधारों को सामने लाने के पीछे राव के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह थे।
भारत में 'लाइसेंस राज' का अंत
डॉ. मनमोहन सिंह के 1991-92 के बजट भाषण ने भारत में 'लाइसेंस राज' के अंत की शुरुआत की। बजट में आयात शुल्क में कटौती की भी घोषणा की गई और भारत में विदेशी निर्मित वस्तुओं को आने का रास्ता दिया गया। इसके बाद, अधिकांश मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिया गया। भारत की औद्योगिक नीति को खत्म कर दिया गया। इस नीति का सबसे महत्वपूर्ण वाक्य था, 'अब से सभी उद्योंगों में लाइसेंसिंग का नियम समाप्त किया जाता है। सिर्फ़ 18 उद्योगों में जिनका विवरण संलग्नक में दिया गया है, लाइसेंसिंग का नियम जारी रहेगा।'
एक दिन में ही नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह ने मिल कर लाइसेंस राज के तीन स्तंभों- सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार, प्राइवेट कारोबार को सीमित करना और ग्लोबल मार्केट से दूरी को ध्वस्त कर दिया।
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नरसिम्हा राव के सामने पहली चुनौती आई थी रुपए की अवमूल्यन की
उससे पहले नरसिम्हा राव के सामने पहली चुनौती आई थी रुपए की अवमूल्यन की। मनमोहन सिंह ने नरसिम्हा राव को अपने हाथ से लिखा अति गोपनीय नोट भेजा जिसमें रुपए के अवमूल्यन की सलाह दी गई थी लेकिन ये भी कहा था कि इसे दो चरणों में किया जाए। 1 जुलाई, 1991 को रुपए का पहला अवमूल्यन किया गया। 48 घंटे बाद रुपए को दोबारा अवमूल्यन किया गया।
राव सरकार द्वारा किया गया दूसरा बदलाव था बड़ी कंपनियों के प्रति एकाधिकार विरोधी प्रतिबंधों को आसान बनाना। तीसरा क्राँतिकारी परिवर्तन था 34 उद्योगों में विदेशी निवेश की सीमा को 40 फ़ीसदी से बढ़ा कर 51 फ़ीसदी करना।
संजय बारू ने अपनी किताब '1991 हाऊ पी वी नरसिम्हा राव मेड हिस्ट्री' में लिखा, 'नेहरू और इंदिरा के प्रति सम्मान प्रकट करने और भारत के औद्योगीकरण में उनके योगदान को याद करने के बाद नरसिम्हा राव ने एक झटके में समाजवाद के नाम पर खड़ी औद्योगिक नीति को इतिहास का एक हिस्सा बना दिया।
1991 से 2024 तक भारत के प्रधानमंत्री
साल | भारत के प्रधानमंत्री |
1991 | पीवी नरसिम्हा राव |
1996 | अटल बिहारी वाजपेयी |
1996 | एचडी देवगौड़ा |
1997 | इंद्र कुमार गुजराल |
1998 | अटल बिहारी वाजपेयी |
2004, 2009 | मनमोहन सिंह |
2014 से अब तक | नरेंद्र मोदी |