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Kannauj: यहां 1998 से लगातार जीत रही थी सपा लेकिन 2019 में बीजेपी ने रोक दिया था विजय रथ, इस बार क्या होगा?

2019 में डिंपल यादव की हार से पहले, कन्नौज से 1999 से 2014 तक हर चुनाव में यादव परिवार का ही सदस्य चुनाव जीता।
Written by: shrutisrivastva
नई दिल्ली | Updated: May 08, 2024 14:34 IST
अखिलेश यादव कन्‍नौज सीट से चुनाव मैदान में हैं (PC- PTI)
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कन्‍नौज लोकसभा क्षेत्र यादव परिवार का गढ़ रहा है। सपा यहां 1998 से लगातार लोकसभा का चुनाव जीत रही थी पर 2019 में बीजेपी ने उसका विजय रथ रोक दिया था। इस सीट को फिर से सपा की झोली में डालने के लिए 2024 में पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव खुद चुनाव मैदान में उतरे हैं। 

1998 में पहली बार समाजवादी पार्टी के प्रदीप यादव ने यह सीट जीतकर यहां सपा का विजय रथ शुरू किया था। यादव परिवार ने 1999 से 2018 तक संसद में इसका प्रतिनिधित्व किया। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव 1999 में कन्नौज से जीते थे। संभल सीट को बरकरार रखने के लिए मुलायम सिंह के कन्नौज सीट खाली करने के बाद अखिलेश ने 2000 में कन्नौज से चुनावी शुरुआत की। जहां उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के दिग्गज नेता अकबर अहमद डम्पी को 58,000 से अधिक वोटों से हराया। अखिलेश यादव कन्नौज से लगातार 3 चुनाव (2000, 2004 और 2009 का आम चुनाव) जीते थे।

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डिंपल यादव 2019 के आम चुनाव में कन्नौज से हार गयी थीं

​​2014 में, पार्टी ने डिंपल को मैदान में उतारा और उन्होंने सीट बरकरार रखी लेकिन 2019 के चुनाव में वह अपना प्रदर्शन दोहराने में असफल रहीं और भाजपा के सुब्रत पाठक से 12,353 वोटों से हार गईं। जिसके बाद इस बार के चुनाव में अखिलेश यहां से मैदान में हैं।

आखिरी मिनट में अखिलेश का नामांकन योजनाबद्ध था- सपा नेता

अखिलेश यादव ने आखिरी मिनट पर अपने भतीजे और पूर्व मैनपुरी सांसद तेज प्रताप यादव की जगह यहां से चुनाव लड़ने का फैसला लिया। ऐसा उन्होंने स्थानीय सपा कार्यकर्ताओं के कहने पर किया। सपा के कन्नौज जिला अध्यक्ष कलीम खान ने इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान कहा, "यह सब योजनाबद्ध था, देर से लिए गए निर्णय का मतलब है कि अखिलेश के नामांकन के बाद भाजपा को अपने उम्मीदवार और मौजूदा सांसद सुब्रत पाठक को बदलने का कोई मौका नहीं मिला। सुब्रत पाठक ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव को इस सीट से हराया था।

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कलीम खान आगे कहते हैं, “ऐसी खबरें थीं कि बीजेपी अखिलेश के खिलाफ हार के डर से सुब्रत पाठक को हटा देगी लेकिन जब सपा ने तेज प्रताप का नाम लिया तो उन्हें लगा कि वे उन्हें हरा सकते हैं। अब अखिलेश जी ने पाठक की हार निश्चित कर दी है।'' कलीम खान का कहना है कि पार्टी को मुसलमानों के अलावा गैर-यादव ओबीसी और ऊंची जातियों के वोट भी मिलने का भरोसा है।

क्या चाहते हैं कन्नौज के निवासी?

इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान, कन्नौज के एक स्थानीय निवासी शिवम तिवारी कहते हैं, "सुब्रत पाठक मुख्यतः उच्च जातियों और दलितों के समर्थन के कारण जीते। उन्होंने सपा सरकार द्वारा यादवों और मुसलमानों के तुष्टीकरण के खिलाफ आवाज उठाई।'' इत्र निर्माता मोहम्मद नायाब ने कहा कि वे सपा के पक्के समर्थक हैं। वह इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान कहते हैं, “चूंकि अखिलेश सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं इसलिए मुकाबला रोचक हो गया है। अब सपा कार्यकर्ता क्षेत्र में सक्रिय हैं, पहले वे नहीं थे।”

मोहम्मद नायब कहते हैं कि इत्र उद्योग केंद्र में भाजपा के 10 साल के शासन में संकट में है। उन्होंने कहा, "सरकार 18% टैक्स (जीएसटी) ले रही है लेकिन उद्योग के लिए कुछ नहीं कर रही है।" अभिजीत सी केलकर जिनकी कन्नौज में एक मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट है, किसानों से सीधे जुड़े कुटीर उद्योग पर करों के बारे में भी शिकायत करते हैं।

भाजपा को जीत की उम्मीद

वहीं, इत्र निर्माता प्रफुल्ल केलकर का कहना है कि सुब्रत पाठक के लिए 2019 का प्रदर्शन दोहराना कठिन हो सकता है लेकिन मुझे लगता है कि वह जीतेंगे क्योंकि नरेंद्र मोदी जी एक बड़ा ब्रांड हैं।" इस बार सपा और बसपा के अलग-अलग चुनाव लड़ने के कारण बीजेपी सुब्रत पाठक की जीत को लेकर ज्यादा आश्वस्त है। 2019 में जब दोनों पार्टियों का गठबंधन था और कांग्रेस ने भी डिंपल के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था, तब भी उन्होंने सीट जीती थी। बीजेपी नेता शरद मिश्रा इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान कहते हैं, ''यह चुनाव आसान होगा क्योंकि दलित और मुस्लिम वोट बीएसपी और एसपी के बीच बंट जाएंगे।''

कौन-कौन है कन्नौज के चुनाव मैदान में?

बसपा ने चमड़ा व्यवसायी इमरान बिन जफर को मैदान में उतारा है, जिन्होंने 2014 में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में कन्नौज से चुनाव लड़ा था और उन्हें केवल 4,826 वोट मिले थे। जफर बीजेपी की तरह ही सपा पर भी निशाना साधते हुए उसे 'बीजेपी की बी टीम' बता रहे हैं। इमरान इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान कहते हैं, “सपा के पास कोई मुस्लिम नेतृत्व नहीं है। वे मुस्लिम वोट तो लेते हैं लेकिन उन्हें कोई प्रतिनिधित्व नहीं देते केवल बसपा प्रमुख मायावती ही भाजपा से लड़ रही हैं।'

कन्नौज में भाजपा की तैयारी

कन्नौज लोकसभा सीट पर चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अपने विधायकों की चुनाव सक्रियता व प्रदर्शन को परखने के लिए पर्यवेक्षक लगाए हैं। सुब्रत पाठक के चुनाव में प्रचार करने के लिए श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मुख्य पक्षकार और भाजपा नेता मनीष यादव ने कन्नौज में डेरा डाला। भारतीय जनता पार्टी ने यादवों में मजबूत पकड़ रखने वाले नेताओं को कन्नौज में रोकने का प्लान बनाया है। सूत्रों की माने तो कन्नौज में अखिलेश यादव का रथ रोकने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव भी कन्नौज पहुंच सकते हैं। बीजेपी नेताओं का मानना है कि मोहन यादव के आने से बड़ा असर पड़ेगा।

कन्नौज लोकसभा क्षेत्र

कन्नौज लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधनसभाएं छिबरामऊ, तिरवा, कन्नौज, बिधुना और रसूलाबाद आती हैं। कन्नौज में जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 3 लाख है, वहीं दलितों की संख्या करीब 2.8 लाख और यादवों की संख्या 2.5 लाख है। पिछली बार भाजपा ने यादव और दलित मतदाताओं के एक बड़े वर्ग के समर्थन से जीत हासिल की थी।

कन्नौज लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम

पिछले आम चुनाव में कन्नौज सीट पर भाजपा को 49.37% और सपा को 48.29% मत मिले थे। बीजेपी के सुब्रत पाठक ने 5.63 लाख वोटों के साथ यह चुनाव जीता था। उन्होंने सपा की डिंपल यादव को हराया था। डिंपल को 5.50 लाख वोट मिले थे।

कन्नौज लोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम

पिछले आम चुनाव में कन्नौज सीट पर सपा को 43.89%, भाजपा को 42.11% और बसपा को 11.47% मत मिले थे। डिंपल ने 4.89 लाख वोटों के साथ यह चुनाव जीता था। उन्होंने बीजेपी के सुब्रत पाठक को हराया था। सुब्रत को 4.69 लाख वोट मिले थे।

(इंडियन एक्स्प्रेस से इनपुट के साथ)

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