दलित-पिछड़ा ही नहीं, चार और मुद्दों पर नाराजगी के चलते बी.आर. आंबेडकर ने दिया था नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18वीं लोकसभा के पहले सत्र के अंत में दिए भाषण में कहा कि कांग्रेस की दलित और पिछड़ा विरोधी मानसिकता की वजह से ही डॉ. भीमराव आंबेडकर ने जवाहर लाल नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। इसके अलावा चार और बड़े कारण थे, जिनका जिक्र खुद बाबा साहब ने अपने इस्तीफे के कारणों के रूप में किया था। इस्तीफे पर दिया उनका बयान उनके लेखों के संग्रह में दर्ज है। हालांकि, सरकार के रिकॉर्ड में उनके इस्तीफे की असली वजह से संबंधित प्रामाणिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं बताया जाता है।
दो जुलाई को जब पीएम मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई बहस का जवाब दे रहे थे तो कांग्रेस पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने कहा था
...और इसी कारण से बाबा साहेब आंबेडकर ने कांग्रेस की दलित विरोधी, पिछड़े विरोधी मानसिकता के कारण, नेहरू जी की कैबिनेट से इस्तीफा दिया था। उन्होंने पर्दाफाश किया था कि कैसे नेहरू जी ने दलितों, पिछड़ों के साथ अन्याय किया। और बाबा साहब आंबेडकर ने कैबिनेट से इस्तीफा देते समय जो कारण बताए थे वो कारण इनके चरित्र को दर्शाते हैं। बाबा साहब आंबेडकर जी ने कहा था मैं सरकार द्वारा अनुसूचित जातियों की उपेक्षा पर अपने अंदर उत्पन्न आक्रोश को रोक नहीं सका, ये बाबा साहब आंबेडकर के शब्द हैं। अनुसूचित जातियों की उपेक्षा इसने बाबा साहब आंबेडकर को आक्रोशित कर दिया। बाबा साहब के सीधे हमले के बाद नेहरू जी ने बाबा साहब आंबेडकर का राजनीतिक जीवन खत्म करने के लिए पूरी ताकत लगा दी।
आदरणीय सभापति जी,
पहले षड्यंत्र पूर्वक बाबा साहब आंबेडकर को चुनाव में हरवाया गया।
आदरणीय सभापति जी,
हराया इतनी ही नहीं, उन्होंने बाबा साहब आंबेडकर के इस पराजय की, उसका जश्न मनाया, खुशी मनाई और खुशी उन्होंने व्यक्त की।
आदरणीय सभापति जी,
एक पत्र में ये लिखित है इस खुशी का, आदरणीय सभापति जी, बाबा साहब की तरह ही दलित नेता बाबू जगजीवन राम जी को भी उनका हक नहीं दिया गया।
प्रधानमंत्री ने क्या कहा था, वह यहां सुन सकते हैं।
डॉ. आंबेडकर को नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा क्यों देना पड़ा था? इस बारे में जब आरटीआई के तहत जानकारी मांगी गई तो नहीं मिल सकी। 2023 में द हिंंदू अखबार में छपी खबर के मुताबिक यह जानकारी उपलब्ध नहीं है।
यह बात सही है कि नेहरू की कैबिनेट का हिस्सा होने के बावजूद कांग्रेस के अधिकांश नेताओं के साथ आंबेडकर के रिश्ते ठीक नहीं थे। नेहरू और आंबेडकर की विचारधारा एक-दूसरे से बहुत अलग नहीं थी लेकिन कई बातों को लागू करने को लेकर उनके विचार काफी अलग थे, खासकर जाति के आधार पर आरक्षण, हिंदू लॉ के कोडिफिकेशन और विदेश नीति पर विचार को लेकर। साथ ही कश्मीर भी एक ऐसा मुद्दा था जिस पर इन दोनों के विचार नहीं मिलते थे।
पोर्टफोलियो में अनदेखी का आरोप
डॉ. आंबेडकर ने अपने इस्तीफे पर दिए गए बयान में कहा था कि वह सरकार में कुछ और प्रशासनिक पोर्टफोलियो चाहते थे। उन्हें कानून के अलावा योजना विभाग मिला लेकिन वह भी बहुत देर से। उस दौरान मंत्रियों के बीच कई पोर्टफोलियो की अदला-बदली भी हुई लेकिन उन्हें हमेशा से ही अनदेखा किया गया। कई मंत्रियों को दो या तीन पोर्टफोलियो दे दिए गए। आंबेडकर ने लिखा था कि यह समझना मुश्किल है कि प्रधानमंत्री द्वारा मंत्रियों के बीच सरकारी काम के बंटवारे में क्या सिद्धांत अपनाया जाता है। उन्हें मंत्रिमंडल की मुख्य समितियों, जैसे विदेश मामलों की समिति या रक्षा समिति का सदस्य भी नहीं नियुक्त किया गया था। ऐसा कहना सही नहीं होगा कि मेरे साथ अन्याय हुआ है।
पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जातियों के साथ व्यवहार
दूसरा मामला पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जातियों के साथ किए गए व्यवहार से संबंधित है। मुझे बहुत दुख हुआ कि संविधान में पिछड़े वर्गों के लिए कोई सुरक्षा नहीं दी गई थी और इसे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक आयोग की सिफारिशों के आधार पर कार्यकारी सरकार के लिए छोड़ दिया गया था। संविधान पारित हुए एक साल से भी अधिक का समय बीत चुका है लेकिन सरकार ने आयोग नियुक्त करने के बारे में सोचा भी नहीं है।
1946 में ब्रिटिश अनुसूचित जातियों के लिए संवैधानिक सुरक्षा के मामले में किए गए वादों से मुकर गए थे और अनुसूचित जातियों को यह पता नहीं था कि संविधान सभा इस बारे में क्या करेगी।
अनुसूचित जातियों की स्थिति की रक्षा के लिए संविधान में किए गए प्रावधानों से मैं संतुष्ट नहीं था। आज भी अनुसूचित जातियों पर अत्याचार हो रहे हैं। जातीय उत्पीड़न से परेशान इन जातियों के लोग मुझसे मिले हैं। मुसलमानों की सुरक्षा के लिए सरकार जो चिंता दिखाती है वह अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों के लिए क्यों नहीं दिखाती?
मैं सरकार द्वारा अनुसूचित जातियों की उपेक्षा को लेकर पैदा हुए गुस्से को अपने भीतर नहीं रख सका इन जातियों की एक बैठक में अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। गृह मंत्री से एक प्रश्न पूछा कि क्या मेरा आरोप कि अनुसूचित जातियों को उस नियम से लाभ नहीं हुआ है जिसने उन्हें 12 ½ प्रतिशत प्रतिनिधित्व की गारंटी दी थी। उन्होंने मेरे आरोप को निराधार बताया। उन्होंने भारत सरकार के विभिन्न विभागों को एक परिपत्र भेजा जिसमें उन्हें यह बताने के लिए कहा गया था कि हाल ही में सरकारी सेवा में अनुसूचित जाति के कितने उम्मीदवारों की नियुक्ति की गई थी। मुझे बताया गया है कि अधिकांश विभागों ने जवाब में "शून्य" या लगभग शून्य कहा।
विदेश नीति का मामला
तीसरा मामला जिस वजह से मैं चिंतित हूं, वह है विदेश नीति। 15 अगस्त, 1947 को जब हमने एक स्वतंत्र देश के रूप में अपना जीवन शुरू किया, तो कोई ऐसा देश नहीं था जो हमारा बुरा चाहता हो। दुनिया का हर देश हमारा मित्र था। आज, चार साल बाद, हमारे सभी मित्र हमसे अलग हो गए हैं। हमारे पास कोई मित्र नहीं बचा है।
पाकिस्तान के साथ हमारा झगड़ा हमारी विदेश नीति का एक हिस्सा है जिसके बारे में मैं बहुत असंतुष्ट महसूस करता हूँ। दो कारण हैं जिन्होंने पाकिस्तान के साथ हमारे संबंधों को बिगाड़ा है - एक कश्मीर है और दूसरा पूर्वी बंगाल में हमारे लोगों की स्थिति। मुझे लगा कि हमें पूर्वी बंगाल के बारे में अधिक चिंतित होना चाहिए जहाँ हमारे लोगों की स्थिति कश्मीर से भी खराब लगती है।
चौथा मामला यह है कि मंत्रिमंडल अब समितियों द्वारा काम करता है। एक रक्षा समिति है। एक विदेश समिति है। रक्षा से संबंधित सभी महत्वपूर्ण मामले रक्षा समिति द्वारा निपटाए जाते हैं। मंत्रिमंडल के सदस्य उनके द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। मैं इनमें से किसी भी समिति का सदस्य नहीं हूं।
हिंदू कोड बिल
पांचवा मामला हिंदू कोड बिल का है, जिसके कारण अंततः मैंने यह निर्णय लिया कि मुझे इस्तीफा देना चाहिए।
डॉ. आंबेडकर ने 27 सितंबर, 1951 को जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा दिया था। डॉ. आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल पर काफी काम किया था और वह शादी, तलाक और विरासत से संबंधित हिंदू पर्सनल लॉ में सुधार करना चाहते थे। लेकिन उन्हें इसके लिए भारी विरोध का सामना करना पड़ा। जवाहरलाल नेहरु हिंदू कोड बिल के खिलाफ नहीं थे।
1947 से 50 तक जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने हिंदू कोड बिल के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा था लेकिन 1951 में वह इस बिल के विरोध में उतर आए और उन्होंने कहा कि यह हिंदू संस्कृति के लिए घातक है।
राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी थे विरोध में
हिंदू कोड बिल को लेकर कांग्रेस के भीतर भी विरोध की आवाज उठ रही थी। राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने भी हिंदू कोड बिल का विरोध किया था और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से बार-बार कहा था कि इसे पास नहीं किया जाना चाहिए।
अगस्त, 1951 में एक बार फिर हिंदू कोड बिल को संसद में रखा जाना था लेकिन कांग्रेस पार्टी ने इस बात का दबाव बना दिया था कि इस बिल को रद्द कर दिया जाए। ऐसे वक्त में डॉक्टर आंबेडकर ने प्रधानमंत्री नेहरू से अनुरोध किया कि हिंदू कोड बिल पर बहस तुरंत शुरू कराई जाए और नहीं तो कम से कम इसके ऐसे हिस्से जो शादी, तलाक और एक विवाह से संबंधित हैं, उन्हें पास कर कानून बना दिया जाए।
नेहरू सहमत हो गए लेकिन उन्होंने कहा कि इस पर चर्चा 5 सितंबर के बाद ही हो सकती है हालांकि बाद में चर्चा 10 सितंबर को शुरू हुई और एक हफ्ते बाद यह साफ हो गया कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव से पहले हिंदू कोड बिल के किसी भी हिस्से को नहीं अपनाना चाहती थी।
निराश होकर आंबेडकर ने दिया इस्तीफा
27 सितंबर को डॉक्टर आंबेडकर ने इस्तीफा दे दिया। 11 अक्टूबर को उन्हें अपने इस्तीफे की वजह बताने से रोक दिया गया क्योंकि उन्होंने अपने इस्तीफे की कॉपी जमा नहीं की थी। इसके विरोध में डॉक्टर आंबेडकर ने अपने बयान को प्रेस कॉर्प्स को दे दिया। इसमें उन्होंने कई बातें कही थी लेकिन विशेषकर हिंदू कोड बिल को लेकर निराशा जाहिर की थी। यह भी कहा था कि जवाहरलाल नेहरू ईमानदारी से इसका समर्थन कर रहे थे।
डॉ. आंबेडकर ने कांग्रेस के सत्येंद्र नारायण सिन्हा पर आरोप लगाया कि उन्होंने हिंदू कोड बिल के मामले में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से कहा कि इसे रोक दिया जाए। हालांकि बाद में हिंदू कोड बिल के सभी हिस्सों को धीरे-धीरे और टुकड़ों में पास कर दिया गया और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने इन सभी को अपनी मंजूरी भी दे दी।