भाजपा सरकार ने मुसलमानों के लिए बहुत कुछ किया- इस दावे में कितना सच?
लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए को बहुमत मिलने के बाद नरेंद्र मोदी ने 9 जून को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। पीएम मोदी के साथ ही 71 अन्य मंत्रियों ने भी शपथ ली थी। इस बार मोदी कैबिनेट में एक भी मुस्लिम मंत्री को शामिल नहीं किया गया है। इस बात पर बहस जारी है। इन सबके बीच दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर और भाजपा समर्थक संगीत कुमार रागी ने दावा किया है कि भाजपा सरकार ने मुसलमानों के लिए बहुत कुछ किया है। रागी विभिन्न टीवी चैनलों पर अलग-अलग मुद्दों पर भाजपा और संघ की ओर से बहस करते भी देखे जाते हैं।
रागी का दावा
दिल्ली यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख संगीत कुमार रागी ने एक्स पर लिखा: “मुझे खुशी है कि बीजेपी ने मुसलमानों को कैबिनेट में नहीं रखने का फैसला किया है। मुस्लिमों को करीब लाने के लिए पार्टी ने काफी कुछ किया है लेकिन यह पूरी तरह सच है कि मुसलमान बीजेपी को हराने के लिए वोट करते हैं।"
दावों की हकीकत
रागी का यह दावा आंकड़ों में सही साबित नहीं होता। सबसे पहले भाजपा की ही बात की जाये तो पार्टी ने लोकसभा चुनाव में केवल एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया था।
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वहीं, 2024 के आम चुनाव में 12 राजनीतिक दलों ने कुल 1490 उम्मीदवारों को टिकट दिया था और इनमें से सिर्फ 80 मुस्लिम थे। अब अगर सांसदों की बात की जाये तो इस बार तमाम दलों से 4.4% मुस्लिम सांसद चुने गए हैं।
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क्या मुसलमान वोट नहीं करते?
सीएसडीएस, नई दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर हिलाल अहमद ने सीएसडीएस लोकनीति पोस्ट पोल सर्वे के हवाले से अपने एक लेख में बताया है, "हमें याद रखना चाहिए कि मुस्लिम समुदायों ने पिछले 10 सालों में राजनीति को नहीं छोड़ा है। यह सच है कि 2014 के बाद हिंदू समुदायों की चुनावी भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि (लगभग 70%) हुई है जबकि मुस्लिम मतदान लगभग स्थिर (59%) रहा।
2019 में मुस्लिम वोटिंग में मामूली बढ़ोतरी (60%) हुई थी। दिलचस्प बात यह है कि यह पैटर्न 2024 में नहीं बदला है। डेटा के मुताबिक, सर्वे में भाग लेने वाले 68% हिंदू मतदाताओं ने मतदान किया जबकि मुस्लिम मतदान लगभग 62% था। इसका सीधा मतलब यह है कि इस चुनाव में मुसलमानों की तुलना में हिंदुओं की भागीदारी अधिक थी, लेकिन ऐसा नहीं है कि मुसलमान वोट ही नहीं करते।
लोकसभा चुनाव परिणाम: 2019 से 2024 में मुस्लिम सांसदों का प्रतिशत घटा
जाति | 2019 (%) | 2024 (%) |
उच्च जाति | 28.5 | 25.8 |
इंटरमीडिएट कास्ट | 14.4 | 13.6 |
ओबीसी | 22.8 | 25.4 |
एससी | 15.5 | 15.8 |
एसटी | 10.1 | 10.1 |
मुस्लिम | 5.0 | 4.4 |
क्रिश्चियन | 1.3 | 1.3 |
सिख | 2.0 | 2.4 |
बौद्ध | 0.2 | 0 |
कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद
सर्वे के निष्कर्षों से पता चलता है कि कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम मतदाताओं के लिए पहली पसंद बनकर उभरी है। पार्टी को लगभग 37% मुस्लिम वोट मिले। कांग्रेस के साथ अन्य गठबंधन दलों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया, उन्हें 26% मुस्लिम वोट मिले। वहीं, इस बार देशभर में करीब 8 फीसदी मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया। आंकड़ों के हिसाब से देखें तो बीजेपी मुस्लिम मतदाताओं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तीसरी पसंद बनकर उभरी है।
हालांकि, भाजपा का मुस्लिम वोट शेयर उन राज्यों में बढ़ा जहां पार्टी का सीधा मुकाबला एक ही प्रमुख पार्टी से था। उदाहरण के लिए, गुजरात में कांग्रेस (जो मुख्य विपक्षी दल थी) को 70% मुस्लिम वोट मिले। दूसरी ओर, भाजपा ने भी राज्य में काफी अच्छा प्रदर्शन किया क्योंकि 29% मुसलमानों ने विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी के उम्मीदवारों को वोट दिया।
मुसलमानों में शिक्षा का स्तर
शिक्षा मंत्रालय (MoE) द्वारा किए गए ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन, 2021-22 के अनुसार, शिक्षण संस्थानों में मुसलमानों का दाखिला पांच प्रतिशत से कम था। वहीं, उनकी जनसंख्या 14.2 प्रतिशत है। उच्च शिक्षण संस्थानों में लगभग 4.33 करोड़ छात्रों ने दाखिला ले रखा है जिनमें से केवल 21.08 लाख मुस्लिम थे। 2011 की जनगणना के अनुसार मुसलमानों की साक्षरता दर 68.54% है। वहीं, साक्षरता दर का राष्ट्रीय औसत 72.98% है।
मुसलमानों को कितना मिला है रोजगार
ऑक्सफैम इंडिया द्वारा जारी इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट, 2022 में कहा गया है कि जाति और सांप्रदायिक पूर्वाग्रह के कारण दलित, आदिवासी और मुस्लिम श्रमिक अन्य श्रमिकों की तुलना में कम कमाते हैं। रिपोर्ट में नियमित और आकस्मिक नौकरियों, स्व-रोज़गार और कमाई तक पहुंच में विभिन्न समूहों के बीच असमानताओं का विश्लेषण किया गया। रिपोर्ट कहती है, ग्रामीण इलाकों में मुसलमानों ने 2020 में प्रति माह 12,796 रुपये कमाए, जबकि बाकी लोगों ने 13,440 रुपये कमाए।
मुस्लिम महिलाओं में साक्षरता दर सबसे कम
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मुस्लिम महिलाओं में साक्षरता दर सबसे कम है और उनकी लेबर फोर्स में भागीदारी अन्य सामाजिक समूहों की तुलना में सबसे कम है। 2021-22 में MoSPI द्वारा किए गए पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के अनुसार, मुसलमानों की श्रम बल भागीदारी दर 35.1 प्रतिशत रही।
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मुसलमानों की श्रम बल भागीदारी में गिरावट
पीएलएफएस सर्वे से पता चलता है कि मुसलमानों की श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) और श्रमिक आबादी अनुपात (WPR) में गिरावट आई है। श्रम बल भागीदारी दर उस आबादी का रेशियो है जो काम की तलाश में है और श्रमिक आबादी अनुपात उस आबादी का रेशियो है जिसके पास काम है।
मुसलमानों के लिए, एलएफपीआर 2020-21 में लगभग 35.5% और 2021-22 में 35.1% था। 2022-23 में यह घटकर 32.5% रह गया। इसी तरह, मुसलमानों के लिए WPR 2020-21 में 33.9% और 2021-22 में 33.5% रहा। 2022-23 में यह घटकर 32.5% रह गया।
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मुसलमानों के पास सबसे कम संपत्ति
आईसीएसएसआर-मान्यता प्राप्त अनुसंधान संस्थान, भारतीय दलित अध्ययन संस्थान द्वारा 2020 में प्रकाशित ‘भारत में धन स्वामित्व में अंतर समूह असमानता पर अध्ययन रिपोर्ट’ में सामने आया कि अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों और मुसलमानों के पास सबसे कम संपत्ति है। इस रिपोर्ट में नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) और भारतीय आर्थिक जनगणना द्वारा किए गए अखिल भारतीय ऋण और निवेश सर्वेक्षण (AIDIS) के डाटा का इस्तेमाल किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू उच्च जातियों के पास देश की कुल संपत्ति का लगभग 41% हिस्सा है। मुसलमानों, एससी और एसटी के पास क्रमशः 8%, 7.3% और 3.7% संपत्ति है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि मुसलमानों के पास अनुमानत: 28,707 अरब रुपये की संपत्ति है। रिपोर्ट में पाया गया कि मुस्लिम परिवारों की औसत संपत्ति 9.95 लाख रुपये है। रिपोर्ट के अनुसार, मुसलमानों के पास 9.2% सोना है।