Rahul Gandhi @ 54: इन 5 चुनौतियों से पार पा गए राहुल तो बढ़ती जाएगी कामयाबी
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी 19 जून, 2024 को 54 साल के हो गए हैं। उनका यह जन्मदिन ऐसे माहौल में आया है जब वह राजनीतिक रूप से सबसे सफल साबित हुए हैं। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में वह खुद दो लोकसभा सीटों- वायनाड और रायबरेली - से चुनाव जीते और मृतप्राय पड़ चुकी कांग्रेस को भी नया जीवन देने लायक सीटें व वोट दिलाने में कामयाब रहे। लेकिन, इसके साथ ही उनके लिए आने वाले सालों की चुनौतियां बढ़ गई हैं।
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया है। 2014 और 2019 में किए खराब प्रदर्शन से टूट चुकी कांग्रेस को 2024 में अपने प्रदर्शन से निश्चित तौर पर संजीवनी मिली है।
राहुल गांधी पहली बार 2004 में अमेठी सीट से लोकसभा के सांसद बने थे। तब से लेकर आज तक राहुल गांधी का सियासी सफर कैसा रहा है और आने वाले वक्त में उनके सामने क्या 5 बड़ी चुनौतियां हैं, इस खबर में हम इस पर एक नजर डालने की कोशिश करेंगे।
कांग्रेस ने लगभग दोगुनी सीटें जीती
साल | मिली सीटें |
2014 | 44 |
2019 | 52 |
2024 | 99 |
यूपी-बिहार में कांग्रेस को अपने दम पर खड़ा करना
राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस को फिर से जिंदा करने की है। यह दोनों ऐसे राज्य हैं जहां पर आजादी के बाद लंबे समय तक कांग्रेस अपने दम पर सत्ता में रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश में वह 1989 से सत्ता से बाहर है जबकि बिहार में भी वह 1990 से अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई है।
उत्तर प्रदेश और बिहार हिंदुस्तान की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण राज्य हैं। इन दोनों राज्यों में लोकसभा की 80 और 40 सीटें हैं। भारत की कुल 543 लोकसभा सीटों में से 120 सीटें इन्हीं दो राज्यों में हैं। एक वक्त में इन दोनों राज्यों में बेहद मजबूत रही कांग्रेस अब सहयोगियों के भरोसे है। बिहार में उसे आरजेडी का कंधा चाहिए तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का।
राहुल गांधी को अगर कांग्रेस को केंद्र की सत्ता में वापस लाना है तो इन दोनों राज्यों में उन्हें कांग्रेस को फिर से खड़ा करना ही होगा।
2009 में जीती थी 21 सीटें
यहां याद दिलाना होगा कि 2009 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार की कमान जब खुद राहुल गांधी ने संभाली थी तो पार्टी ने अपने दम पर लोकसभा की 21 सीटें जीती थी लेकिन 2014 और 2019 में पार्टी सिर्फ दो और एक सीट ही जीत सकी।
इस बार कांग्रेस ने खराब प्रदर्शन को पीछे छोड़ते हुए 6 सीटें जीतीं हैं और अमेठी सीट को भी बीजेपी से छीन लिया है। इसी तरह बिहार में भी उसने सहयोगी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हुए तीन सीटों पर जीत हासिल की है जबकि पिछली बार उसे एक ही सीट मिली थी।
राहुल गांधी ने रायबरेली सीट से ही सांसद बने रहने का विकल्प चुनकर यह साफ संदेश दिया है कि वह उत्तर प्रदेश के साथ ही हिंदी बेल्ट में कांग्रेस को फिर से मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे।
उत्तर प्रदेश में ढाई साल बाद जबकि बिहार में डेढ़ साल बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। राहुल गांधी के सामने बड़ी चुनौती यही है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में पार्टी को फिर से ब्लॉक, जिला, शहर स्तर तक खड़ा किया जाए। देखना होगा कि वे इन दोनों राज्यों में कितनी ताकत झोकेंगे और उन्हें कितनी कामयाबी मिलती है।
संगठन को मजबूत करना, नई लीडरशिप खड़ी करना
राहुल गांधी के सामने दूसरी बड़ी चुनौती पार्टी संगठन को मजबूत करना और पार्टी में नए नेतृत्व को उभारना है। सोनिया गांधी की उम्र अब 77 साल हो चुकी है और मल्लिकार्जुन खड़गे भी 81 साल के हैं। ऐसे में राहुल गांधी ही पार्टी के सबसे बड़े स्टार चेहरे हैं, जो देश भर में कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटा सकते हैं और इस लोकसभा चुनाव के नतीजे में उन्होंने दिखाया है कि कांग्रेस उनके नेतृत्व में कमबैक कर सकती है।
मौजूदा वक्त में कांग्रेस की सिर्फ तीन राज्यों- हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में अपने बलबूते सरकार है। कांग्रेस लगातार लोकसभा के तीन चुनाव हार चुकी है।
अगर कांग्रेस बीजेपी को सत्ता से बेदखल करना चाहती है तो उसे राज्यों से लेकर केंद्र स्तर तक संगठन को मजबूत करने के अलावा एक नए नेतृत्व को उभारना ही होगा। बहन प्रियंका के चुनावी राजनीति में उतरने से उन्हें इसमें मदद जरूर मिल सकती है।
राहुल गांधी ने 2004 से लेकर 2014 तक जब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार चल रही थी तो कई युवा नेताओं को संगठन और सरकार में आगे बढ़ाया था। लेकिन पार्टी के खराब दौर में कई नेता कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए।
लोगों के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाना
राहुल गांधी के सामने तीसरी बड़ी चुनौती हिंदुस्तान की जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता को बढ़ाना है। राहुल गांधी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपीए सरकार के 10 सालों के कामकाज को सामने रखा था लेकिन तब लोगों ने कांग्रेस और यूपीए की सरकार को नकार दिया था। 2019 में राहुल गांधी ने राफेल विमान सौदे में कथित गड़बड़ी को मुद्दा बनाया था लेकिन यह मुद्दा बेअसर साबित हुआ था।
2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने जातीय जनगणना और आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी और भागीदारी को बड़ा मुद्दा बनाया और इसका उन्हें कई राज्यों में फायदा भी मिला। इससे पता चलता है कि इस बार उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों को जनता ने कुछ हद तक समर्थन दिया है।
राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर बनाई गई उनकी खराब छवि से आगे निकलकर खुद को एक मजबूत नेता के रूप में दिखाया है लेकिन उनके सामने चुनौती है कि लोगों के बीच उनकी मकबूलियत कैसे बढ़े।
यहां 2019 और 2024 में सीएसडीएस-लोकनीति के द्वारा किए गए पोस्ट पोल सर्वे का भी जिक्र करना जरूरी होगा। इसमें उन्हें बतौर प्रधानमंत्री पसंद करने वालों लोगों की संख्या 2019 की तुलना में करीब चार फीसदी बढ़ी है, जबकि नरेंद्र मोदी को बतौर पीएम पहली पसंद बताने वालों की संख्या करीब सात फीसदी कम हुई है।
मोदी की लोकप्रियता घटी, राहुल की बढ़ी
साल | पीएम पद के लिए राहुल गांधी को पसंद करने वाले लोग | पीएम पद के लिए नरेंद्र मोदी को पसंद करने वाले लोग |
2019 | 23.2% | 46.5% |
2024 | 27% | 40.7% |
राहुल को अपनी बदली छवि को लगातार मजबूत करने पर जोर देना होगा।
कामयाबी को बरकरार रखने की चुनौती
लोकसभा चुनाव के नतीजे से हालांकि कांग्रेस को संजीवनी जरूर मिली है लेकिन पार्टी के लिए जरूरी है कि इस संजीवनी को बरकरार रखा जाए। राहुल गांधी के सामने बीजेपी जैसे 11 करोड़ से ज्यादा सदस्यों वाली पार्टी से मुकाबला करने की चुनौती है। साथ ही उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे दिग्गज नेता का भी सामना करना है जो लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं।
लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं में देशभर में उत्साह दिखाई दे रहा है लेकिन यह जरूरी है कि पार्टी इस उत्साह और जोश को बनाए रखे तभी वह 2029 के चुनाव में बीजेपी का मुकाबला कर पाएगी।
2019 और 2024 में कांग्रेस का प्रदर्शन
राज्य | पिछली बार मिली सीटें | इस बार मिली सीटें |
महाराष्ट्र | 1 | 13 |
बिहार | 1 | 4 |
हरियाणा | 5 | 5 |
कर्नाटक | 1 | 9 |
उत्तर प्रदेश | 1 | 6 |
राजस्थान | 0 | 8 |
तेलंगाना | 3 | 8 |
पार्टी में भगदड़ को रोकना होगा
2014 के बाद से ऐसे नेताओं की एक लंबी कतार है जो कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं। इन नेताओं में कई पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यों में कांग्रेस की कमान संभाल चुके वरिष्ठ नेता शामिल हैं। इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान ही कांग्रेस के कई प्रवक्ताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया था।
राहुल गांधी संगठन को तभी एकजुट और ऊर्जावान बनाए रख सकते हैं जब वह पार्टी में पिछले 10 साल से चल रही भगदड़ को रोक सकें। कांग्रेस छोड़ने वाले कुछ बड़े नेताओं में ज्योतिरादित्य सिंधिया, एसएम कृष्णा, रीता बहुगुणा जोशी, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, कैप्टन अमरिंदर सिंह, आर पी एन सिंह, कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद, हार्दिक पटेल, सुनील जाखड़, कुलदीप बिश्नोई आदि हैं।
आने वाले कुछ महीनों में दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर जैसे अहम राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद राहुल गांधी की इन राज्यों के चुनाव में भी परीक्षा होनी है।