B. R. Ambedkar: ..जब संविधान सभा में जम कर हुई थी आंबेडकर की आलोचना, किसी ने उठाया था ज्ञान पर सवाल तो किसी ने कहा- हमें मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा
लोकसभा चुनाव 2024 में चुनाव प्रचार के दौरान संविधान बदलने और संविधान को बचाने की बहस पूरे जोर-शोर से सुनाई दी। इंडिया गठबंधन में शामिल विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार सत्ता में आई तो वह संविधान को बदल देगी और इंडिया गठबंधन संविधान को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। कई विश्लेषक मानते हैं कि इसे लेकर चलाए गए प्रचार अभियान की इंडिया की चुनावी सफलता में बड़ी भूमिका रही।
जो संविधान लोकसभा चुनाव 2024 में एक बड़ा मुद्दा बना उसका एक अभिन्न अंग है आलोचना और असहमति। संविधान बनाने वालों ने बाबा साहब आंबेडकर को भी इससे अछूता नहीं छोड़ा।
डॉ. आंबेडकर की संविधान सभा में बहस के दौरान किस तरह आलोचना हुई, उसे पत्रकारिता का विशाल अनुभव रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने अपनी किताब ‘भारतीय संविधान अनकही कहानी’ में दर्ज किया है। इस किताब को प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
राम बहादुर राय लिखते हैं कि संविधान सभा के वाद विवाद की सरकारी रिपोर्ट में जिसे सामान्य चर्चा लिखा गया है, वह बेहद असामान्य थी। संविधान सभा के सदस्य बेहद उत्तेजित थे। अगर कोई संविधान सभा के उन भाषणों को पढ़े तभी उसे इसका अंदाजा हो पाएगा कि सदस्यों ने अपने दर्द को किस तरह व्यक्त किया।
गांव व ग्राम पंचायत के सवाल पर बहस
राज्य व्यवस्था में गांव व ग्राम पंचायत के सवाल पर संविधान सभा में बहस हुई। बहस की शुरुआत एचवी कामत ने की। कामत ने गांव के बारे में डॉक्टर आंबेडकर के कथन का हवाला देकर कहा, ‘ग्रामीण जनता के लिए हमारे करुण विश्वास का श्रेय डॉक्टर आंबेडकर ने किसी मेटकाफ नाम के व्यक्ति को दिया है। मैं यह कहूंगा कि यह श्रेय मेटकाफ को नहीं है, वरन उससे कहीं महान व्यक्ति को है जिसने अभी हमें हाल में ही स्वतंत्र कराया है। गांव के लिए जो प्रेम हमारे हृदय में लहरा रहा है, वह तो हमारे पथ प्रदर्शक तथा राष्ट्रपिता के कारण पैदा हुआ था। यह महात्मा गांधी के कारण ही है कि हम अपने देहाती भाइयों को प्यार करने लगे हैं।’
कामत ने कहा था कि डॉक्टर आंबेडकर के प्रति पूर्ण आदर भाव रखते हुए वह इस संबंध में उनसे मतभेद रखते हैं और अगर ग्राम निवासियों की ओर हमारा यही रुख रहा तो मैं केवल यही कह सकता हूं कि ईश्वर हमारी रक्षा करें।
गांवों के प्रति आंबेडकर का बयान दुखी करने वाला
कामत का कहना था कि हमारे गांवों के प्रति डॉक्टर आंबेडकर के इस प्रकार के यदि घृणापूर्ण नहीं तो अनिच्छापूर्ण भाषण को सुनकर सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ है। उन्होंने कहा, ‘मसौदा समिति बनाने में ही गलती हुई है। इस समिति में केवल केएम मुंशी के अतिरिक्त अन्य कोई ऐसा सदस्य नहीं था जिसे अपने देश की स्वतंत्रता के संघर्ष में प्रमुख भाग लिया हो। उनमें से कोई भी हमारे संघर्ष में प्रेरणा प्रदान करने वाले उत्साह को समझने की क्षमता नहीं रखता।’
कामत ने कहा, ‘बरसों की सुदीर्घ प्रसव वेदना सहने के पश्चात हुए हमारे राष्ट्र के पुनर्जन्म की बात यह हृदय से नहीं समझ पाएंगे इसीलिए हमारे अत्यंत गरीब, पिछड़ी जाति, साधारण स्तर वाले उपेक्षित लोगों के लिए डॉक्टर आंबेडकर ने ऐसा कठोर स्वर व्यक्त किया।’
कामत ने अपना भाषण जारी रखते हुए कहा कि डॉक्टर आंबेडकर के भाषण में मेघों का घोर नाद था और थी उसमें चपला की चमक। किंतु उसमें न थी शक्ति प्रदायिनी, स्फूर्ति संचारिणी, जीवनदायिनी अमर ज्योति।
डॉ. आंबेडकर ने प्रत्येक अधिकार केंद्र को दे दिया
इसके बाद ओडिशा से आने वाले लोकनाथ मिश्र ने कहा, ‘डॉ. आंबेडकर ने चाहे जो कुछ कहा हो और हमारे गांवों से घृणा करने वाले अपने जैसे व्यक्ति को अधिकार देने के लिए उन्होंने चाहे जो कुछ सोचा हो, मैं यह कहूंगा कि यह संविधान व्यक्ति को, कुटुंब को, ग्राम को, जिले को और प्रांत को कुछ भी अधिकार नहीं देता है। डॉ. आंबेडकर ने तो प्रत्येक अधिकार केंद्र को दे दिया है।’
…भारत माता के बारे में अल्प ज्ञान
लोकनाथ मिश्रा ने आगे कहा, ‘मैं डॉ. आंबेडकर के ज्ञान के सामने तो सिर झुकाता हूं, मैं उनके भाषण स्पष्टता की तारीफ करता हूं। उनके साहस का आदर करता हूं लेकिन मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि इतना बड़ा विद्वान भारत का इतना यशस्वी पुत्र भारत माता के बारे में इतना अल्प ज्ञान रखता है। संविधान के मसौदे की वह आत्मा है और उसने ही मसौदे में ऐसी बातें दी हैं, जो अभारतीय हैं। अभारतीय से मेरा आशय है कि चाहे वे इस बात का कितना ही खंडन करें, पर है यह वास्तव में पश्चिम का दासतापूर्ण अनुकरण। इतना ही नहीं है, वरन इससे भी अधिक पश्चिम के समक्ष दासवत अर्पण है।’
यहां बताना जरूरी होगा कि डॉ. आंबेडकर संविधान की मसौदा समिति के प्रमुख थे।
इसके बाद प्रोफेसर प्रोफेसर केटी शाह ने डॉ. आंबेडकर के शब्दों में ही पूछा कि इस संविधान का उद्देश्य क्या है, यह संविधान क्या करेगा। केटी शाह ने खुद ही इन सवालों का उत्तर दिया और कहा कि इस संविधान का उद्देश्य लगभग पूर्णतया राजनीतिक है। सामाजिक तथा आर्थिक तो है ही नहीं।
रामनारायण सिंह ने कहा कि राजनीतिक कार्यकर्ताओं के रूप में हम स्वराज शब्द का सदैव प्रयोग करते थे और हम समझते थे कि अंग्रेजों के हाथ से सत्ता सीधे काम वालों के हाथ में चली जाएगी परंतु मेरे विचार से यह प्रस्तावित संविधान उन लोगों को यह अधिकार नहीं देगा।
पीएस देशमुख ने संविधान के मसौदे को लेकर कहा कि डॉ. आंबेडकर ऐसा संविधान तो नहीं बना पाए जो भारतीय जनता की संस्कृति के अधिक निकट हो किंतु आशा है कि ऐसे संशोधनों के संबंध में वह अनुकूल रुख रखेंगे।
कांग्रेस के आदर्श और विचारधारा की हुई उपेक्षा
रामबहादुर राय लिखते हैं कि संविधान सभा की चर्चा अगले दिन भी जारी रही। चर्चा के दौरान अरुण चंद्र गुहा ने कहा कि संविधान में ऐसी बातें हैं जो उन मुख्य सिद्धांतों के परे हैं जिन्हें संविधान सभा ने निश्चित किया था। संविधान के सारे मसौदे में कहीं भी कांग्रेस के दृष्टिकोण का, गांधीवादी सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण का पता नहीं है। विद्वान डॉक्टर आंबेडकर ने अपने लंबे और विद्वतापूर्ण भाषण में कहीं भी गांधी जी या कांग्रेस का उल्लेख नहीं किया है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि मेरे विचार से सारे संविधान में कांग्रेस के आदर्श की तथा कांग्रेस की विचारधारा की उपेक्षा है।
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए टी. प्रकाशम ने कहा, संविधान का मसौदा गलत दिशा में चला गया है और उसमें संशोधन करने की बहुत आवश्यकता है।
आंबेडकर ने की पंचायतों और गांवों की उपेक्षा: के. संथानम
के. संथानम ने कहा कि मुझे खेद है कि डॉ. आंबेडकर ग्राम पंचायतों के संबंध में बोलते समय बहक गए और उनका यह कथन उचित नहीं है कि वह आधुनिक संविधान के लिए उचित पृष्ठभूमि नहीं प्रदान करते। आरके सिधवा का कहना था कि इस देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने के लिए यह संविधान बनाया गया है लेकिन डॉ. आंबेडकर ने पंचायतों और गांवों की उपेक्षा करके लोकतंत्र को त्रिशंकु बना दिया है, इसलिए यह संविधान विचार करने के योग्य ही नहीं है।
उत्तर प्रदेश के जाने-माने नेता शिब्बन लाल सक्सेना ने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने ग्राम पंचायत संबंधी प्रथा की निंदा की है, जो भारत में प्रचलित थी जिसे हमारे बुजुर्गों ने अपने संविधान के लिए एक आदर्श आधार माना था।
ग्राम पंचायतों को लेकर आंबेडकर के बयान पर हुआ दुख: एनजी रंगा
सामान्य चर्चा के अंतिम दिन 9 नवंबर 1948 को प्रोफेसर एनजी रंगा ने कहा, ‘डॉक्टर आंबेडकर ने ग्राम पंचायतों के बारे में जो कुछ कहा उसे सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ। उन्होंने हमारे देश की लोकतांत्रिक परंपरा की ओर कुछ भी ध्यान नहीं दिया। यदि वह पिछले 1000 वर्ष से अधिक काल में दक्षिण भारत में ग्राम पंचायतों ने जो उन्नति की है, उससे परिचित होते तो वह ऐसी बातें ना कहते। यदि उन्होंने भारत के इतिहास को उतनी ही सावधानी से पढ़ा होता जितनी सावधानी से उन्होंने अन्य देशों के इतिहास पढ़े हैं तो वह ऐसी बातें कदापि ना कहते।’
महावीर त्यागी ने कहा, ‘गांवों के विरुद्ध डॉक्टर आंबेडकर ने जो कुछ कहा है उसके विरुद्ध जब तक मैं अपनी आवाज नहीं उठाता हूं, तब तक मैं अपने गांवों के लोगों के सामने जाकर मुंह नहीं दिखा सकता। डॉक्टर आंबेडकर को यह पता नहीं है कि स्वतंत्रता संग्राम में गांवों ने कितना बलिदान किया है। मेरा यह निवेदन है कि देश के शासनकाल में गांव वालों का यथोचित भाग होना चाहिए।’
एल. कृष्णा स्वामी भारती का कहना था, मुझे इस बात का खेद है कि डॉ. आंबेडकर ने ऐसे कुछ कथन कहने की छूट ली, जो इस सदन की इच्छा या भावनाओं के साथ सुसंगत न हों।
एल. कृष्णा स्वामी भारती ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘डॉ. आंबेडकर कहते हैं कि मसौदे में गांवों को किनारे धकेल कर व्यक्ति को इकाई के रूप में अपनाया गया। इसकी मुझे प्रसन्नता है। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि गांवों को छोड़कर ऐसा व्यक्ति है कहां। गांवों की उपेक्षा कर व्यक्ति पर ध्यान दिया गया है, ऐसा बताते समय वे सरलता से भूल जाते हैं कि व्यक्ति ही गांव का निर्माण करते हैं। जनसंख्या का 90% भाग गांवों में है और वे मतदाता भी हैं।’
किशोरी मोहन त्रिपाठी का कहना था कि डॉक्टर आंबेडकर के गांव संबंधी कथन की आलोचना सदन की प्रामाणिक संवेदनशीलता के कारण हुई है और उनका कथन ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है।
इतनी आलोचनाओं के बाद डॉक्टर आंबेडकर ने लचीला रुख अपनाया और कहा कि वह संशोधन को स्वीकार करते हैं। इससे संविधान सभा में उपस्थित सभी सदस्य खुश हो गए।