लोकसभा चुनाव के खराब नतीजों के बाद बीजेपी में और नेताओं ने खोला मोर्चा, अनुशासन की भी परवाह नहीं कर रहे भाजपा के हारे नेता
लोकसभा चुनाव में अकेले दम पर 370 और एनडीए के लिए 400 पार का नारा देने वाली बीजेपी के लिए नतीजे आने के बाद मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। कई राज्यों में पार्टी के नेताओं ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उन्हें पार्टी के कुछ नेताओं की ही वजह से चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है।
चुनाव में हारे प्रत्याशी खुलकर पार्टी के ही कुछ नेताओं को अपनी हार के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और ऐसा करते वक्त वे पार्टी के अनुशासन की भी परवाह नहीं कर रहे हैं।
ताजा मामला उत्तर प्रदेश की सलेमपुर लोकसभा सीट और झारखंड की दुमका सीट से सामने आया है। सलेमपुर से बीजेपी के टिकट पर चुनाव हारे रविंद्र कुशवाहा ने अपनी हार के लिए बीजेपी जिलाध्यक्ष संजय यादव और राज्यमंत्री विजयलक्ष्मी गौतम को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है।
झारखंड में दुमका लोकसभा सीट से चुनाव हारीं बीजेपी की उम्मीदवार सीता सोरेन ने भी खुलकर कहा है कि उन्हें भाजपा के लोगों ने ही लोकसभा चुनाव में हरवाया है।
पश्चिम उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान की हार के बाद उनके और बीजेपी के पूर्व विधायक संगीत सोम के बीच जुबानी जंग हुई। पश्चिम बंगाल में भी बीजेपी नेताओं की अंतरकलह सामने आई थी।
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कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद भाजपा नेताओं के जिस तरह के बयान सामने आ रहे हैं, उससे पार्टी की ही किरकिरी हो रही है।
पूर्व सांसद बोले- राज्यमंत्री ने बीजेपी के लिए वोट नहीं मांगे
सलेमपुर सीट से दो बार चुनाव जीत चुके रविंद्र कुशवाहा को इस बार बेहद नजदीकी मुकाबले में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार रमाशंकर राजभर ने 3573 वोटों से हराया है। हार के बाद रविंद्र कुशवाहा ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि विजयलक्ष्मी गौतम ने चुनाव के दौरान बीजेपी के लिए वोट नहीं मांगे। कुशवाहा ने बीजेपी के सहयोगी दल सुभाषपा के अध्यक्ष और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर पर भी निशाना साधा और कहा कि पूर्वांचल में राजभर का कोई असर नहीं दिखाई दिया।
जिलाध्यक्ष का पलटवार, बोले- नाकारा हैं कुशवाहा
रविंद्र कुशवाहा ने भाजपा के जिलाध्यक्ष संजय यादव को सपा का एजेंट बताया तो पलटवार करते हुए संजय यादव ने कहा कि रविंद्र कुशवाहा ने 10 साल में इस क्षेत्र के लिए कुछ भी नहीं किया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि इतना नाकारा सांसद पूरे देश भर में मिल पाना बेहद मुश्किल है।
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झामुमो का झंडा उठा लें गद्दारी करने वाले नेता: सीता सोरेन
इसी तरह झारखंड की दुमका लोकसभा सीट से बीजेपी की प्रत्याशी रहीं सीता सोरेन ने अपनी हार के लिए पार्टी संगठन के नेताओं को खुलकर जिम्मेदार ठहराया है।
सीता सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की बहू हैं। सीता सोरेन ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पहले पाला बदल लिया था और वह बीजेपी में शामिल हो गई थीं। भाजपा ने उन्हें दुमका सीट से टिकट दिया लेकिन सीता सोरेन को यहां से लगभग 23 हजार वोटों के अंतर से हार मिली है।
हार के बाद सीता सोरेन ने दुमका और जामताड़ा के भाजपा जिलाध्यक्षों के साथ ही पूर्व सांसद सुनील सोरेन, पूर्व मंत्री डॉ. लुईस मरांडी, विधायक रणधीर सिंह सहित पार्टी के प्रदेश महासचिव व राज्यसभा सांसद प्रदीप वर्मा पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं। सोरेन ने खुलकर कहा है कि इन नेताओं ने उनके और पार्टी के साथ गद्दारी की है और ऐसे लोगों को अब झामुमो का झंडा पकड़ लेना चाहिए।
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संगीत सोम-संजीव बालियान की लड़ाई से हो रहा नुकसान
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के दो बड़े चेहरों पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और पूर्व विधायक संगीत सिंह सोम की जुबानी जंग से बीजेपी के अंदर खलबली मची हुई है। चुनाव नतीजों के बाद संजीव बालियान ने संगीत सिंह सोम पर समाजवादी पार्टी का समर्थन करने का आरोप लगाया था।
बालियान पिछली दो बार से मुजफ्फरनगर सीट से चुनाव जीत रहे थे लेकिन इस बार उन्हें सपा के उम्मीदवार हरेंद्र मलिक से 24 हजार वोटों से हार मिली है।
संजीव बालियान के हमले के बाद संगीत सिंह सोम भी खुलकर सामने आए और उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि बीजेपी का एक भी कार्यकर्ता संजीव बालियान को पसंद नहीं करता था। सोम ने कहा कि बालियान ने पिछले 10 सालों में पार्टी के लोगों का काम नहीं किया। सोम ने यह भी कहा था कि संजीव बालियान खुद सपा के समर्थक रहे हैं।
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(Source-FB)
संगीत सोम और संजीव बालियान की लड़ाई को सुलझाने के लिए उत्तर प्रदेश बीजेपी के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व भी कई बार दखल दे चुका है लेकिन इन नेताओं की जुबानी जंग थमती नहीं दिख रही है।
यूपी में हुआ सबसे ज्यादा नुकसान
राज्य | 2019 में मिली सीटें | गंवाई सीटें |
उत्तर प्रदेश | 62 | 29 |
महाराष्ट्र | 23 | 14 |
पश्चिम बंगाल | 18 | 6 |
राजस्थान | 25 | 11 |
बिहार | 17 | 5 |
कर्नाटक | 25 | 8 |
हरियाणा | 10 | 5 |
उपचुनाव और विधानसभा चुनाव की चुनौती
2014 और 2019 में उत्तर प्रदेश में बड़ी जीत हासिल करने वाली भाजपा ने यह नहीं सोचा था कि इस लोकसभा चुनाव में उसे इतने खराब नतीजों का सामना करना पड़ेगा। भाजपा को उत्तर प्रदेश में ढाई साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में बड़ी लड़ाई लड़नी है। उत्तर प्रदेश भाजपा और संघ दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और पार्टी किसी भी कीमत पर इतने बड़े राज्य को खोना नहीं चाहती। लेकिन नेताओं की खुलकर बयानबाजी से जूझ रही पार्टी इंडिया गठबंधन की जोरदार चुनौती का मुकाबला कैसे कर पाएगी, यह पार्टी के नेतृत्व के सामने बड़ा सवाल है।
उत्तर प्रदेश में जल्द ही 10 विधानसभा सीटों के लिए भी उपचुनाव होने हैं। इसमें भी एनडीए और इंडिया गठबंधन का आमने-सामने का मुकाबला होना है।
बंगाल बीजेपी में भी सब कुछ ठीक नहीं
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद पश्चिम बंगाल में बीजेपी के सांसद सौमित्र खान ने आरोप लगाया था कि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने टीएमसी के साथ समझौता कर लिया, वरना बीजेपी राज्य में ज्यादा सीटें जीत सकती थी। पश्चिम बंगाल बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष दिलीप घोष ने भी अपनी हार के लिए पार्टी नेताओं के द्वारा उनके खिलाफ कही गई बातों को जिम्मेदार ठहराया था।
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तार-तार हुआ सख्त अनुशासन
कहा जाता है कि बीजेपी में सख्त अनुशासन है और नेताओं को पार्टी के मामलों में किसी भी तरह की शिकायत मीडिया के बीच करने की इजाजत नहीं है। लेकिन जिस तरह सीता सोरेन, संजीव बालियान और संगीत सोम, रविंद्र कुशवाहा या पश्चिम बंगाल में पार्टी के नेताओं के बीच खुलकर घमासान हुआ, उससे निश्चित तौर पर बीजेपी की सख्त अनुशासन वाली छवि तार-तार हुई है।