सरकार से कौन सा मैसेज नहीं आने के चलते आखिरी दिन दफ्तर नहीं गए थे मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन?
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने अपनी जीवनी T N Seshan through the Broken Glass में अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ से जुड़े कई किस्सों का जिक्र किया है। उनमें से एक किस्सा उनके रिटायरमेंट वाले दिन का है। शेषण 12 दिसंबर, 1990 से 11 दिसंबर, 1996 तक भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) रहे थे।
अपनी जीवनी में टीएन शेषन लिखते हैं, "मुख्य चुनाव आयुक्त पद के लिए दो दावेदार थे, कृष्णमूर्ति (टीएस) और गिल (एमएस)। पहले उम्र में सीनियर थे, लेकिन दूसरे के पास लंबी सर्विस और ज्यादा प्रशासनिक अनुभव था। कुछ अख़बारों ने अनुमान लगाया कि चूंकि जुलाई 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने गिल को आयोग का प्रभारी नियुक्त किया था इसलिए वह इस पद के लिए अधिक संभावित उम्मीदवार होंगे।"
जब लगाई जा रहीं थीं शेषन के उत्तराधिकारी के नाम की अटकलें
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त लिखते हैं, '10 दिसंबर को, अधिकांश अखबारों ने बताया कि गिल के मेरे उत्तराधिकारी बनने की संभावना है। उनमें से एक ने यह राय भी दी कि मेरे कार्यकाल की समाप्ति से पहले उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं होने की वजह से कोई वैक्यूम नहीं आने वाला है। इस राय का आधार यह था कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले फैसला सुनाया था कि गिल मेरी अनुपस्थिति में चुनाव आयोग के मामलों को देखेंगे।'
11 दिसंबर को अखबारों ने घोषणा कर दी कि गिल अगले सीईसी होंगे, लेकिन आखिरी समय तक मेरे पास सरकार की ओर से कोई आधिकारिक जानकारी नहीं थी कि कार्यभार कौन संभालेगा?"
आखिरी दिन ऑफिस नहीं गए थे टीएन शेषन
शेषन लिखते हैं, 'आप 11 दिसंबर को रिटायरमेंट के दिन ऑफिस क्यों नहीं गए?' 'क्या यह सच है कि आप आखिरी दिन ऑफिस नहीं गये?' ये वो सवाल हैं जो मुझसे करीब से जुड़े कुछ लोग अब भी पूछते हैं।"
वह आगे बताते हैं, "हां, उस दिन मैं ऑफिस नहीं गया था। सबको पता था कि मैं 11 दिसंबर को रिटायर होने वाला हूं। दरअसल, मैंने छह महीने पहले ही अलग-अलग जगहों पर यह जिक्र करना शुरू कर दिया था कि 11 दिसंबर ऑफिस में मेरी आखिरी तारीख है, ताकि वे तारीख न भूलें।"
किताब में लिखा है, "सरकारी नियमों के मुताबिक मुझे 11 दिसंबर को दोपहर से पहले जिम्मेदारी सौंपनी (नए सीईसी को) थी। मैं साढ़े तीन बजे तक घर पर इंतजार कर रहा था, उम्मीद कर रहा था कि सरकार मेरे उत्तराधिकारी के नाम की घोषणा करेगी लेकिन ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई। एक समय ऐसा भी था जब मैं समझ नहीं पा रहा था कि किसे जिम्मेदारी सौंपूं। ऐसे में केवल कागज के एक टुकड़े पर हस्ताक्षर करने और उसे अवर सचिव को सौंपने के लिए, मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से निर्वाचन सदन जाना जरूरी नहीं था। मैं अपनी सारी फ़ाइलें छह महीने से ही व्यवस्थित करना शुरू कर दिया था।"
जब सदन के बाहर पत्रकार करते रह गए इंतजार
किताब में आगे लिखा है, "3.30 बजे तक प्रतीक्षा करने के बाद और इससे पहले कि कोई मुझ पर उंगली उठाए कि मैंने कार्यभार नहीं सौंपा है, मैंने अपना जिम्मेदारी सौंपने का पत्र लिखा और इसे अवर सचिव को भेज दिया। निर्वाचन सदन (चुनाव आयोग का दफ्तर) में कुछ पत्रकार जाहिर तौर पर मेरा इंतजार कर रहे थे और उम्मीद कर रहे थे कि मैं ऑफिस आऊंगा। उन्हें निराश लौटना पड़ा।"
टीएन शेषन लिखते हैं, "नए मुख्य चुनाव आयुक्त एम.एस. गिल मेरे जितने ही सालों तक आईएएस अधिकारी रहे थे। आयोग में आने से पहले वह कृषि विभाग में सचिव के पद पर कार्यरत थे। उसके पास अनुभव था और वह परिपक्व भी थे। इस पद के लिए आवश्यक सभी गुण होने के कारण मुझे लगा कि वह अच्छा काम करेंगे। मेरे मन में न तो गिल और न ही कृष्णमूर्ति के प्रति कोई व्यक्तिगत दुर्भावना है। एकमात्र चीज जो मुझे पसंद नहीं आई वह थी उनकी नियुक्ति का तरीका। कृष्णमूर्ति अक्सर गैर जिम्मेदाराना बातें करते थे। 11 अक्टूबर की मीटिंग के अलावा वो क्या कहते थे, ये मैंने कभी किसी को नहीं बताया।"