Kuwait Fire: 1400 मौत, 16000 शिकायतें… कुवैत में हालात बदतर फिर भी भारतीय मजदूर क्यों सबसे ज्यादा?
मिडिल ईस्ट के देश कुवैत में 40 भारतीय मजदूरों की मौत से हर कोई स्तब्ध रह गया। बुधवार को कुवैत के मंगाफ में एक बिल्डिंग में भीषण आग लग गई और उस आग की चपेट में 40 भारतीय मजदूर आ गए। ज्यादातर मजदूर तमिलनाडु और केरल के रहने वाले थे। भारत सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और पीड़ित के परिवारों को दो लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने का ऐलान कर दिया है। अब कुवैत इस बार जो आग की घटना हुई है, उससे तो हर कोई हैरान है ही, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि मिडिल ईस्ट के देशों में भारतीय लोगों की स्थिति काफी खराब है। खास तौर पर जो मजदूर हैं, वो सिर्फ पैसों के लालच में कुवैत और दूसरे देशों में जा बसते हैं, लेकिन वहां पर काफी बदतर हालत में रहने को मजबूर दिखते हैं।
कुवैत में हर साल मर रहे भारतीय मजदूर
एक आंकड़ा बताता है कि पिछले 2 सालों में अकेले कुवैत में 1400 भारतीयों की मौत हो चुकी है। यहां भी ज्यादातर मजदूर क्लास के आदमी ने अपनी जान गंवाई है। कुवैत में जो भारतीय दूतावास है, उसे भी 2021 से 2023 के बीच में 16000 शिकायतें मिली है। यह सारी शिकायत उन भारतीय मजदूर की है जिन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें न समय पर सैलरी मिलती है ना उन्हें ठीक से रहने के लिए कोई जगह दी जाती है और कई प्रकार के शोषण भी उनके साथ किए जाते हैं। इस साल फरवरी में भी भारत के सदन में विदेश मंत्रालय की तरफ से महत्वपूर्ण जानकारी दी गई थी। बताया गया था कि कुवैत में 2022 से 2023 के बीच में कल 731 प्रवासी मजदूरों की मौत हुई, वहां भी 708 अकेले भारतीय थे। अगर थोड़ा और पीछे चल जाए तो कोरोना कल के दौरान 2020 में और 2021 में भी हजारों भारतीय मजदूर की मौत हुई थी। 2014 से 2018 के बीच तो आंकड़ा 2932 तक दर्ज किया गया।
सैलरी देते नहीं, रहने की जगह नहीं
अब यह आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि कुवैत में मजदूरों के लिए हालात अच्छे नहीं हैं। वहां पर खराब स्थिति और कम संसाधनों के बीच में मजबूरों को रहने को मजबूर किया जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि वर्तमान में कुवैत में 9 लाख भारतीय मजदूर हैं। हैरानी की बात यह है कि कुवैत की अर्थव्यवस्था जो इस समय आगे बढ़ रही है, उसमें भारतीयों की भूमिका सबसे ज्यादा है। वहां पर कुल आबादी की 21 फीसदी भारतीय जनसंख्या है। इसके बावजूद भी भारतीय मजदूरों के साथ कुवैत में काफी खराब व्यवहार किया जाता है। वहां के मजदूर अपनी आपबीती में बताते हैं कि उन्हें न समय पर सैलरी दी जाती है ना उन्हें ठीक से रहने की व्यवस्था मिलती है और उनके साथ बदसलूकी तक होती है। आरोप तो यहां तक लगे हैं कि कुवैत के स्थानीय लोग भी इन मजदूरों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं, वो लोग ज्यादा घुलते मिलते नहीं है। जो कंपनियां इन मजदूरों को कम रेट में हायर करती हैं, कई बार उनकी तरफ से पासपोर्ट तक जब्त कर लिए जाते हैं।
काम करने के कोई घंटे नहीं, जानवरों जैसा व्यवहार
इसके ऊपर एक ही रूम में 15 से 20 मजदूरों को ठूंस कर रखा जाता है। इस समय कुवैत में बंदरगाह के पास कई ऐसी बिल्डिंग मौजूद हैं जहां पर सुरक्षा के लिहाज से कोई भी सुविधा मौजूद नहीं है। खतरा लगातार मंडराता रहता है लेकिन फिर भी भारतीय मजदूर को तय समय से भी ज्यादा घंटे मजदूरी करने के लिए मजबूर किया जाता है। अब ऐसी ही एक घटना में 40 भारतीय मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई है।
कुवैत आखिर जा क्यों रहे मजदूर?
एक सवाल सभी के मन में आता है कि अगर कुवैत में हालात इतने खराब हैं, वहां पर लगातार मजदूरों की मौत हो रही है, फिर भी उनकी संख्या कम होने के बजाय बढ़ती क्यों जा रही है। अब इस सवाल का जवाब छिपा है कुवैत की सैलरी मैनेजमेंट में। मिडिल ईस्ट का यह देश भारतीय मजदूरों को ज्यादा पैसे देने का लालच देता है। भारत में एक दिहाड़ी मजदूर को जितनी सैलरी मिलती होगी, उससे ज्यादा पैसे देने का दावा किया जाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय मजदूर को कुवैत में महीने का 27000 रुपए मिलते हैं, वही अगर उसे कोई दूसरे काम आते हो, चाहे वो गैस कटर हो तो 40000 से 50000 के बीच में भी वो महीने का पैसा कमा सकता है। इसी सैलरी की वजह से हजारों मजदूर हर साल भारत छोड़ कुवैत चले जाते हैं और वहां पर खराब स्थिति के बीच में भी जिंदगी चलाने की कोशिश करते हैं।