Pregnancy में महिलाओं को होती हैं आंख संबंधी कई समस्याएं, इन बातों का रखें ख्याल, हमेशा Eyes रहेंगी हेल्दी
प्रेग्नेंसी एक एक अवस्था है जिसमें हर एक महिला के शरीर में शारीरिक और मानसिक बदलाव होते हैं। गर्भधारण करने पर महिलाओं के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं, जिनमें हार्मोनल बदलाव भी शामिल हैं। जिसके कारण शरीर में खून से लेकर दूसरे लिक्विड की मात्रा में बढ़त होती है या फिर कमी होती है। इतना ही नहीं बार-बार यूरिन जाने के कारण शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इतना ही नहीं इसके कारण आंखों की रोशनी भी काफी अधिक प्रभावित होती है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान आंखों की रोशनी में होने वाले इन बदलावों की देखभाल करने के लिए मां और उसके गर्भ में विकसित होते शिशु स्वस्थ के लिए जागरूकता और सक्रिय देखभाल की जरूरत होती है। राजकोट के नेत्रदीप मैक्स विजन आई हॉस्पिटल में बाल नेत्र रोग विशेषज्ञ, भेंगापन और मोतियाबिंद सलाहकार डॉ. अदिति सपोवाडिया से इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
डॉ. अदिति सपोवाडिया के अनुसार, हार्मोन में उतार-चढ़ाव के कारण आंखों की रोशनी पर परिवर्तन होता है। इस अवस्था में घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि प्रेगनेंसी के दौरान होने वाली सबसे आम बदलाव है। ये परिवर्तन हार्मोनल बदलावों के कारण होते हैं अर्थात शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन की उच्च मात्रा हो जाती है, जिससे कॉर्निया और लेंस के आकार और मोटाई को बदल सकती है। परिणामस्वरूप, गर्भवती महिलाओं की नज़र की रोशनी की कमी, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई या चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस के नंबर में बदलाव का सामना करना पड़ सकता है। ये परिवर्तन अक्सर अस्थायी होते हैं और बच्चे के जन्म के बाद या जब हार्मोन का स्तर ठीक हो जाता है, तो यह समस्या गायब हो जाती है। हालाँकि, गर्भवती माताओं को अपनी गर्भावस्था के दौरान नज़र संबंधी किसी भी असामान्यता लगे, तो तुरंत ही डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इसके साथ ही बार-बार आंखों की जांच करानी चाहिए।
आंखों में सूखापन हो जाना
प्रेग्नेंसी के समय आंखों के स्वास्थ्य का अधिक ध्यान रखा जाता है। लेकिन एक समस्या हो बढ़ जाती है। प्रेग्नेंट महिला के हार्मोनल परिवर्तनों के कारण ड्राई आई सिंड्रोम के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती हैं, जिससे आंसू निकलने की मात्रा को प्रभावित करती हैं। इससे बचने के लिए शरीर में पानी की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिए।
डायबिटीज के कारण आंखों पर असर
डॉ. अदिति सपोवाडिया के मुताबिक, अगर किसी गर्भवती महिला को डायबिटीज है, तो रेटिनोपैथी या ग्लूकोमा जैसी पहले से मौजूद समस्याओं को बढ़ा सकती है, जिससे जटिलताओं से बचने के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञ द्वारा नियमित निगरानी की जरूरत होती है। बता दें कि गर्भकालीन मधुमेह, एक प्रकार का डायबिटीज है, जो गर्भावस्था के दौरान विकसित होता है, मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी के खतरे को बढ़ाकर आंखों के स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकता है।
यह एक गंभीर आंख की अवस्था है जिसका इलाज न करने पर नज़र कमी (दृष्टि दोष) हो सकता है। इसके अलावा, गर्भावस्था केराटोकोनस को बढ़ा सकती है, जो एक प्रकार का विकार है जिसमें कॉर्निया पतला और फूला हुआ होता है। गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल परिवर्तन और फ्लूइड रिटेंशन इसको बढ़ाने में सहायता कर सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान केराटोकोनस के प्रबंधन और किसी भी दृश्य समस्या से बचने के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञ के साथ नियमित निगरानी और परामर्श की जरूरत होती है।
हाई ब्लड प्रेशर का रखें ख्याल
गर्भावस्था-प्रेरित उच्च रक्तचाप (Pregnancy induced hypertension (PIH)) उच्च रक्तचाप है, जो गर्भावस्था के 20वें सप्ताह के बाद विकसित होता है। इसका सबसे ज्यादा खतरा पहली बार गर्भावस्था और मोटापा शामिल हैं। पीआईएच मां और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक है, जिससे सुरक्षित गर्भावस्था और प्रसव सुनिश्चित करने के लिए कड़ी निगरानी और प्रबंधन की जरूरत होती है। गर्भावस्था की योजना बनाने और उच्च रक्तचाप के इलाज के लिए फंडस आई टेस्ट आवश्यक है।
हेल्दी आंखों के लिए डाइट में शामिल करें ये चीजें
डॉ. अदिति सपोवाडिया का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान आंखों की उचित देखभाल में न केवल आंखों की रोशनी में बदलाव की निगरानी करना शामिल है, बल्कि सामान्य स्वास्थ्य और फिटनेस देखभाल करना भी शामिल है। प्रेग्नेंट महिलाओं को आंखों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए आवश्यक पोषक तत्व जैसे विटामिन ए, ओमेगा -3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर संतुलित आहार को अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए। आंखों में सुखापन न हो, तो इसके लिए शरीर को हाइड्रेट रकें। इसके साथ ही समय-समय पर जांच कराती रहें।