मुगल साम्राज्य की नींव रखने वाले बाबर की सभी बेटियों के नाम में गुलाब का जिक्र, Rose Day पर जानिए गुलाब का चाइना कनेक्शन
Rose Day 2024: प्रेम का सप्ताह कहे जाने वाले वेलेंटाइन वीक (Valentine's Week 2024) की शुरुआत रोज़ डे (Rose Day) से होती है। सात फरवरी को 'रोज़ डे' मनाने की परंपरा पिछले कुछ सौ वर्षों में विकसित हुई है। इस दिन लोग एक-दूसरे को गुलाब का फूल देकर अपने प्यार का संकेत देते हैं।
गुलाब, विशेषकर लाल गुलाब को प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इंसानों में गुलाब के प्रति प्रेम के हजारों वर्ष पुराने साक्ष्य मिलते हैं। जीवाश्म रिकॉर्ड (Fossil Records) से पता चलता है कि यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिका में गुलाब तीन करोड़ वर्ष पहले से पाए जा रहे हैं।
हालांकि आज के 'रोज़ डे' वाले गुलाबों की तुलना नें उनके पूर्ववर्ती कम आकर्षक और फूलदार थे। लेकिन गुलाब के लंबे इतिहास में कई संस्कृतियों ने उसे समान रूप से सराहा। 600 ईसा पूर्व ग्रीक कवि सप्पो ने अपनी एक कविता "ओड टू द रोज़" में गुलाब को "फूलों की रानी" लिखा था। गुलाब के लिए इस तरह की भावना सदियों से व्यक्त की जा रही है।
चीन में शुरू हुई थी गुलाब की खेती
ऐसा माना जाता है कि गुलाब की खेती सबसे पहले चीन में की गई थी। वहां गुलाब चाउ राजवंश के शाही बगीचे में उगाए जाते थे। आज हम जो गुलाब उगाते हैं उनमें से कई चीन की मूल प्रजाति के हाइब्रिड हैं।
दर्ज इतिहास से ये पता चलता है कि 17वीं शताब्दी में ब्रिटिश जहाज जब चीन से माल लेकर इंग्लैंड के लिए निकलते थे, तो ईंधन भरने के लिए कलकत्ता (अब कोलकाता) के बंदरगाह पर रुकते थे। तब कलकत्ता ब्रिटिश इंडिया की राजधानी हुआ करती थी। चीन से चले ब्रिटिश जहाज पर गुलाब समेत कई पौधे हुआ करते थे।
अपनी यात्रा दोबारा शुरू करने से पहले उन पौधों को गंगा के तट पर हावड़ा के बॉटनिकल गार्डन में रखा जाता था। 1793 में स्कॉटिश सर्जन और वनस्पतिशास्त्री सर विलियम रॉक्सबर्ग ने चीन से लाए कुछ पौधों को हावड़ा के बॉटनिकल गार्डन में लगा दिया, इसके बाद से हर बैच से कुछ पौधे बगीचे में लगाए जाने लगे।
भारत में मुगल लेकर आए गुलाब!
पर्यावरण से जुड़ी वेबसाइट Mongabay पर प्रकाशित एक लेख में अधिकांश भारतीयों के मत के आधार पर यह बताया गया है कि गुलाब 10वीं शताब्दी में मुसलमानों के आगमन के साथ भारत आए।
तिरुवनंतपुरम के ललित कला महाविद्यालय में कला इतिहास पढ़ाने वाले चंद्रन टीवी ने एक लेख में बताया है कि मुगलों के आगमन के बाद गुलाब ने भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू की। प्रथम मुगल बादशाह बाबर (1483-1530) ने गुलाब के प्रति कुछ ज्यादा ही प्रेम प्रदर्शित किया। बाबर की सभी बेटियों के नाम में गुलाब का जिक्र आता है: गुलचेहरा (गुलाबी गाल वाली), गुलरुख (गुलाबी चेहरे वाली), गुलबदन (गुलाबी शरीर वाली) और गुलरंग (गुलाबी रंग वाली)।
मुगल लघुचित्रों में शाहजहां, दारा शिकोह, औरंगजेब आदि को गुलाब के साथ दिखाया गया है। कभी-कभी अकबर को भी गुलाब के फूल के साथ चित्रित किया जाता है। लेकिन अक्सर उन्हें एक दिव्य राजा के रूप में पेश किया जाता है। जहांगीर को आमतौर पर हाथ में ग्लोब या तलवार के साथ दिखाया जाता है, जो उनकी "विश्व विजेता" छवि का प्रतिनिधित्व करती है। शाहजहां अपनी चित्रों में अक्सर उंगलियों के बीच गुलाब लिए नजर आते हैं।
यह भिन्नता अलग-अलग अर्थ रखती है। शाहजहाँ ने गुलाब के फूल के साथ अपने चित्रों में एक मानवतावादी राजा की छवि प्रदर्शित करने की कोशिश की। अकबर और जहांगीर क्रमशः दिव्य राजा और मानवतावादी राजा की छवि प्रस्तुत करना चाहते थे। शाहजहां और कई अन्य लोगों के लिए गुलाब उतना ही महत्वपूर्ण था जितना कि जहांगीर के लिए ग्लोब या तलवार, या अकबर के लिए दैवीय आभामंडल।
गोलकुंडा के कुतुब शाही राजवंश (1518-1687) के चित्रों में भी गुलाब को प्रभावी रूप से देखा जा सकता है। संयोग से कुछ चित्रों में कुतुब शाही वंश के अंतिम शासक अब्दुल हसन को न केवल गुलाब के साथ दिखाया गया है, बल्कि उनके पूरे ऊपरी परिधान पर गुलाब की कढ़ाई दिखाई गई है।
टीपू सुल्तान और गुलाब
मैसूर के पास श्रीरंगपट्टनम में टीपू सुल्तान के ग्रीष्मकालीन महल में एक भित्ति चित्र में हैदर अली और टीपू को दो अलग-अलग फौजी समूहों के साथ दिखाया गया है। भित्ति चित्र में टीपू को घोड़े पर सवार होकर हाथ में गुलाब लिए हुए दिखाया गया है। इसके विवरण में लिखा है- बेफिक्र होकर गुलाब की सुगंध महसूस करते हुए टीपू।
यह दिलचस्प है कि टीपू ने गुलाब को इतनी स्पष्टता से पकड़े हुए हैं कि किसी की भी नज़र उस पर से नहीं हटती। इसका तात्पर्य यह है कि चित्रकारों ने उन्हें उसी तरह चित्रित किया जैसे शासक स्वयं को 'देखा जाना' पसंद करते थे।
आश्चर्य की बात यह है कि महल के दूसरी ओर टीपू के समकालीन शासकों के असंख्य चित्र चित्रित हैं। विभिन्न धर्मों और सांस्कृतिक क्षेत्रों से आने वाले राजाओं के हाथ में भी गुलाब दिखाया गया है।
कामसूत्र में गुलाब का जिक्र!
वात्स्यायन के कामसूत्र में भी गुलाब का जिक्र आता है। वह लिखते हैं कि एक गुणी पत्नी का कर्तव्य बगीचे की देखभाल करना भी होता है। वात्स्यायन पत्नी को बगीचे में सब्जी और सुगंधित फूल लगाने की सलाह देते हैं। फूलों में सूची में 'चाइना रोज़' का जिक्र भी आता है। लेकिन कुछ लोग ऐसा मानते हैं कामसूत्र में लिखे चाइना रोज़ का संबंध गुलाब से न होकर गुड़हल से है।
अपनी सुंदरता और खुशबू के लिए मशहूर, गुलाब को 15वीं शताब्दी से ही बढ़िया भोजन के साथ भी जोड़ा गया है। स्वाद बढ़ाने वाले तत्व के रूप में गुलाब की लोकप्रियता बहुत पुरानी है।
गुलाब का सबसे बड़ा उद्यान!
अमेरिका के Iowa State University Extension and Outreach के मुताबिक, अब तक के सबसे बड़े गुलाब उद्यानों में से एक का रखरखाव फ्रांस की महारानी जोसेफिन ने अपने महल में किया था। 1814 में उनकी मृत्यु के समय, महारानी जोसेफिन के बगीचे में गुलाब की लगभग 250 प्रजातियां थीं, जो उस समय ज्ञात हर किस्म के गुलाब का प्रतिनिधित्व करती थीं। पियरे-जोसेफ रेडआउट और क्लाउड एंटोनी थोरी ने इस प्रसिद्ध गुलाब उद्यान की सुंदरता को अपनी पेंटिंग 'लेस रोज़ेज़' में कैद किया है।