अगर शाहबानो मामले में राजीव गांधी का बनाया कानून 'मुस्लिम तुष्टीकरण' था, तो दूसरी सरकारों ने उसे बदला क्यों नहीं?- अय्यर ने नई किताब में उठाया सवाल
पूर्व कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने राजीव गांधी पर एक किताब लिखी है। हाल ही में लॉन्च हुई किताब का नाम 'द राजीव आई न्यू' (The Rajiv I Knew) है। इस किताब में अय्यर ने यह साबित करने की कोशिश की है कि कैसे एक प्रधानमंत्री के तौर पर राजीव गांधी को ठीक से नहीं समझा गया।
राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल (31 अक्टूबर, 1984 से 2 दिसम्बर, 1989) मणिशंकर अय्यर पीएमओ के संयुक्त सचिव के रूप में कार्यरत (1985 से 1989) थे। अपनी किताब के लिए अय्यर ने अपने इसी अनुभव का इस्तेमाल किया है। राजीव गांधी ही अय्यर को राजनीति में भी लेकर आए थे।
हिंदू तुष्टीकरण और मुस्लिम तुष्टीकरण
40 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले राजीव गांधी पर मुस्लिम तुष्टीकरण और हिंदू तुष्टीकरण, दोनों का आरोप लगता है। कहा जाता है कि राजीव ने शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटकर मुस्लिम तुष्टीकरण किया था। वहीं राम मंदिर का ताला खुलवा कर और शिलान्यास की अनुमति देकर हिंदू तुष्टीकरण को अंजाम दिया था। हालांकि अय्यर अपनी किताब में दोनों ही मामलों में राजीव गांधी का बचाव करते हुए तर्क और तथ्य पेश करते हैं।
अगर राजीव गांधी का बनाया कानून मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए था, तो दूसरे प्रधानमंत्रियों से उसे बदला क्यों नहीं?
शाहबानो मामला भारतीय राजनीति में मील का पत्थर है। मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली पांच बच्चों की मां शाहबानो को उनके पति ने तलाक दे दिया था। पति इस्लामी कानून के तहत तलाक के बाद तीन महीने की इद्दत अवधि तक खर्च देने को तैयार था। लेकिन तलाकशुदा शाहबानो हमेशा के लिए गुजारा भत्ता चाहती थीं।
वह इसके लिए सुप्रीम कोर्ट गईं। 23 अप्रैल 1985 को फैसला उनके पक्ष में आया। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि IPC की धारा-125 के तहत अलग हुई या तलाकशुदा पत्नी, भरण-पोषण के लिए पैसे मांग सकती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मुसलमानों पर भी लागू होता है, IPC की इस धारा और मुस्लिम पर्सनल लॉ में कई द्वंद नहीं है।
अदालत के फैसले का मुस्लिम धर्मगुरुओं, विशेषकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जमकर विरोध किया। फैसले को उन्होंने धार्मिक मामलों में अदालत का दखल माना। इसके बाद राजीव गांधी की सरकार संसद में मई, 1986 को मुस्लिम महिला (विवाह विच्छेद पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम लेकर आई। संसद में अधिनियम पास हो गया और शीर्ष अदालत के फैसले को प्रभावी रूप से रद्द कर दिया।
विपक्ष ने फैसले को "अल्पसंख्यक तुष्टिकरण" और मुस्लिम महिलाओं के प्रति "भेदभावपूर्ण" बताया। संयोग से साल 2001 में राजीव की हत्या के 10 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम को बरकरार रखते हुए कहा कि यह मुस्लिम पति को अपनी तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देने के दायित्व से मुक्त नहीं करता है। साथ ही यह गुजारा भत्ता को तीन महीने की इद्दत अवधि तक भी सीमित नहीं करता है।
अय्यर अपनी किताब में कोर्ट के इसी फैसले की ओर इशारा करते हैं। वह लिखते हैं, शायद 1986 के अधिनियम पर 2001 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह निष्कर्ष था कि अधिनियम के प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन नहीं करते हैं… और यह भी स्पष्ट करता है कि राजीव गांधी का मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 अब भी कानून की किताबों में क्यों बना हुआ है, जबकि भारत ने तब से कम से कम 12 सरकारें देखी हैं, उनमें से अधिकांश का नेतृत्व उन प्रधानमंत्रियों ने किया, जिन्होंने संसद के अंदर या बाहर विधेयक के खिलाफ बोला था… इसलिए यह स्पष्ट है कि दिवंगत राजीव गांधी पर मुस्लिम तुष्टीकरण का अनुचित आरोप लगाया गया था, जो कि संघ परिवार और वाम-उदारवादी बुद्धिजीवियों दोनों की पसंदीदा मनगढ़ंत कहानी है। …असल में अधिनियम की लगातार आलोचना… बहुसंख्यक समुदाय के चरमपंथी वर्गों के 'तुष्टिकरण' का एक गंभीर उदाहरण है।"
अय्यर आगे लिखते हैं, "राजीव ने अपने पीएमओ में अल्पसंख्यक मामलों के निदेशक की सलाह के खिलाफ और 'मुस्लिम तुष्टिकरण' और 'वोटबैंक की राजनीति' के आरोपों की आशंका के बावजूद इस मुद्दे को उठाया, क्योंकि उनका मानना था कि पीएम के रूप में देश को एकजुट रखना उनका कर्तव्य था। …उन्होंने महसूस किया कि इस मुद्दे पर अनदेखी या आत्मसमर्पण करने से ठीक उसी प्रकार के बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा मिलेगा जो अब देश पर हावी हो गया है।"
राजीव गांधी के कार्यकाल में पीएमओ के संयुक्त सचिव रहे वजाहत हबीबुल्लाह ने बीबीसी को बताया था कि राजीव गांधी को शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद में कानून लाकर पलटने की सलाह एमजे अकबर ने दी थी। तब वह बिहार के किशनगंज से कांग्रेस सांसद हुआ करते थे।
द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने अपनी किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में बताया है कि सोनिया गांधी नहीं चाहती थीं कि शाहबानो मामले में कोर्ट का फैसला पलटा जाए। उन्होंने राजीव से कहा था कि अगर आप मुझे इस मुस्लिम महिला विधेयक के बारे में नहीं समझा सकते, तो देश को कैसे मनाएंगे?
राजीव गांधी ने नहीं खुलवाया था ताला?
प्रधानमंत्री के रूप में राजीव के कार्यकाल को दो विवादित घटनाओं ने बहुत प्रभावित किया- बाबरी का ताला खोलना और राम मंदिर शिलान्यास की अनुमति देना।
अय्यर ने अपनी किताब में इन दो बड़े विवादों पर चर्चा की। 1986 में एक जिला सत्र अदालत के आदेश पर बाबरी मस्जिद के दरवाजे को खोला गया था। दरवाजा लगभग चार दशक पहले सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए सील किया गया था।
अय्यर लिखते हैं, "बेशक, कांग्रेस चूंकि वह सत्ता में थी, इसलिए दरवाजा खोलने के लिए जिम्मेदार भी वही थी। लेकिन कांग्रेस में कौन? यूपी के कांग्रेसी मुख्यमंत्री या कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री राजीव गांधी? प्रधानमंत्री द्वारा की गई अजीब टिप्पणियों से संकेत मिलता है कि उनका इससे कोई लेना-देना नहीं था और वे खुद बहुत परेशान थे।"
वह आगे कहते हैं कि पार्टी की आंतरिक जांच में पाया गया कि राजीव के चचेरे भाई और उस समय केंद्रीय राज्य मंत्री अरुण नेहरू ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने के लिए ताले खुलवाए थे। बाद में नेहरू को मंत्रिमंडल से हटा दिया गया।
अय्यर के मुताबिक, "राजीव गांधी से सलाह नहीं ली गई क्योंकि वह इस तरह के गैर-सैद्धांतिक कदम के लिए कभी सहमत नहीं होते। इसलिए उनके चचेरे भाई ने इस बात से बेखबर (या शायद सचेत) कि इससे सांप्रदायिकता की आग भड़क जाएगी, प्रधानमंत्री की झोली में एक उपलब्धि डालने का फैसला किया।"
हालांकि इसके तीन साल बाद ही 1989 के लोकसभा चुनावों से कुछ हफ्ते पहले राजीव सरकार ने वीएचपी को साइट पर "शिलान्यास समारोह" आयोजित करने की अनुमति दी थी। अय्यर इसे बाद के चुनावों में "राजीव गांधी की हार का सबसे महत्वपूर्ण कारण" मानते हैं।
अरुण नेहरू ने राजीव गांधी को दी थी राम मंदिर बनाने, UCC लाने और 370 हटाने की सलाह
नीरजा चौधरी ने अपनी किताब में लिखा है कि अरुण नेहरू ने राजीव गांधी से कहा था कि अगर वह सरकार में बने रहना चाहते हैं तो उन्हें तीन काम करने होंगे- राम मंदिर का निर्माण करना होगा, UCC (समान नागरिक संहिता) लागू करना होगा और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना होगा। विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें: