अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए संविधान में संशोधन करवाना चाहती थीं मेनका गांधी, इंदिरा ने कर दिया था मना
लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले एक बार भी रायबरेली और अमेठी की चर्चा है। उत्तर प्रदेश की इन दोनों सीटों पर कभी नेहरू-गांधी परिवार का दबदबा हुआ करता था। पिछले दिनों खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए कांग्रेस की वरिष्ठ सोनिया गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।
वहीं 2019 के आम चुनाव में गांधी परिवार के राजनीतिक उत्तराधिकारी राहुल गांधी अमेठी की सीट भाजपा की स्मृति ईरानी से हार गए थे। उस हार के बाद राहुल गांधी सिर्फ दो बार अमेठी गए हैं। जाहिर है वह इस सीट में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं।
राहुल के लिए भले ही अमेठी का उतना महत्व न हो, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब यूपी की इस सीट के लिए इंदिरा गांधी ने अपनी बहू को घर से निकाल दिया था, गांधी परिवार हमेशा-हमेशा के लिए बिखर गया था। क्या है वह किस्सा आइए जानते हैं:
संजय गांधी की मौत और मेनका गांधी की महत्वाकांक्षा
अमेठी से सांसद संजय गांधी की 23 जून, 1980 को एक विमान दुर्घटना में असामयिक मौत हो गई थी। 1981 में अमेठी में उपचुनाव हुए और संजय के बड़े भाई राजीव गांधी की जीत हुई। संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी को यह बात पसंद नहीं आई। वह अपने पति की जगह लेने की महत्वाकांक्षा पाले हुए थी।
संजय गांधी, इंदिरा के चुने हुए राजनीतिक उत्तराधिकारी थे। राजनीतिक मामलों में उन्हें अपनी मां का दाहिना हाथ माना जाता था। दूसरी तरफ राजीव गांधी थे, जो राजनीति से दूर राजीव इंडियन एयरलाइंस में अपने पायलट के करियर से खुश थे। लेकिन संजय की मौत के बाद मां के आदेश पर राजीव को राजनीति में आना पड़ा।
मेनका गांधी और सोनिया गांधी
संजय गांधी और राजीव गांधी की तरह दोनों की पत्नियों का स्वभाव भी एक दूसरे से जुदा था। बड़े भाई राजीव की पत्नी सोनिया विनम्र, अंतर्मुखी और सास की दुलारी थीं। सोनिया को अपने पति की तरह ही राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था। दूसरी तरफ मेनका एक साहसिक स्वभाव की स्त्री थीं। वह 70 के दशक से ही अपने पति संजय के साथ राजनीतिक कार्यक्रमों में नजर आने लगी थीं।
अपने लिए संविधान में संशोधन करवाना चाहती थीं मेनका!
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई ने अपनी किताब '24 अकबर रोड: ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ द पीपुल बिहाइंड द फॉल एंड राइज ऑफ द कांग्रेस' में लिखा है कि 1981 में राजीव गांधी द्वारा अमेठी उपचुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने के बाद मेनका गांधी ने उन्हें किनारे करने की बहुत कोशिश की"।
किदवई ने पूर्व राजनयिक और गांधी परिवार के करीबी मोहम्मद यूनुस के हवाले से लिखा है, "भारत में चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 25 वर्ष है। चूंकि मेनका उस समय 25 वर्ष की भी नहीं थीं, इसलिए वह चाहती थीं कि इंदिरा गांधी उनके लिए संविधान में संशोधन कर दें, लेकिन प्रधानमंत्री नहीं मानीं।"
इंदिरा गांधी के इस फैसले को मेनका ने अपने दिवंगत पति की राजनीतिक विरासत को हड़पने के प्रयास के रूप में देखा। मेनका के मन का यह डर इंदिरा और उनके बीच दरार का कारण बना।