होमताजा खबरचुनावराष्ट्रीयमनोरंजनIPL 2024
राज्य | उत्तर प्रदेशउत्तराखंडझारखंडछत्तीसगढ़मध्य प्रदेशमहाराष्ट्रपंजाबनई दिल्लीराजस्थानबिहारहिमाचल प्रदेशहरियाणामणिपुरपश्चिम बंगालत्रिपुरातेलंगानाजम्मू-कश्मीरगुजरातकर्नाटकओडिशाआंध्र प्रदेशतमिलनाडु
वेब स्टोरीवीडियोआस्थालाइफस्टाइलहेल्थटेक्नोलॉजीएजुकेशनपॉडकास्टई-पेपर

"कमलनाथ ने हाथ उठाया और भीड़ रुक गई" 1984 के सिख विरोधी दंगों से कांग्रेस के दिग्गज नेता का क्यों जुड़ता है नाम

द इंडियन एक्सप्रेस के तत्कालीन क्राइम रिपोर्टर संजय सूरी बताते हैं, '...मैंने सड़क पर भीड़ को गुरुद्वारे की ओर बढ़ते देखा। इस भीड़ के बगल में कमलनाथ थे।'
Written by: एक्सप्लेन डेस्क | Edited By: Ankit Raj
नई दिल्ली | Updated: February 19, 2024 12:25 IST
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Express archive photo)
Advertisement

अर्जुन सेनगुप्ता

अटकलें लगाई जा रही हैं कि कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamal Nath) अपने बेटे नकुल (Nakul) के साथ भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल होने वाले हैं।

गौरतलब है कि भाजपा लंबे समय से कमलनाथ पर अनेक आरोप लगाती रही है। 1984 के सिख विरोधी नरसंहार में कमलनाथ की कथित भूमिका को लेकर तो भाजपा ने उन्हें लगातार निशाना बनाया है।

Advertisement

जब 'बड़ा पेड़ गिरने' से दहल उठी दिल्ली

31 अक्टूबर, 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके दो सिख अंगरक्षकों ने गोली मार दी थी। कहा जाता है कि ऐसा उन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए किया था। प्रधानमंत्री की हत्या के बाद देश में नरसंहार का दौर शुरू हुआ, जो अगले तीन दिनों तक चला।

सिख विरोधी दंगे का सबसे ज्यादा असर दिल्ली में देखने को मिला। प्रतिशोध की आग में जल रही भीड़ ने लगभग 3,000 निर्दोष सिखों को मार डाला। न केवल कांग्रेस पार्टी के नेताओं पर हिंसा भड़काने और भीड़ का नेतृत्व करने का आरोप लगा, बल्कि निर्दोष सिखों की पहचान करने और उन्हें निशाना बनाने के लिए राज्य मशीनरी का कथित उपयोग भी किया गया।

Advertisement

सिखों के नरसंहार के बाद 19 नवंबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री और इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी ने बोट क्लब में लोगों को संबोधित करते हुए कहा था, "…जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है।"

कमलनाथ और गुरुद्वारा रकाबगंज में हिंसा

1 नवंबर, 1984 को लगभग 4,000 की भीड़ ने संसद भवन (पुराना वाला) के ठीक बगल स्थित गुरुद्वारा रकाबगंज को घेर लिया। मनोज मित्ता और एचएस फूलका ने अपनी किताब When a Tree Shook Delhi (2007) में सिख विरोधी दंगों के का विवरण विस्तार से लिखा है।

रकाबगंज गुरुद्वारे में भीड़ ने विभिन्न प्रकार की हिंसा को अंजाम दिया। करीब पांच घंटे तक भीड़ ने गुरुद्वारे को घेर कर रखा। भीड़ ने गुरुद्वारे के अंदर सिखों पर पथराव किया। पेट्रोल में डूबे हुए कपड़ों को जलाकर फेंका। सबसे खराब तो यह हुआ कि भीड़ ने मौके पर ही दो सिखों की हत्या कर दी।" गुरुद्वारे के गेट पर उग्र भीड़ ने पिता और पुत्र दोनों को जिंदा जला दिया था, वहीं पुलिस ने कथित तौर पर कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था।

उस समय उभरते हुए कांग्रेस नेता कमलनाथ मौके पर मौजूद थे। मित्ता और फूलका ने लिखा है, "हिंसा स्थल पर कमलनाथ की मौजूदगी की पुष्टि दो सबसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों, आयुक्त सुभाष टंडन और अतिरिक्त आयुक्त गौतम कौल के साथ-साथ एक स्वतंत्र स्रोत, द इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर संजय सूरी ने की थी।"

2015 में द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक साक्षात्कार में सूरी ने रकाबगंज के बाहर के दृश्य का विस्तार से वर्णन किया था, "जब मैं रकाबगंज गुरुद्वारा गया, तो बाहर भीड़ थी और वे बढ़ती जा रही थीं। दो सिखों को पहले ही जिंदा जला दिया गया था। मैंने सड़क पर भीड़ को गुरुद्वारे की ओर बढ़ते देखा। इस भीड़ के बगल में कमलनाथ थे। भीड़ आगे बढ़ रही थी, तभी कमलनाथ ने हाथ उठाया और वे रुक गये। आप इसे दो तरह से देख सकते हैं। पहला तो यह कि उन्होंने भीड़ को रोका। लेकिन मेरा सवाल यह है कि उनके और भीड़ के बीच ऐसा क्या रिश्ता था कि उन्हें केवल हाथ उठाना था और वे रुक गए?"

दंगे की जांच और कमलनाथ की बेकसूरी

घटनास्थल पर उनकी मौजूदगी की पुष्टि के बावजूद, कमलनाथ के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई और जांच में उनकी भूमिका को नजरअंदाज कर दिया गया। न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग ने नाथ सहित सभी वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को क्लीन चिट दे दी। इसी आयोग ने 1985 में हिंसा की जांच की थी।

हालांकि, नाथ का नाम न्यायमूर्ति नानावती आयोग (2000-04) की जांच में सामने आया। आयोग के सामने पेश होकर, नाथ ने अपनी उपस्थिति स्वीकार की लेकिन सूरी के आरोपों से इनकार किया कि उनका भीड़ पर कोई "नियंत्रण" था। उन्होंने आयोग को बताया कि "जब वह गुरुद्वारे के पास थे, तो उन्होंने भीड़ को तितर-बितर करने और कानून को अपने हाथ में न लेने के लिए मनाने की कोशिश की थी। पुलिस आयुक्त के आने के बाद वह घटनास्थल से चले गए।"

आखिरकार आयोग कमलनाथ को दोषी ठहराने में असमर्थ रहा। नानावती आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है, "ठोस सबूतों के अभाव में आयोग के लिए यह कहना संभव नहीं है कि कमलनाथ ने किसी भी तरह से भीड़ को उकसाया था या वह हमले में शामिल थे।"

कमलनाथ लंबे समय से दावा करते रहे हैं कि उन्हें नानावती आयोग द्वारा "पूरी तरह से दोषमुक्त" कर दिया गया था। लेकिन जैसा कि मित्ता और फूलका ने बताया है कि नानावती आयोग ने उन्हें 'बेनिफिट ऑफ डाउट' का लाभ दिया।

Advertisement
Tags :
1984 Anti Sikh RiotsIndira GandhiKamalnath
विजुअल स्टोरीज
Advertisement
Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा एजुकेशन समाचार (Education News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।