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JMM: भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला चुके हैं हेमंत सोरेन, जानिए आंदोलन से निकले झारखंड मुक्ति मोर्चा का इतिहास

History Of JMM: झारखंड मुक्ति मोर्चा की शुरुआत कुर्मी संगठन, शिबू सोरेन के नेतृत्व वाले संथाल और एक मार्क्सवादी संगठन के बीच गठबंधन के रूप में हुई थी। झामुमो पहली बार 2005 में राज्य की सत्ता में आई थी।
Written by: एक्सप्लेन डेस्क | Edited By: Ankit Raj
नई दिल्ली | Updated: February 02, 2024 14:56 IST
शिबू सोरेन झामुमो के अध्यक्ष हैं। (Express archive photo)
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विधात्री राव

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के लिए एक बड़ा झटका है। JMM अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर हुए आंदोलन से उभरी थी। पार्टी की वैचारिक नींव अविभाजित बिहार के झारखंड आंदोलन में निहित है।

1950 में बनी झारखंड फॉर्मेशन पार्टी ने सबसे पहले औपचारिक रूप से अलग झारखंड राज्य की मांग उठाई। अविभाजित बिहार के दक्षिणी हिस्से के विभाजन की मांग के केंद्र में मोटे तौर तीन बाते थीं- अनोखी आदिवासी पहचान, सामुदायिक भूमि की मांग और शोषण का खात्मा।

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प्रोफेसर अमित प्रकाश ने अपनी पुस्तक द पॉलिटिक्स ऑफ डेवलपमेंट एंड आइडेंटिटी इन द झारखंड रीजन ऑफ बिहार (इंडिया) 1951-91 में लिखा है कि झारखंड फॉर्मेशन पार्टी दक्षिण बिहार में "झारखंडी" पहचान के तहत आदिवासियों और गैर-आदिवासियों को एकजुट करने वाली पहली राजनीतिक पार्टी थी।

पहले आम चुनाव में 32 सीटें जीती थी झारखंड फॉर्मेशन पार्टी

झारखंड फॉर्मेशन पार्टी ने 1952 में पहले आम चुनाव में 32 सीटें जीतीं और एक नए राज्य के निर्माण के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग (एसआरसी) को एक ज्ञापन सौंपा। प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया, जिससे इसकी लोकप्रियता में गिरावट आई।

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साल 1963 में झारखंड फॉर्मेशन पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया। हालांकि, विलय से गुटबाजी और अन्य समस्याएं पैदा हुईं। लगभग उसी समय क्षेत्र के आदिवासी एक साथ आ रहे थे, और क्षेत्र के पिछड़ेपन को उजागर करने के लिए छोटे आंदोलनों का नेतृत्व कर रहे थे।

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का उदय

कुर्मी नेता बिनोद बिहारी महतो ने शिवाजी समाज नामक एक सामाजिक सुधार संगठन चलाया, जो 1960 और 1970 के दशक में समुदाय के लोगों के लिए लैंड रेस्टोरेशन का काम करता था। संगठन ने शिबू सोरेन के नेतृत्व वाले संथालों के साथ गठबंधन किया, जो भूमि अधिकारों के लिए भी लड़ रहे थे। यह गठबंधन औपचारिक रूप से 1973 में अस्तित्व में आया और इसे झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नाम से जाना गया। कम्युनिस्ट नेता एके रॉय की अध्यक्षता वाली मार्क्सवादी समन्वय समिति (MCC) भी JMM के समर्थन में आ गयी।

JMM और MCC साथ में मिलकर सामाजिक कार्यों में भी लग गए और दक्षिण बिहार में अपनी पकड़ बनाई। शिबू सोरेन आंदोलन के सबसे बड़े नेताओं में से एक के रूप में उभरे, उन्होंने अवैध खनन के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट किया और 1970 के दशक में देश के बाकी हिस्सों में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया।

झामुमो में दरार

झामुमो के लिए वामपंथी समर्थन तब समाप्त हो गया जब पार्टी ने बिहार में 1980 के विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन किया। यह आधिकारिक तौर पर 1984 में एक अलग राजनीतिक दल के रूप में लॉन्च हुआ।

इसके तुरंत बाद झामुमो के कुछ मुद्दों को लेकर मत भिन्नता गहरी हुई, जिससे सोरेन के नेतृत्व वाले समूह और बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाले समूह के बीच विभाजन हो गया।

1987 में JMM (सोरेन), JMM (मरांडी), और अन्य छोटे संगठन झारखंड के लिए एकीकृत आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए झारखंड समन्वय समिति (जेसीसी) बनाने के लिए एक साथ आए।

समर्थन के बदले मिला 'पुरस्कार'?

1997 और 1998 के बीच JMM ने बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सरकार का समर्थन किया। यह रिश्ता आज भी जारी है। राजद के एक विधायक वर्तमान में झारखंड में गठबंधन का समर्थन कर रहे हैं।

शिक्षाविद् संजय कुमार और प्रवीण राय ने 2009 में इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (EPW) में लिखा था कि इस समर्थन के बदले में राजद ने भी JMM को फायदा पहुंचाया। राजद सरकार ने 1997 में एक अलग राज्य (झारखंड) के निर्माण की सिफारिश करने वाला एक प्रस्ताव को स्वीकार किया। तीन साल बाद नवंबर 2000 में झारखंड नामक अलग राज्य का अस्तित्व में आया।

नए राज्य में राजनीतिक अस्थिरता

भाजपा के नेतृत्व में राज्य का पहला सत्तारूढ़ गठबंधन बना। 2000 के बिहार चुनाव के आधार पर बाबूलाल मरांडी (जो तब भाजपा में थे।) को नए राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया। वह साल 2003 तक सत्ता में रहे, जब विश्वास मत का सामना करना पड़ा तो पद से इस्तीफा दे दिया।

झामुमो को उम्मीद थी कि वह नए राज्य के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करेगी। इस उम्मीद के पीछे कई वजहें थीं, जैसे- झामुमो झारखंड आंदोलन का चेहरा था और झामुमो नेता शिबू सोरेन आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे। 2004 के लोकसभा चुनाव में झामुमो, कांग्रेस, राजद और सीपीआई के गठबंधन ने 14 लोकसभा सीटों में से 13 पर जीत हासिल की।

अगले वर्ष नए राज्य के पहले विधानसभा चुनावों में, झामुमो ने फिर से कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। लेकिन चुनाव हार गई। झामुमो ने जिन 49 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से केवल 17 सीटें जीतने में सफल रही। पार्टी को मात्र 14.3% वोट मिले। कुल मिलाकर गठबंधन को 81 विधानसभा क्षेत्रों में से 26 पर जीत हासिल हुई।

भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) भी बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच सका था। ऐसे में राज्यपाल सैयद सिब्ते रज़ी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने अपना बहुमत साबित कर दिया और राज्य के तीसरे सीएम बन गए।

2000 के बाद से झारखंड ने छह मुख्यमंत्री और तीन बार राष्ट्रपति शासन देखा है। पिछले चार चुनावों में, 81 सदस्यीय सदन में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, जिससे गठबंधन और अस्थिर सरकारों की श्रृंखला बन गई है।

2009 में झामुमो, भाजपा के नेतृत्व वाली एक अल्पकालिक सरकार में शामिल हुई थी। हेमंत सोरेन ने उस सरकार में डिप्टी सीएम के रूप में काम किया था।

चार साल बाद हेमंत राज्य के सबसे युवा सीएम बने लेकिन अगले वर्ष भाजपा से हार गए। वह 2019 में राज्य सरकार में वापस आ गए। वर्तमान में झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन के पास 48 विधायक हैं, जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के पास 29 विधायक हैं। महाराष्ट्र में भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल राकांपा के अजित पवार गुट के पास एक विधायक है और दो निर्दलीय हैं।

झारखंड में झामुमो कितनी मजबूत?

अपनी विरासत के बावजूद, झामुमो कभी भी झारखंडी हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली केंद्रीय पार्टी के रूप में उभर नहीं पाई। 2009 के चुनाव आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए, कुमार और राय ने लिखा कि विधानसभा स्तर पर झामुमो के चुनावी प्रदर्शन ने संकेत दिया कि "पार्टी का समर्थन आधार व्यापक नहीं है। पार्टी कभी भी विधानसभा चुनावों में 25% से अधिक वोट नहीं जुटा सकी है।" 2009 के विधानसभा चुनावों में उसे 15.2%, 2014 में 20.4% और 2019 में 18.7% वोट मिले।

कुमार और राय ने तर्क है कि 1991 से शुरू हुए संसदीय चुनावों में झामुमो का शुरुआती प्रदर्शन, जीती गई सीटों के प्रतिशत के मामले में थोड़ा बेहतर था। शिबू सोरेन राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका निभाते रहे।

शिबू सोरेन और झामुमो के पांच अन्य सांसदों पर 1993 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट करने के लिए "रिश्वत" लेने का आरोप लगाया गया था। इस मामले में साल 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सांसदों को संविधान से यह छूट मिली है कि उनके खिलाफ सदन में दिए किसी भाषण या वोट के लिए आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

पिछले तीन लोकसभा चुनावों में झामुमो की राष्ट्रीय स्तर पर उपस्थिति कम हुई है, क्योंकि भाजपा ने राज्य की अधिकांश संसदीय सीटें जीत ली हैं। 2014 की तरह, 2019 में झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन ने दो लोकसभा सीटें जीतीं, जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को 12 सीटें मिलीं।

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Hemant SorenJharkhandJMM
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