'जय जवान, जय किसान' का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री ने किसानों के लिए क्या किया था?
भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। देश की राजधानी दिल्ली की सीमा पर जारी किसानों के विरोध प्रदर्शन में अक्सर 'जय जवान, जय किसान' के नारे लगाए जा रहे हैं।
यह नारा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (1904-66) ने 1965 में दिया था। शास्त्री का नारा तब भी उतना ही प्रेरक और प्रभावी था, जितना की आज है। यहां हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि पूर्व प्रधानमंत्री ने यह नारा किस संदर्भ में गढ़ा था।
नेहरू के बाद कौन?
भारत के पहले प्रधानमंत्री और आजादी के बाद से भारतीय राजनीति में सबसे कद्दावर व्यक्ति जवाहरलाल नेहरू की 27 मई, 1964 को मृत्यु हो गई थी। अब कांग्रेस पार्टी को यह तय करना था कि नेहरू का उत्तराधिकारी कौन होगा? यानी देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा?
रेस में सबसे आगे मोरारजी देसाई थे। वह एक सक्षम और महत्वाकांक्षी प्रशासक थे। वह चाहते भी थे कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाए। हालांकि, पार्टी में कई लोग देसाई के नाम पर सहमत नहीं थे।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने इंडिया आफ्टर गांधी (2007) में लिखा है "कुछ ही दिनों में यह स्पष्ट हो गया कि देसाई एक विवादास्पद विकल्प होंगे। उनकी शैली बहुत आक्रामक थी।"
देसाई की जगह छोटे कद के लाल बहादुर शास्त्री कांग्रेस की पसंद के उम्मीदवार प्रतीत हो रहे थे। गुहा ने लिखा, "शास्त्री अच्छे प्रशासक थे, हिंदी पट्टी से आते थे और अधिक सुलभ व्यक्ति थे।" गुहा के मुताबिक, इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखा गया कि नेहरू अपने अंतिम दिनों में शास्त्री पर अधिक भरोसा करने लगे थे।
शास्त्री की छवि मृदुभाषी और 'अच्छे व्यक्ति' की थी। उनके आस-पास के लोग उन्हें हमेशा कम आंकते थे। हालांकि वह असाधारण रूप से निष्ठावान व्यक्ति थे। उन्होंने 1956 में एक ट्रेन दुर्घटना के बाद रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। इन खूबियों के बावजूद कई लोगों को शास्त्री की नेतृत्व क्षमता पर संदेह था क्योंकि आशंका थी कि नेहरू के न होने से भारत के सामने कई चुनौतियां आने वाली हैं।
शास्त्री ने डटकर किया चुनौतियों का सामना
कई नेताओं की आशंका सही साबित हुई। नेहरू के बाद भारत के सामने कई चुनौतियां आ खड़ी हो गईं। शास्त्री को उथल-पुथल वाला भारत विरासत में मिला था। एक तरफ नागा स्वतंत्रता आंदोलन ने भारत की संप्रभुता को खतरे में डाल दिया था, दूसरी तरफ अक्टूबर 1964 में चीन ने परमाणु परीक्षण कर नई दिल्ली को चिंता में डाल दिया था।
उसी दौरान डीएमके का हिंदी विरोधी आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा था। 1965 में गणतंत्र दिवस के दिन मद्रास (अब चेन्नई ) में दो लोगों ने खुद को आग लगा ली और इसके बाद कांग्रेस के अंदर ही असंतोष पैदा हो गया।
फिर अशांत कश्मीर भी तो था। अवसर को भांपते हुए पाकिस्तान के राष्ट्रपति और पूर्व सैन्य प्रमुख ने ऑपरेशन जिब्राल्टर को हरी झंडी दे दी। पाकिस्तान की योजना घाटी में भारत के खिलाफ एक बड़े विद्रोह को भड़काने की थी। अगस्त की शुरुआत में पाकिस्तान ने सीजफायर लाइन को पार किया, पुलों को उड़ा दिया और सरकारी प्रतिष्ठानों पर बमबारी की।
विद्रोह सफल नहीं हुआ, लेकिन ऑपरेशन जिब्राल्टर के कारण भारत-पाक युद्ध (1965) जरूर हो गया। पाकिस्तानियों को उम्मीद थी कि शास्त्री के नेतृत्व में भारत जल्दी घुटनों पर आ जाएगा। लेकिन इस हमले ने विभिन्न धर्मों और राज्यों के भारतीयों को एकजुट कर दिया और शास्त्री ने अपनी ताकत दिखायी।
गुहा ने लिखा, "जब युद्ध के संचालन की बात आई, तो शास्त्री ने नेहरू की नीति नहीं अपनाई। वह अपने कमांडरों की सलाह लेने और पंजाब सीमा पर हमले का आदेश देने में तत्पर थे।" हालांकि उन्होंने निश्चित रूप से शांति को प्राथमिकता दी।
दोनों पक्ष 23 सितंबर को युद्धविराम पर सहमत हुए, जिससे पाकिस्तान अपने किसी भी उद्देश्य को पूरा करने में सफल नहीं हो सका। भारत-पाक युद्ध के दौरान शास्त्री ने 1965 में इलाहाबाद जिले के उरुवा गांव में एक सार्वजनिक सभा के दौरान "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया था।
"जय जवान" देश की विशाल सीमाओं की रक्षा करने वाले भारत के सैनिकों के लिए था, जबकि "जय किसान" उन विनम्र किसान के लिए था, जो संकट से गुजर रहे थे।
शास्त्री के छोटे से कार्यकाल में भारत के जवानों ने सीमा पर दुश्मन को नाकाम कर दिया, जबकि किसानों ने देश का पेट भरने के लिए खेतों में मेहनत की। प्रधानमंत्री के लिए, दोनों देश की भलाई और सुरक्षा के लिए केंद्रीय स्तंभ थे।
शास्त्री ने किसानों के लिए क्या किया?
1960 के दशक में खाद्य उत्पादन में कमी देखी गई थी। कृषि उत्पादकता में वृद्धि जनसंख्या वृद्धि के अनुरूप नहीं थी। यानी किसान फसल कम उगा पा रहे थे। लेकिन देश में खाने वालों की तेजी से बढ़ रही थी।
शास्त्री इस स्थिति को लेकर चिंतित थे। उन्होंने भारत के कृषि क्षेत्र पर नए सिरे से ध्यान देना शुरू किया। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने पहला काम कृषि क्षेत्र के लिए बजट बढ़ाने का किया। उन्होंने हरित क्रांति की नींव रखते हुए बड़े सुधारों को समर्थन देना शुरू किया किया।
शास्त्री ने सी सुब्रमण्यम और कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन जैसे लोगों को सपोर्ट किया। सी सुब्रमण्यम को शास्त्री ने कृषि मंत्री बनाया। वहीं आगे चलकर एमएस स्वामीनाथन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के प्रमुख बने।
शास्त्री के कार्यकाल के दौरान ही CACP (Commission for Agricultural Costs and Prices) की स्थापना की गई थी। CACP को यह सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था कि किसानों को उनकी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिले। भारतीय खाद्य निगम (FCI) को भी इसी उद्देश्य से बनाया गया था। शास्त्री ने वर्गीस कुरियन की मदद से भारत की श्वेत क्रांति को भी बढ़ावा दिया।