Srikanth Movie Review: गाना गाने-मोमबत्ती बनाने के लिए नहीं हैं ब्लाइंड लोग, 'श्रीकांत' में राजकुमार राव ने फूंकी जान
फिल्म- श्रीकांत
जॉनर- बायोपिक (इंडस्ट्रीलिस्ट-श्रीकांत बोला)
डायरेक्टर- तुषार हीरानंदानी
ड्यूरेशन- 2 घंटे 14 मिनट
स्टार कास्ट- राजकुमार राव, अलाया एफ, ज्योतिका, शरद केलकर और अन्य
स्टार- 3.5/5
जब सारी उम्मीदें खत्म हो जाती हैं और लगने लगता है कि सबकुछ खत्म हो गया है अब कुछ नहीं हो सकता है तो ऐसे में कहा जाता है ना कि मान लेना चाहिए कि वहीं से जीवन का नया अध्याय शुरू होता है और आप कुछ बेहतर काम के लिए बने हैं। ऐसा हम नहीं कई बार आपने मोटिवेशनल स्पीकर्स के मुंह से सुना होगा। पूर्व दिवंगत राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी कहते हैं कि अगर तुम सूरज की तरह चमकना चाहते हो तो पहले सूरज की तरह जलो। कुछ ऐसी ही कहानी आप लोगों के बीच राजकुमार राव लेकर आए हैं। दृष्टिहीन लोगों को लेकर लगभग सभी के मन में ख्याल आता है कि वो कुछ नहीं कर सकते हैं और उनका लाइफ में काफी परिश्रम होता है। उन्हें देखकर बेचारा वाली फीलिंग्स आती होगी। ऐसे में इसी बेचारा वाली फीलिंग्स के बैरियर को राजकुमार राव की फिल्म 'श्रीकांत' ने तोड़ा है।
दरअसल, 'श्रीकांत' को सिनेमाघरों में रिलीज कर दिया गया है। इसे 10 मई, 2024 को रिलीज किया गया है। इसकी कहानी इंडस्ट्रीलिस्ट श्रीकांत बोला के जीवन पर आधारित है, जो ब्लाइंड होते हैं फिर भी बड़े सपने देखते हैं और उसे पूरा भी करते हैं। स्कूल में साइंस पढ़ने की लड़ाई से लेकर एमआईटी में पढ़ने तक की कहानी को दिखाया गया है, जिसमें राजकुमार राव ने कमाल का काम किया है और सभी का दिल जीत लिया है। फिल्म को जनसत्ता की ओर से 5 में से 3.5 स्टार दिए जाते हैं। ऐसे में चलिए प्वाइंट्स में बताते हैं फिल्म कैसी है।
कैसी है फिल्म की कहानी?
फिल्म 'श्रीकांत' की कहानी की शुरुआत आंध्र प्रदेश से होती है, जहां 13 जुलाई, 1991 को मछलीपट्टनम में एक लड़के का जन्म होता है, जो श्रीकांत बोला होते हैं। परिवार वालों की खुशी का ठिकाना नहीं होता है कि बेटे का जन्म हुआ है लेकिन, ये खुशी तब दुख में बदल जाती है जब उन्हें पता चलता है कि बेटा जन्मजात से ही दृष्टिहीन है। इसके बाद श्रीकांत की फैमिली भी उन परिवारों की तरह ही सोचने लगता है कि इस बच्चे को मार देना चाहिए क्योंकि उनकी जिंदगी बेकार होती है। अगर उस दिन वो बच्चा दफन हो जाता तो उसके साथ कई सपने और प्रेरणा भी दफन हो जाती लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है क्योंकि मां तो मां होती है ना। कहानी आगे बढ़ती है और काफी संघर्ष आते हैं क्योंकि श्रीकांत ने सोच लिया था कि वो दृष्टिहीन होने के नाते कठिनाइयों से भाग नहीं सकते बल्कि उससे लड़ सकते हैं। बाकी आगे की मोटिवेशनल कहानी को देखने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी कि वो कैसे एक गरीब परिवार से होकर भी बड़े सपने देखते हैं और एक इंडस्ट्रीलिस्ट बनते हैं। इस बीच उनकी प्रेम कहानी और इमोशनल सीन्स भी देखने के लिए मिलते हैं।
राजकुमार राव की एक्टिंग ने फूंकी जान, क्या कर रहीं ज्योतिका और शरद केलकर?
राजकुमार राव की एक्टिंग पर शक नहीं कि वो एक उम्दा एक्टर हैं। उन्होंने एक दृष्टिहीन का रोल बहुत ही बारिकी के साथ प्ले किया है। उन्होंने उन बातों का ध्यान रखा कि एक नेत्रहीन की आंखों की मूवमेंट कैसी होती है और वो कैसे बात करता है। उनके अभिनय ने सभी का दिल जीत लिया है। उनके हाव-भाव कमाल के हैं। देखने के बाद लगेगा ही नहीं कि वो नेत्रहीन नहीं हैं। राजकुमार की एक्टिंग ने फिल्म में जान ही फूंक दी है।
वहीं, फिल्म में एक्ट्रेस ज्योतिका और शरद केलकर भी हैं। ज्योतिका ने राजकुमार यानी कि श्रीकांत की टीचर देविका का रोल प्ले किया है, जो कि उनकी पग-पग मदद करती हैं और उनकी वजह से वो अपने सपनों को पूरा कर पाते हैं। इसके साथ ही एक्ट्रेस अलाया फर्नीचरवाला भी लेडी लव के रोल में अच्छी लगी हैं। शरद केलकर तो अपने संजिदा अभिनय के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने इसमें श्रीकांत के बिजनेस पार्टनर और दोस्त रवि का रोल अदा किया है, जिसमें वो इन्वेस्टर के रोल में खूब जमे हैं। वहीं, जमील खान ने मिसाइल मैन और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के किरदार को निभाया है।
कसा हुआ है डायरेक्शन
इसके साथ ही फिल्म 'श्रीकांत' के डायरेक्शन की बात की जाए तो इसका निर्देशन तुषार हीरानंदानी ने किया है। बायोपिक में अक्सर आपने देखा होगा कि उसमें इमोशनल सीन्स को ज्यादा दिखाया जाता है। किसी के स्ट्रगल को स्क्रीन्स पर काफी इमोशंस के साथ दिखाया जाता है लेकिन, यहां पर कहानी और संघर्ष को प्रेरणा के तौर पर दिखाया गया है। इमोशनली खेला जा सकता था लेकिन, इसे पॉजिटिव अंदाज में दिखाया गया है। इसे देखने के बाद बेचारा वाला फीलिंग्स नहीं आती है बल्कि आप प्रेरित महसूस करते हैं।
फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी एंटरटेनिंग है। ये ऊबाऊ नहीं लगता है। फिल्म शुरू से ही आपको कुर्सी से बांधे रखती है, लेकिन सेकेंड हाफ कहीं ना कहीं स्लो नजर आता है और कुछ बदलाव होते हैं, जो कहीं ना कहीं मन में सवाल छोड़ देते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? वजह को तलाशते हैं लेकिन, उसका जवाब नहीं मिल पाता है। फिर जब क्लाइमैक्स आता है तो आप अच्छा फील करने लगते हैं और थिएटर से बाहर खुद को मोटिवेट करके ही निकलते हैं। कसे हुए डायरेक्शन के लिए डायरेक्टर और डायलॉग राइटर को पूरे नंबर मिलने चाहिए। सबकुछ एकदम रियल जैसा ही लगता है।
कैसा है फिल्म का म्यूजिक और गाने?
वहीं, फिल्म के म्यूजिक और गाने की बात की जाए तो इसका थीम सॉन्ग 'पापा कहते हैं' पूरी फिल्म में बीच-बीच में बजता है, जो कि मूवी के सीक्वेंस के हिसाब से खूब जंचता है। वैसे ये गाना फिल्म 'कयामत से कयामत तक' का है। इसे 'श्रीकांत' में री-क्रिएट किया गया है। इसके साथ ही फिल्म में दो और गाने 'हंसना सिखा दे' और 'हम तेरे प्यार में मुस्कुराने लगे' दिल को छू जाता है। इमोशनल सीन्स और स्ट्रगल की कहानी के बीच ये दोनों गाने अलग ही रोमांच पैदा करते हैं और मूवी को थोड़ी देर के लिए अलग ट्रैक पर ले जाते हैं, जिसे आप खूब पसंद करने वाले हैं।
फिल्म देखनी चाहिए या नहीं?
अंत में बात करते हैं फिल्म 'श्रीकांत' देखनी चाहिए या नहीं। हमारे समाज में दिव्यांग को लेकर लोगों की एक धारणा है 'बेचारा' वाली। फिल्म इस बैरियर को तोड़ती है और लोगों की इस सोच पर प्रहार करती है। ये एक नई सोच को जन्म देती है कि दिव्यांग हैं तो क्या हुआ हम सब कुछ कर सकते हैं बस बराबरी का मौका तो दो। वहीं, दूसरी चीज ये भी महसूस की जा सकती है कि जब आपको लगता है कि आपके साथ कुछ अच्छा नहीं हो रहा और आपकी जिंदगी खत्म हो रही है। आपसे बुरी किस्मत और संघर्ष किसी का हो ही नहीं सकता तो ऐसे में एक नेत्रहीन की जिंदगी को याद करना है कि उसकी जिंदगी कैसी होगी? उसकी समस्या और कठिनाइयों के आगे आपकी समस्या कुछ नहीं। फिल्म में एपीजे अब्दुल कलाम का एक कोट भी दिखाया गया है कि किस्मत के सहारे मत रहिए बल्कि मेहनत कीजिए और अपनी किस्मत कुछ लिखिए। मेहनत आपका सब कुछ है और किस्मत आपका लक है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आप फिल्म के लिए थिएटर का रुख बिल्कुल कर सकते हैं।