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Mirzapur 3 Review: बदल चुका है मिर्जापुर का खेल, सनक और जुनून के साथ भौकाल मचा रहे गुड्डू पंडित, नहीं खली मुन्ना भैया की कमी

Mirzapur 3 Review and Rating: मिर्जापुर का ये सीजन पिछले सीजन से ज्यादा पसंद किया जा रहा है। गुड्डू के किरदार के अलावा इस बार औरतों के किरदार भी स्ट्रॉन्ग दिखाए गए हैं।
Written by: Gunjan Sharma | Edited By: Gunjan Sharma
नई दिल्ली | Updated: July 05, 2024 12:09 IST
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मिर्जापुर 3 रिव्यू
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Mirzapur 3 Review: 'खेल बल और बुद्धि का, खेल मिर्जापुर की गद्दी का'। इससे ये पता चलता है कि इस बार मिर्जापुर की गद्दी कालीन भैया के हाथ में नहीं है और इसके लिए बवाल होने वाला है। शरद, बीना या कोई और? इस बार कौन गद्दी को संभालेगा या कालीन भैया कुछ ऐसा करेंगे जो मिर्जापुर के इतिहास में हुआ ही नहीं।

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जिस गुड्डू पंडित ने मजबूरी में आकर गुंडागर्दी शुरू की थी अब उसे इसमें मजा आने लगा है। जिस कालीन भैया के लिए गुड्डू पंडित ने काम करना शुरू किया था आज वो उन्हीं की गद्दी पर बैठने के लिए तैयार हैं। गोलू भी मिर्जापुर में फुलप्रूफ गेम प्लान कर रही है और शरद उर्फ जूनियर शुक्ला यानी शरद अपने पापा का सपना पूरा करने की जद्दोजहद में लगे हैं। कालीन भैया का पत्ता मिर्जापुर से साफ हो चुका है और बीना अपने बच्चे को मोहरा बनाकर नया दांव चलने के लिए तैयार है। मुन्ना भैया मिसिंग हैं लेकिन उनकी खास कमी खल नहीं रही है, लेकिन क्या उनकी एंट्री होगी?

'मिर्जापुर 2' जिन सस्पेंस के साथ खत्म हुआ था वो सब इस बार खुल गए हैं। इस सीरीज का जो क्रेज दर्शकों के बीच था वो इस बार और भी बढ़ने वाला है। इस बार गुड्डू मजबूर नहीं है बल्कि उसके हाथ में पावर है, जिसका इस्तेमाल कर वो दांव पेंच खेलने वाला है। पिछले सीजन में अखंडा त्रिपाठी यानी कालीन भैया गोली से भूना गया था, लेकिन वो बचे थे या मर गए थे ये नहीं दिखाया गया था। इस सीजन की शुरुआत उन्हीं से होती है। गोलू परेशान है कि उसे कालीन भैया की डेड बॉडी देखनी  है।

जो भी हो हर कोई ये जानता है कि पूरे पूर्वांचल की पावर थी तो उन्हीं के हाथ में। गुड्डू अब वो पावर चाहता था लेकिन उसके सामने शरद शुक्ला खड़ा है,जिसके पिता रतिशंकर शुक्ला को गुड्डू ने ही भगवान के पास पहुंचाया था। अब वो गुड्डू से बदला लेने के लिए तैयार बैठा है। दूसरी तरफ बीना अपने बच्चे को मिर्जापुर की गंदी राजनीति से बचा रही है और उनका साथ खुद गुड्डू दे रहा है। मुन्ना भैया की विधवा माधुरी यादव मुख्यमंत्री पद को संभालते हुए लखनऊ को गुंडागर्दी से मुक्त करना चाहती है।

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इस सीजन में क्या है अलग?

पिछले दो सीजन में गुंडागर्दी और भर-भर कर खून खराबा दिखाया था, लेकिन इस बार मेकर्स ने समझदारी से काम लिया है। इस बार भौकाल कम और कहानी पर ज्यादा काम किया गया है। अली फजल के किरदार गुड्डू पंडित को भी इस बार ताकत कम और दिमाग ज्यादा लगाते हुए दिखाया गया है। जिन लोगों को सिर्फ मारधाड़ और गुंडागर्दी पसंद है उन्हें ये सीजन शायद कम पसंद आए, लेकिन अंत में एक फाइट सीन दिखाया गया है जो धुआंदार है और पूरे सीजन में मारधाड़ की कमी को पूरा कर देता है।

इनका किरदार मजेदार

इस सीजन में औरतों का किरदार दमदार दिखाया गया है, चाहे वो गोलू हो, बीना हो, माधुरी हो या फिर रधिया और जरीना। इनके किरदार और डायलॉग सभी काफी दमदार दिखाए गए हैं। पिछले दो सीजन के मुकाबले इस सीजन में औरतों की दबदबा दिखाया गया है।

क्यों देखें?

इस बार डायलॉग के साथ-साथ डायरेक्शन, प्लॉट, एग्जीक्यूशन, कैमरे का काम सब पिछले दो सीजन की तुलना में और भी बेहतर हुआ है। इस बार खाली भौकाली नहीं दिखाई गई है बल्कि कहानी और उसे बताने के तरीके पर अधिक काम हुआ है।

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