CineGram: 'मेकअप करके अंतिम संस्कार करना', सिनेमा जगत की 'जानकी' अनीता गुहा को देवी की तरह पूजते थे लोग, बीमारी के कारण हुआ था बुरा हाल, अकेलेपन में बीते थे आखिरी पल
साल 1975 में 'शोले' और 'दीवार' के अलावा एक और फिल्म रिलीज हुई थी। फिल्म का नाम था 'जय संतोषी मां'। इस फिल्म ने कमाई के कई रिकॉर्ड तोड़े थे और बॉलीवुड की सबसे सुपरहिट फिल्मों में शुमार शोले को भी बॉक्स ऑफिस पर कड़ी टक्कर दी थी। 'जय संतोषी मां' ने उस जमाने में 5 करोड़ से ज्यादा की कमाई की थी। वहीं इस फिल्म की लीड एक्ट्रेस को भी खूब पसंद किया गया था। एक्ट्रेस का नाम था अनीता गुहा।
पर्दे पर 'संतोषी मां' के किरदार ने अनीता को इतनी पॉपुलारिटी मिली कि लोग उन्हें ही संतोषी मां समझने लगे थे औऱ उनके पोस्टर्स की पूजा भी करते थे। अनीता गुहा 60-70 के दशक की मशहूर अभिनेत्रियों में से एक थीं। अपने करियर में सफलता के शिखर को चूमने वालीं अनीता की निजी जिंदगी अंतिम समय में मुश्किलों से भरी रही। शादी के कुछ सालों के बाद ही पति का निधन हो गया और अनीता अकेली रह गईं। आज हम आपको अनीति गुहा के जीवन के कुछ किस्से बताने जा रहे हैं।
सिनेमा जगत की सीता थीं अनीता गुहा
अनीता गुहा का जन्म 17 जनवरी 1939 को बर्मा के पास एक गांव में हुआ था। पिता फॉरेस्ट ऑफिसर थे तो अनीता का बचपन पूर्वोत्तर के राज्यों जैसे दार्जिलिंग और सुंदरबन में गुजरा। बंटवारे के बाद अनीता का परिवार कोलकाता आकर बस गया था। कोलकाता से अनीता ने अपनी पढ़ाई पूरी की और मॉडलिंग में हाथ आजमाया और मिस कोलकाता बनीं। इसके बाद एक टैलेंट कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेने के लिए अनीता बॉम्बे आ गईं। अनीता ने 1953 में 'बांशेर केल्ला' से फिल्मी दुनिया में कदम रखा। 1955 में रिलीज हुई फिल्म 'तांगा वाली' उनकी पहली हिंदी फिल्म थी।
इसके बाद वह 'भला आदमी', 'कल क्या होगा', 'माया बाजार', 'एक झलक', 'देख कबीरा रोए', 'टैक्सी स्टैंड' जैसी बी-ग्रेड फिल्मों में साइड कैरेक्टर के रोल में नजर आईं। अनीता बी-ग्रेड फिल्में नहीं करना चाहती थीं। साल 1957 में अनीता को फिल्म पवनपुत्र हनुमान में सीता का रोल ऑफर हुआ और इस फिल्म ने उनकी किस्मत बदल दी। इसके बाद उन्हें 'संपूर्ण रामायण', 'श्री राम भरत मिलाप' जैसी फिल्मों में भी सीता के किरदार में देखा गया।
पति की मौत से लगा सदमा
अनीता गुहा ने साल 1961 में एक्टर माणिक दत्त से शादी की और उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली और शादी के कुछ साल बाद ही अनीता के पति की मौत हो गई। पति की मौत के सदमे ने उन्हें डिप्रेशन में चली गईं और साल 1969 में उन्होंने बॉलीवुड में फिल्म अनुराधा से कमबैक किया, लेकिन 1975 में आई फिल्म जय संतोषी मां ने उनकी जिंदगी बदल दी। इस फिल्म की सफलता के बाद अनीता गुहा टॉप एक्ट्रेस बन गईं। लोग उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेने लगते और उन्हें संतोषी माता कहकर पुकारते। अपने घरों में उनकी फोटो लगाकर उन्हें पूजने लगे। उनकी इस फिल्म को देखने के लिए देश के कोने-कोने से लोग बुग्गी और बेलगाड़ियों में भरकर पहुंचे थे। सिनेमाघरों में घुसने से पहले लोग चप्पलें उतार देते थे और हाथ जोड़कर खड़े हो जाते थे। इसके बाद अनीता ने एक बार फिर से फिल्मी दुनिया से दूरी बना ली और अकेले जिंदगी बिताने लगीं। अनीता गुहा की आखिरी फिल्म 'लखपति' थी जो कि 1991 में रिलीज हुई थी।
अकेलेपन में बीते आखिरी पल
स्टारडम का स्वाद चखने वाली अनीता गुहा को अपनी पर्सनल लाइफ में वो खुशी नहीं मिल पाई, जो उन्हें बॉलीवुड में मिली। इतना ही नहीं अकेलेपन के साथ एक्ट्रेस को एक ऐसी बीमारी हो गई, जिसने उनसे उनकी खूबसूरती भी छीन ली। दरअसल, अनीता गुहा को ल्यूकोडर्मा नाम की बीमारी हो गई थी, इस बीमारी की वजह से धीरे-धीरे उनके शरीर पर सफेद धब्बे पड़ने लगे थे। समय बीतने के साथ उनके सफेद धब्बे भी बढ़ने लगे और एक्ट्रेस को खुद ही नफरत हो गई थी। अनीता गुहा के आखिरी दिन अकेलेपन और बीमारी के चलते बहुत दर्दनाक बीते। वो अपनी बीमारी से इस कदर परेशान और दुखी हो गई थीं कि उन्होंने अपने परिवारवालों से कहा था कि मेरा मेकअप करके अंतिम संस्कार करें। ताकि कोई उनके दाग-धब्बे न देख पाए। 20 जून 2007 को मुंबई में अनीता ने 68 साल की उम्र में कार्डियक अरेस्ट से दम तोड़ दिया। अनीता के परिवार ने उनकी आखिरी इच्छा के मुताबिक अंतिम संस्कार से पहले उनके चेहरे का मेकअप किया गया था।