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पंजाब: भाजपा उम्मीदवार आइएएस अफसर परमपाल को वीआरएस देने से किया इनकार

कुछ दिनों पहले ही केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को सूचित किया था कि आइएएस अधिकारी का इस्तीफा अखिल भारतीय सेवा नियमों की धारा 3 का पालन करते हुए स्वीकार कर लिया है।
Written by: कंचन वासदेव | Edited By: Bishwa Nath Jha
नई दिल्ली | Updated: May 09, 2024 13:24 IST
परमपाल कौर। फोटो -(इंडियन एक्सप्रेस)।
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पंजाब सरकार ने आइएएस अधिकारी परमपाल कौर को मंगलवार को एक नोटिस जारी करते हुए उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) का लाभ देने से इनकार करते हुए, अपने कार्य को फिर से शुरू करने का निर्देश दिया। साथ ही कहा कि नोटिस का अनुपालन न करने पर उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

कुछ दिनों पहले ही केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को सूचित किया था कि आइएएस अधिकारी का इस्तीफा अखिल भारतीय सेवा नियमों की धारा 3 का पालन करते हुए स्वीकार कर लिया है। परमपाल अप्रैल में भाजपा में शामिल हो गई थीं और पार्टी ने उन्हें बठिंडा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है। भाजपा में शामिल होने से ठीक पहले परमपाल ने मुख्य सचिव अनुराग वर्मा को अपना इस्तीफा सौंप दिया था।

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हालांकि, मुख्यमंत्री भगवंत मान ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया था। इसके बावजूद वे भाजपा में शामिल हो गईं और बाद में उन्हें बठिंडा लोकसभा क्षेत्र के लिए भाजपा का उम्मीदवार नामित किया गया, जिसकी मुख्यमंत्री ने आलोचना की थी। मान ने सार्वजनिक रूप से उनके फैसले पर सवाल उठाया और कहा कि उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया है।

तब केंद्र ने एक पत्र के जरिए हस्तक्षेप किया जिसमें कहा गया कि भर्ती प्राधिकारी के रूप में भारत सरकार ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। राज्य सरकार की ओर से जारी नोटिस में स्पष्ट किया गया है कि नियम 16(2) के तहत आवश्यक तीन महीने की नोटिस अवधि को माफ नहीं किया गया है, न ही वीआरएस के लिए उनके अनुरोध के संबंध में कोई निर्णय लिया गया है।

हालांकि, उन्होंने पीएसआइडीसी के प्रबंध निदेशक के रूप में अपने कर्तव्यों को स्वयं ही त्याग दिया था, लेकिन राज्य सरकार ने नियमों के अनुसार नोटिस अवधि को माफ नहीं किया गया था। इसके अलावा नोटिस में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि परमपाल कौर ने तीन महीने की नोटिस अवधि की छूट का अनुरोध किया था, जिसे केवल राज्य सरकार द्वारा ही दिया जा सकता है, बशर्ते कि कुछ शर्तें पूरी हों और कारण लिखित में दर्ज किए गए हों।

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