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Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा को दस साल बाद मिलेगा नेता प्रतिपक्ष, जानें बिना विपक्ष के नेता के क्यों रहा निचला सदन

2014 और 2019 में कांग्रेस के पास क्रमश: 44 और 54 सीटें ही थीं।
Written by: जनसत्ता
नई दिल्ली | Updated: June 10, 2024 05:55 IST
रविवार, 9 जून, 2024 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाती राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू। (पीटीआई फोटो)
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मौजूदा लोकसभा चुनाव में ‘इंडिया’ गुट के घटक दलों की सीटों की संख्या बढ़ने के साथ ही निचले सदन को 10 साल बाद विपक्ष का नेता (एलओपी) मिलेगा और विपक्षी नेताओं को यह भी उम्मीद है कि जल्द ही उपाध्यक्ष पद के लिए चुनाव होगा। लोकसभा में पिछले पांच साल से उपाध्यक्ष का पद रिक्त है।

विपक्ष के नेता का पद मोदी सरकार के पिछले दो कार्यकाल में खाली रहा। इसकी वजह यह थी कि विपक्ष की किसी भी पार्टी के सांसदों की संख्या सदन के कुल सांसदों के 10 फीसदी नहीं थी। इसकी वजह से किसी भी दल के नेता को विपक्ष के नेता का दर्जा नहीं मिल सका। 2014 और 2019 में कांग्रेस के पास क्रमश: 44 और 54 सीटें ही थीं। इसके चलते पार्टी के नेता को विपक्ष के नेता का दर्जा नहीं मिल सका। विपक्षी दलों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन उसके पास जरूरी सांसदों की संख्या नहीं थी।

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17वीं लोकसभा में पूरे कार्यकाल में नहीं रहा कोई उपाध्यक्ष

पांच जून को भंग हुई 17वीं लोकसभा को अपने पूरे कार्यकाल के लिए कोई उपाध्यक्ष नहीं मिला तथा यह निचले सदन का लगातार दूसरा कार्यकाल था, जिसमें कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं था। सभी की निगाहें निचले सदन पर टिकी हैं, जहां विपक्ष का नेता चुना जाएगा और साथ ही एक उपाध्यक्ष पद चुने जाने की भी उम्मीद है। उपाध्यक्ष का पद आमतौर पर विपक्षी खेमे को मिलता है। ‘इंडिया’ गठबंधन ने संसद के लिए अपनी रणनीति पर अभी तक कोई समन्वय बैठक नहीं की है। वहीं, एक विपक्षी नेता ने कहा कि वे इस बात के लिए दबाव बनाएंगे कि इस बार उपाध्यक्ष का पद खाली न छोड़ा जाए।

तृणमूल कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘बीजेपी सरकार को लोगों ने नकार दिया है, उन्होंने पिछले पांच साल में (लोकसभा) उपाध्यक्ष नहीं चुना… उम्मीद है कि बीजेपी ने सबक सीख लिया होगा और इस बार उपाध्यक्ष चुना जाएगा।’ सत्रहवीं लोकसभा में भाजपा 303 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत में थी और ओम बिरला को लोकसभा अध्यक्ष चुना गया था। पहली बार, पांच साल के कार्यकाल के दौरान कोई उपाध्यक्ष नहीं चुना गया। संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार, लोकसभा को जल्द से जल्द दो सदस्यों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनना चाहिए, जब भी पद खाली हो। हालांकि, इसमें कोई विशिष्ट समय सीमा नहीं दी गई है।

‘पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च’ में विधायी एवं नागरिक जुड़ाव पहल के प्रमुख चक्षु राय ने बताया, ‘उपाध्यक्ष का पद एक संवैधानिक आवश्यकता है। हालांकि, एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा और कुछ राज्यों की विधानसभाओं ने उपाध्यक्ष के पद को नहीं भरा है। उदाहरण के लिए, 2019 से 2024 के बीच, लोकसभा में कोई उपाध्यक्ष नहीं था। पिछली राजस्थान विधानसभा में भी पूरे पांच साल के कार्यकाल के लिए कोई उपाध्यक्ष नहीं था।’

उन्होंने कहा, ‘वर्तमान में, झारखंड विधानसभा में कोई उपाध्यक्ष नहीं है, जिसका कार्यकाल इस साल के अंत में समाप्त होने वाला है।’ राय ने कहा, ‘संवैधानिक आवश्यकता के अलावा, अतीत में कई मौकों पर परंपरा के अनुसार उपाध्यक्ष का पद विपक्षी दलों के पास गया है। यह परंपरा न केवल लोकतांत्रिक मानदंडों को मजबूत करती है, बल्कि अध्यक्ष के पद की निरंतरता भी सुनिश्चित करती है, जो कभी खाली नहीं रह सकता।’

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