Bihar Loksabha Chunav: 2009 से 17 सीटों पर जीत रहे एक ही जाति के उम्मीदवार, इनमें से आठ अपर कास्ट के
बिहार की राजनीति में जाति किस कदर घुली हुई है, यह किसी से छिपा नहीं है। राज्य में हर दल जातीय समीकरण देखकर ही टिकट तय करता है। राज्य की राजनीति पर इसका असर यह हुआ है कि साल 2009 से बिहार की 17 लोकसभा सीटों पर एक ही जाति का उम्मीदवार जीता है। खास बात ये है कि इन 17 सीटों में से 8 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जो राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ जाति सहित अन्य अपर कास्ट उम्मीदवारों ने जीती हैं।
राजपूत उम्मीदवार कहां-कहां जीते?
पिछले तीन लोकसभा चुनावों में महराजगंज, वैशाली, औरंगाबाद और आरा लोकसभा सीट पर राजपूत उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई है। महाराजगंज में साल 2009 में राजद के उमाशंकर सिंह, साल 2014 और 2019 में बीजेपी के जनार्दन सिंह ने जीत दर्ज की थी। वह यहां से इस बार लगातार तीसरी बार मैदान में हैं।
वैशाली लोकसभा सीट पर साल 2009 में राजद के रघुवंश प्रसाद सिंह, साल 2009 और 2014 में एलजेपी की रामा किशोर सिंह और साल 2014 में वीणा देवी ने जीत दर्ज की थी। वीणा देवी एलजेपी के टिकट पर यहां से फिर मैदान में हैं। बात अगर आरा लोकसभा सीट की करें तो यहां 2009 में जदयू की मीना सिंह ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद इस सीट पर बीजेपी के आरके सिंह ने विजय हासिल की। बीजेपी ने आरके सिंह को फिर चुनाव मैदान में उतारा है।
बिहार के 'चितौड़गढ़' के नाम से फेमस औरंगाबाद में भी राजपूतों का दबदबा है। इस सीट पर बिहार के पूर्व सीएम सत्येंद्र नारायण सिंह ने 1952, 1971, 1977, 1980 और 1984 में जीत दर्ज की। उनकी बहू श्यामा सिन्हा यहां 1999 में जीतीं और फिर उनके बेटे और दिल्ली के पूर्व कमिश्नर निखिल कुमार ने यहां 2004 में जीत हासिल की। साल 2009 से सुशील सिंह औरंगाबाद के सांसद हैं।
पिछली तीन बार से नवादा और मुंगेर जीत रहे भूमिहार
नवादा और मुंगेर लोकसभा सीट पर पिछली तीन बार से भूमिहार जाति के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। बीजेपी के भोला सिंह ने साल 2009 ने नवादा में जीत दर्ज की थी। इसके बाद यहां 2014 में गिरिराज सिंह और फिर 2019 में एलजेपी के चंदन सिंह ने जीत दर्ज की। इस बार इस सीट पर बीजेपी के भूमिहार नेता विवेक ठाकुर किस्मत आजमा रहे हैं।
मुंगेर में 2009 में जदयू के ललन सिंह ने जीत दर्ज की थी, साल 2014 में इस सीट पर एलजेपी की वीणा देवी जीतें और फिर साल 2019 में ललन सिंह इस सीट पर वापस काबिज हो गए। वह इस बार फिर यहां से चुनाव लड़ रहे हैं।
दरभंगा पर तीन बार से ब्राह्मणों का कब्जा
दरभंगा लोकसभा सीट पर पिछली तीन बार से ब्राह्मण उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। साल 2009 और साल 2014 में बीजेपी के टिकट पर यहां से कीर्ति आजाद ने जीत दर्ज की। इसके बाद यहां पिछले चुनाव में गोपालजी ठाकुर ने जीत दर्ज की। गोपालजी यहां फिर से चुनाव मैदान में हैं। पटना साहिब लोकसभा सीट पर साल 2009 और साल 2014 में बीजेपी के टिकट पर शत्रुघ्न सिन्हा ने जीत दर्ज की थी। पिछले चुनाव में यहां रविशंकर प्रसाद जीते।वह इस बार फिर से चुनाव मैदान में हैं।
अपर कास्ट की संख्या कम, दबदबा ज्यादा
इस बारे में बात करते हुए जदयू के एक सीनियर नेता कहते हैं कि पार्टियों के लिए यह स्वभाविक है कि वो जातियों की ताकत के हिसाब से लोकसभा क्षेत्र चुनें लेकिन राज्य में 11% आबादी होने के बावजूद अपर कास्ट का 8 क्षेत्रों में दबदबा है।
बात अगर ओबीसी जातियों की करें तो बिहार में यादवों की संख्या सबसे ज्यादा है। राज्य में यादवों की आबादी करीब 14% है, बावजूद इसके इन्हें सिर्फ तीन ही सीटों - मधेपुरा, मधुबनी और पाटलिपुत्र पर सफलता मिली है। मधेपुरा लोकसभा सीट पर साल 2009 में शरद यादव, साल 2014 में राजद के पप्पू यादव को जीत मिली थी। इसके बाद यहां जदयू के दिनेश चंद्र यादव जीते। मधेपुरा के बारे में एक बात जो अकसर कही जाती है वो यह कि 'रोम पोप का और मधेपुरा गोप का'।
मधुबनी लोकसभा सीट पर साल 2009, साल 2014 में बीजेपी के हुकुमदेव नारायण यादव ने जीत दर्ज की। इसके बाद उनके बेटे अशोक इस सीट पर जीते। अशोक को एकबार फिर से बीजेपी ने चुनाव मैदान में उतारा है जबकि पाटलिपुत्र लोकसबा सीट पर साल 2009 में जदयू के रंजन यादव ने लालू यादव को हराया था। इसके बाद यहां 2014 और 2019 में बीजेपी के रामकृपाल यादव ने लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती को मात दी।
'कुर्मीस्तान' के रूप में जाना जाता है नालंदा
नालंदा लोकसभा सीट को अक्सर 'कुर्मीस्तान' भी कहा जाता है। साल 2004 में इस सीट पर जदयू सुप्रीमो और बिहार के मौजूदा सीएम नीतीश कुमार ने जीत दर्ज की थी। नीतीश कुमार के बाद यहां हर बार जदयू के कौशलेंद्र कुमार ने जीत हासिल की। वह फिर से चुनाव मैदान में हैं। ओबीसी जाति में आने वाले कोइरी कास्ट (कुशवाहा) के उम्मीदवारों ने साल 2009 से कारकाट में जीत दर्ज की। जदयू के महाबली सिंह साल 2009 और साल 2019 में यहा जीत दर्ज की। राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुश्वाह यहां 2014 में जीते। कुश्वाहा चुनाव में यहां एनडीए के प्रत्याशी हैं।
ओबीसी कैटेगरी में आने वाले जायसवाल (बनिया वर्ग में सब-कास्ट) के उम्मीदवार साल 2009 से पश्चिमी चंपारण पर कब्जा किए हुए हैं। यहां लगातार बीजेपी के संजय जायसवाल जीत रहे हैं। वह लगातार चौथी बार चुनाव मैदान में हैं। मुजफ्फरपुर में ईबीसी वर्ग में मल्लाह (निशाद) जाति का वर्चस्व दिखाई दे रहा है। साल 2009 में यहां जदयू के कैप्टन जयनारायण निषाद ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद यहां 2014, 2019 में उनके बेटे अजय निषाद ने जीत दर्ज की। अजय को इस बार बीजेपी ने टिकट नहीं दिया तो वह पाला बदलकर कांग्रेस में आ गए हैं। बीजेपी ने इस सीट से राजभूषण निषाद को चुनाव में उतारा है। मुजफ्फरपुर में इस बार मुकाबला निषाद बनाम निषाद होगा।