अखिलेश यादव की तरह बिहार में बीजेपी को रोकने में कामयाब क्यों नहीं हुए तेजस्वी? समझिए क्या है इसकी वजह
Lok Sabha Chunav 2024 Results: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजें में सामने आया कि एनडीए ने बिहार की 40 में से 30 सीटें अपने नाम कर लीं। बीजेपी को यहां 9 सीटें मिलीं, उसके सहयोगी दलों को भी यहां काफी फायदा हुआ है, चाहे वो जेडीयू हो, या फिर लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास), सभी ने अच्छा प्रदर्शन किया। दूसरी ओर बीजेपी को यूपी में सपा-कांग्रेस के कमजोर माने जा रहे गठबंधन से बड़ा झटका लगा और पार्टी की 33 सीटों पर सिमट कर रह गई।
बिहार में लालू प्रसाद यादव के बेटे और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने विपक्ष के अभियान का नेतृत्व किया, जबकि उत्तर प्रदेश में अखिलेश ने अपनी पार्टी का नेतृत्व आगे रहकर किया है। आरजेडी ने 2019 के लोकसभा चुनावों से अपनी स्थिति में सुधार किया है, उस चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी लेकिन तेजस्वी स्पष्ट रूप से अपने राज्य में अखिलेश की उपलब्धि को दोहरा नहीं पाए।
टिकट बंटवारे का रखा ध्यान
उत्तर प्रदेश में सपा ने 62 सीटों पर चुनाव लड़ा था जबकि उसकी सहयोगी कांग्रेस ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था। अपने मूल मुस्लिम-यादव (एमवाई) वोट आधार को बनाए रखने और गैर-यादव ओबीसी के वोटों में सेंध लगाने के लिए सपा ने यादव समुदाय से केवल पांच उम्मीदवारों को ही मैदान में उतारा, जो कि पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव के परिवार से। 2019 में, सपा ने अपने 37 उम्मीदवारों में से 10 यादव चेहरे मैदान में उतारे थे।
इस बार, सपा ने केवल चार मुस्लिम उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारा। वास्तव में अखिलेश ने अपने वोट आधार के लिए एक नया नारा गढ़ा, जो “एमवाई” या मुस्लिम-यादव से “पीडीए” या “पिछड़े (पिछड़े वर्ग या ओबीसी), दलित, अल्पसंख्यक (अल्पसंख्यक)” तक फैल गया था। इसलिए सपा के टिकटों का बड़ा हिस्सा गैर-यादव ओबीसी - 27 उम्मीदवारों -, दलितों - अनुसूचित जाति (एससी)-आरक्षित सीटों पर 15 उम्मीदवार और एक सामान्य निर्वाचन क्षेत्र में 11 उच्च जाति के चेहरे पर गया।
तेजस्वी क्यों नहीं हुए सफल
दलितों तक पहुंच बनाने के अपने प्रयास के तहत सपा ने एक सामान्य सीट - महत्वपूर्ण फैजाबाद (अयोध्या) से भी एक पासी (दलित) चेहरे अवधेश प्रसाद को मैदान में उतारा, जो विजयी हुए। हालांकि तेजस्वी भी राजद के आधार को उसके पारंपरिक 'एम-वाई' वोट बैंक से परे विस्तारित करने के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन चुनाव परिणामों से पता चलता है कि उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिल सकी। बिहार में राजद और कांग्रेस ने क्रमशः 23 और नौ सीटों पर चुनाव लड़ा था।
बिहार में चला नीतीश कुमार का जादू
अखिलेश के विपरीत तेजस्वी को नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडी(यू) का सामना करना पड़ा, जो एनडीए के लिए बिहार में गेमचेंजर साबित हुई, क्योंकि नीतीश ने ईबीसी और महादलित समुदायों में अपना समर्थन आधार बनाए रखा। अपने 16 उम्मीदवारों में से जेडी(यू) ने छह ईबीसी, तीन कुशवाहा, एक कुर्मी (ओबीसी), दो यादव, दो उच्च जाति, एक मुस्लिम और एक दलित उम्मीदवार को मैदान में उतारा था।
बिहार में इंडिया ब्लॉक ने तीन क्षेत्रों - शाहाबाद, मगध और सीमांचल पर अपना दबदबा कायम रखा। इसने तीन सीटें जीतकर प्रभावशाली प्रदर्शन किया। आरा, बक्सर, सासाराम, शाहाबाद औरंगाबाद, मगध और काराकाट- मगध में इस गठबंधन ने पाटिलपुत्र सीट भी जीती, इसने प्रतिष्ठित पाटलिपुत्र सीट भी जीती। यहां आरजेडी की मीसा भारती ने मौजूदा बीजेपी सांसद रामकृपाल यादव को हराया। मीसा की जीत का एक बड़ा कारण आरजेडी के पारंपरिक एमवाई आधार से परे उनकी पहुँच थी।
इन क्षेत्रों में मिली तेजस्वी को सक्सेस
औरंगाबाद में राजद ओबीसी कुशवाहा वोट को भी विभाजित करने में सफल रही, क्योंकि उसके कम महत्वपूर्ण उम्मीदवार अभय कुशवाहा ने बीजेपी के मौजूदा सांसद सुशील कुमार सिंह को हरा दिया। राजद ने कुछ महत्वपूर्ण सीटों पर अपने वोट इंडिया में अपने सहयोगियों को हस्तांतरित करने में भी सफलता प्राप्त की - जिसमें आरा भी शामिल है, जहां सीपीआई (एमएल) एल के सुदामा प्रसाद ने बीजेपी के हाई-प्रोफाइल उम्मीदवार और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह को हराया। इसके अलावा सासाराम में कांग्रेस के मनोज कुमार ने भाजपा के शिवेश कुमार को हराया।
किसका कितना रहा वोट प्रतिशत
वोट प्रतिशत के मामले में राजद 22.14% वोट पाकर शीर्ष पर रहा, उसके बाद बीजेपी 20.52% वोट शेयर के साथ दूसरे और जद (यू) 18.52% वोट शेयर के साथ तीसरे स्थान पर रहा। आरजेडी को ज्यादा वोट मिले लेकिन वह अपने वोटों को सीटों में नहीं कनवर्ट कर पाई। इंडिया ग्रुप का कुल वोट शेयर 37% रहा, जबकि एनडीए का 45% रहा। बात पिछले चुनाव की करें तो 2019 में जब एनडीए ने 39 सीटें जीतकर राज्य में जीत हासिल की थी, तो उसका वोट शेयर 54% था, जबकि विपक्षी गठबंधन को 32% वोट मिले थे।