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UGC NET Exam 2024 Paper Leak: क्या शिक्षा को फिर से 'राज्य सूची' में लाया जाना चाहिए, जानिए क्या है इतिहास, दूसरे देशों में क्या हैं नियम?

NEET UG, UGC NET Exam 2024 Paper Leak: ब्रिटिश शासन के दौरान भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने हमारी राजनीति में पहली बार एक ढांचा बनाया। विधायी विषयों को संघीय विधायिका (वर्तमान संघ) और प्रांतों (राज्यों) के बीच बांट दिया गया था। शिक्षा को प्रांतीय सूची के अंतर्गत रखा गया था। जानिए क्या है इतिहास?
Written by: Jyoti Gupta
नई दिल्ली | Updated: July 01, 2024 18:55 IST
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NEET UG, UGC NET Exam 2024 Paper Leak: नीट यूजी पेपर लीक मामले में अब क्या हो सकता है। (सोर्स- PTI/File)
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UGC NET Exam 2024 Paper Leak Case: नीट यूजी पेपर लीक को सड़क से लेकर संसद तक विवाद है। छात्र सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। नीट-यूजी परीक्षा 2024 में ग्रेस मार्क्स दिए जाने और पेपर लीक के आरोपों की वजह विवाद है। सरकार ने यूजीसी-नेट परीक्षा कराने के एक दिन बाज ही उसे भी कैंसिल कर दिया, जबकि सीएसआईआर-नेट और एनईईटी-पीजी परीक्षा पोस्टपोन कर दिए गए।

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शिक्षा को लेकर क्या रहा इतिहास?

ब्रिटिश शासन के दौरान भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने हमारी राजनीति में पहली बार एक ढांचा बनाया। विधायी विषयों को संघीय विधायिका (वर्तमान संघ) और प्रांतों (राज्यों) के बीच बांट दिया गया था। शिक्षा को प्रांतीय सूची के अंतर्गत रखा गया था। आजादी के बाद से ही शिक्षा 'राज्य सूची' का हिस्सा रहा। हालांकि, आपातकाल के दौरान कांग्रेस पार्टी ने संविधान में संशोधन के लिए सिफारिशें करने के लिए स्वर्ण सिंह समिति का गठन किया। इस समिति की सिफारिशों में से एक 'शिक्षा' को समवर्ती सूची में रखना था। इसे 42वें संवैधानिक संशोधन (1976) के जरिए 'शिक्षा' को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर लागू किया गया था। इस बदलाव के लिए कोई खास तर्क नहीं दिया गया था और संशोधन को पर्याप्त बहस के बिना कई राज्यों द्वारा सहमति दी गई थी।

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आपातकाल के बाद सत्ता में आई मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार ने 42वें संशोधन के जरिए किए गए कई विवादास्पद परिवर्तनों को पलटने के लिए 44वां संवैधानिक संशोधन (1978) पारित किया। इनमें से एक संशोधन 'शिक्षा' को राज्य सूची में लाने का था, जो लोकसभा में तो पारित हुआ लेकिन राज्यसभा में नहीं।

विदेशों में क्या नियम हैं?

अमेरिका में राज्य और लोकल सरकारें एजुकेशनल स्टैंडर्ड तय करती हैं और स्टैंडर्ड टेस्ट अनिवार्य करती हैं। सराकारें कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की निगरानी करती हैं। संघीय शिक्षा विभाग के कार्यों में मुख्य रूप से वित्तीय सहायता के लिए नीतियां, प्रमुख शैक्षिक मुद्दों पर फोकस और समानता शामिल हैं। वहीं कनाडा में शिक्षा का मैनेजमेंट पूरी तरह से प्रांतों द्वारा किया जाता है। इसके अलावा जर्मनी में, संविधान शिक्षा के लिए विधायी शक्तियां लैंडर्स (राज्यों के बराबर) देता है। वहीं दक्षिण अफ्रीका में स्कूल और उच्च शिक्षा को दो राष्ट्रीय विभाग मैनेज करती हैं। राष्ट्रीय विभागों की नीतियों को लागू करने और स्थानीय मुद्दों से निपटने के लिए देश के प्रांतों के पास अपने शिक्षा विभाग हैं।

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अब क्या किया जा सकता है?

समवर्ती सूची में 'शिक्षा' के पक्ष में एक समान शिक्षा नीति, मानकों में सुधार और केंद्र व राज्यों के बीच तालमेल शामिल हैं। हालांकि, देश की विविधता को देखते हुए एक नियम सभी पर लागू नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, 2022 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा तैयार 'शिक्षा पर बजट व्यय का विश्लेषण' रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में शिक्षा विभागों द्वारा कुल राजस्व व्यय ₹6.25 लाख करोड़ (2020-21) होने का अनुमान है जो 15% है। यह केंद्र द्वारा खर्च किया जाता है जबकि 85% राज्य द्वारा खर्च किया जाता है। यदि शिक्षा और प्रशिक्षण पर अन्य सभी विभागों द्वारा किए गए खर्च पर विचार किया जाए तो भी हिस्सेदारी लगभाग 24% और 76% बैठती है।

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'शिक्षा' को राज्य सूची में बहाल करने के खिलाफ प्रोफेशनलिज्म में की कमी के साथ भ्रष्टाचार भी शामिल है। हालांकि नीट और एनटीए से जुड़े हालिया टॉपिक से साफ है कि केंद्रीकरण का मतलब यह नहीं है कि प्रोफेशनलिज्म और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे नहीं है। शिक्षा के खर्च का बड़ा हिस्सा राज्यों पर निर्भर है। इसलिए 'शिक्षा' को राज्य सूची में वापस लाने की दिशा में एक सार्थक चर्चा की जरूरत है। इससे मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे प्रोफेशनल सेक्टर सहित उच्च शिक्षा के लिए विषय, परीक्षण और एडमिशन के लिए सही नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। वैसे आपकी राय में क्या शिक्षा को फिर से राज्य में शामिल किया जाना चाहिए।

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