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संपादकीय: घाटी में आतंकियों की सक्रियता, सरकार के दावे पर सवाल

चिंता की बात यह भी है कि आतंकी उन इलाकों में भी सक्रिय देखे जा रहे हैं, जहां वर्षों से लगभग शांति थी। पीर-पंजाल के इलाके में फिर से आतंकियों का सक्रिय हो जाना पाकिस्तान की तरफ से मिल रही गंभीर चुनौती की तरह है। ताजा ह
Written by: जनसत्ता
नई दिल्ली | Updated: May 07, 2024 08:57 IST
संपादकीय  घाटी में आतंकियों की सक्रियता  सरकार के दावे पर सवाल
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो -(इंडियन एक्सप्रेस)।
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घाटी में दहशतगर्दी पर काफी हद तक काबू पा लेने के सरकारी दावे के बरक्स हकीकत यह है कि पिछले कुछ सालों में वहां आतंकी हमले बढ़े हैं। पुंछ के शाहसितार इलाके में वायुसेना के वाहन पर हुआ हमला इसकी ताजा कड़ी है। शनिवार को घात लगा कर आतंकियों ने हमला किया था, जिसमें पांच सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गए। बाद में उनमें से एक ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। आतंकियों की तलाश जारी है। हेलिकाप्टर से भी उनकी टोह ली जा रही है। बताया जा रहा है कि ये आतंकी पाकिस्तान से आए थे। उनमें से दो आतंकियों के रेखाचित्र जारी कर उनके बारे में जानकारी देने वाले को बीस लाख रुपए इनाम की घोषणा भी कर दी गई है।

सरकार लगातार कहती आ रही है कि घाटी में आतंकवादियों की गतिविधियों को समेट दिया गया है। अब वे एक सीमित क्षेत्र में सक्रिय रह गए हैं। उन्हें भी जल्दी खत्म कर दिया जाएगा। मगर हैरानी की बात है कि सरकार के इस दावे को धता बताते हुए आतंकी लगातार कभी लक्षित हिंसा करके ध्यान भटकाने, तो कभी सेना के काफिले पर घात लगा कर हमला करने में कैसे कामयाब हो जा रहे हैं।

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चिंता की बात यह भी है कि आतंकी उन इलाकों में भी सक्रिय देखे जा रहे हैं, जहां वर्षों से लगभग शांति थी। पीर-पंजाल के इलाके में फिर से आतंकियों का सक्रिय हो जाना पाकिस्तान की तरफ से मिल रही गंभीर चुनौती की तरह है। ताजा हमला उसी इलाके में हुआ है। वह पाकिस्तान से सटा घने जंगलों और चट्टानों वाला दुर्गम इलाका है। भारतीय सेना ने बहुत पहले उस इलाके में पाकिस्तान पोषित आतंकी गतिविधियों पर विराम लगा दिया था। यह पिछले एक पखवाड़े में तीसरी आतंकी घटना है। इसके पहले आतंकियों ने दो स्थानीय नागरिकों की गोली मार कर हत्या कर दी थी।

इसके पहले सेना और पुलिस ने कुछ तलाशी अभियानों में आतंकवादियों को मार गिराया था। ये हमले उन्हीं की प्रतिक्रिया में किए गए लगते हैं। मगर इन घटनाओं से यह भी जाहिर है कि सेना और सुरक्षाबलों को दहशतगर्दों की रणनीति समझने में चूक हो रही है। वे समय-समय पर अपनी रणनीति बदलते रहते हैं। कई बार वे लक्षित हिंसा का सहारा केवल इसलिए लेते हैं कि ध्यान भटकाया जा सके। फिर वे घात लगा कर सेना के काफिले पर हमला इस मकसद से करते हैं कि अधिक से अधिक नुकसान पहुंचा सके। बार-बार हो रहे ऐसे हमले गंभीर चिंता का विषय हैं।

जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने और सेना की तैनाती बढ़ाने के बाद दावे किए गए थे कि जल्दी ही घाटी से दहशतगर्दी को नेस्तनाबूद कर दिया जाएगा। अब जब आतंकवादियों को मिलने वाले वित्तीय, स्थानीय और हर तरह के सहयोग पर अंकुश लगाया जा चुका है, पहले की तुलना में खुफिया तंत्र अधिक सक्रिय है, तब भी अगर आतंकवादी न केवल सुरक्षाबलों को चकमा देने में कामयाब हो जा रहे हैं, बल्कि उनकी सक्रियता लगातार बनी हुई है, तो इस विषय में नए सिरे से विचार करने की जरूरत है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद तीन सौ सत्तर को खत्म हुए भी पांच वर्ष होने को आ रहे हैं। अभी तक वहां विधानसभा चुनाव कराने में अड़चनें दूर नहीं हो पा रहीं। अगर इन घटनाओं के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, तो उससे निपटने की रणनीति बनानी चाहिए।

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