संपादकीय: भ्रष्टाचार के तहखाने में नोटों की गड्डी, बड़ा सवाल- आ कहां से रहा है पैसा
लंबे समय से देश भर में काले धन के खिलाफ अभियान चल रहा है। जांच एजंसियां लगातार सक्रिय हैं। मगर तमाम कवायदों के बावजूद इस समस्या से पार पाना बड़ी चुनौती बनी हुई है। सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने झारखंड की राजधानी रांची में राज्य सरकार में मंत्री आलमगीर आलम के निजी सचिव के घरेलू सहायक के घर छापेमारी की, जिसमें पैतीस करोड़ रुपए से ज्यादा की नकदी बरामद हुई। खबर के मुताबिक, यह छापेमारी झारखंड ग्रामीण विकास विभाग के मुख्य अभियंता से जुड़े मामले में हुई है, जिसे ईडी ने पिछले वर्ष धनशोधन के मामले में गिरफ्तार किया था।
धनशोधन का सिरा मंत्री के निजी सचिव और उसके घरेलू सहायक से भी जुड़ा हुआ था, इसलिए ईडी ने उसे जांच और कार्रवाई के दायरे में लिया। सवाल है कि इतनी बड़ी रकम काले धन के रूप में किसी के घर में पड़ी थी, तो इस तरह का भ्रष्टाचार बिना किसी उच्च स्तरीय संरक्षण के चलना कैसे संभव है!
सवाल यह भी है कि भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ अभियान चलाने और इसके खात्मे के लिए हर स्तर पर कार्रवाई करते हुए पिछले आठ-वर्षों में जितने वादे और दावे किए गए, उसके मुकाबले कामयाबी कहां दिखती है! आखिर क्या वजह है कि हर कुछ दिनों बाद किसी नेता या अधिकारी के घर या दफ्तर में छापे मारे जाते हैं, वहां से करोड़ों रुपए नगद बरामद होते हैं? समझना मुश्किल है कि जांच एजंसियों की सघन कार्रवाइयों के बीच दीवार फोड़ कर कहां से इतनी भारी मात्रा में नगदी निकल आती है?
क्या वजह है कि काले धन पर काबू पाने के लिए बनाए गए कायदे-कानून को लेकर सख्ती के दावों के बावजूद भ्रष्ट आचरण में लिप्त नेता या अफसर को कई-कई करोड़ रुपए नगद अपने घरों में छिपा कर रखने में कोई खौफ नहीं होता? कहा जा सकता है कि सरकारी एजंसियां भ्रष्टाचार और काले धन की समस्या को खत्म करने को लेकर सक्रिय हैं। मगर यह भी सच है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ने और संबंधित महकमों या एजंसियों की अति-सक्रियता के बावजूद इस समस्या पर काबू पाना आज भी मुश्किल साबित हो रहा है।