संपादकीय: दिल्ली के सीएम पर सियासी फंदा, चरमपंथी ‘सिख फार जस्टिस’ से आर्थिक सहयोग ने बढ़ाई मुश्किलें
अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नए मामले में फंसते नजर आ रहे हैं। उपराज्यपाल ने गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिख कर उनके खिलाफ खालिस्तान समर्थक चरमपंथी संगठन से पैसा लेने के मामले में राष्ट्रीय जांच एजंसी से जांच कराने की सिफारिश की है। यह सिफारिश एक व्यक्ति की सप्रमाण शिकायत पर की गई है। उस शिकायत में कहा गया है कि अरविंद केजरीवाल ने चरमपंथी संगठन ‘सिख फार जस्टिस’ के सदस्यों के साथ बैठक की थी, जिसमें तय हुआ था कि वे एक करोड़ साठ लाख डालर के बदले 1993 दिल्ली बम धमाकों के आरोपी देवेंदर पाल भुल्लर की रिहाई में मदद करेंगे।
शिकायतकर्ता ने बैठक की तस्वीर भी सोशल मीडिया पर साझा की थी
अरविंद केजरीवाल के सहयोगी रहे एक व्यक्ति ने दस वर्ष पहले इस बैठक की तस्वीर भी सोशल मीडिया पर साझा की थी। उसी व्यक्ति की शिकायत पर उपराज्यपाल ने जांच की सिफारिश की है। अरविंद केजरीवाल पहले ही कथित शराब घोटाले में धनशोधन मामले में जेल हैं। उस गिरफ्तारी को सर्वोच्च न्यायालय में गैरकानूनी ठहराने की कानूनी जद्दोजहद चल रही है। अगर राष्ट्रीय जांच एजंसी नए मामले की जांच शुरू करती है, तो केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हालांकि अभी तक उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया है।
SFJ से पैसा लेने का आरोप केजरीवाल पर पहली बार नहीं लगा है
नए मामले में उपराज्यपाल की सिफारिश के बाद आम आदमी पार्टी ने विरोध प्रदर्शन किया है। उसका कहना है कि मुख्यमंत्री के जेल में रहने से दिल्ली की व्यवस्था पहले ही चरमरा गई है। मगर उपराज्यपाल और केंद्र सरकार को इसकी चिंता नहीं है। वे उन्हें किसी न किसी तरह जेल में डाले रखना चाहते हैं। हालांकि सिख फार जस्टिस से पैसा लेने का आरोप केजरीवाल पर पहली बार नहीं लगा है। चार वर्ष पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव के वक्त भी यही आरोप लगा था। तब भाजपा ने खूब शोर मचाया था, मगर दिल्ली के लोगों ने उसको गंभीरता से नहीं लिया और आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत से जिताया था। फिर यही आरोप दो वर्ष पहले पंजाब विधानसभा चुनाव में भी लगा था। तब अरविंद केजरीवाल के करीबी रहे कुमार विश्वास ने यह आरोप लगाया था। मगर वहां भी इसका असर नहीं हुआ।
विचित्र संयोग है कि इस बार जब यह मामला उठा है, तब लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं। इससे आम आदमी पार्टी को फिर यह कहने का मौका मिल गया है कि दरअसल, यह भाजपा का रचा सियासी फंदा है, जिसमें वह केजरीवाल को फंसाना चाहती है। मगर इस बार केवल जनता की अदालत में सफाई देने से काम नहीं चलेगा। एनआइए जांच में केजरीवाल अपने पक्ष में सबूत पेश करने होंगे।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार और उपराज्यपाल की तनातनी कोई नई नहीं है। कथित शराब घोटाले की जांच की सिफारिश भी उपराज्यपाल ने ही की थी, जिसके दायरे में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और अन्य कई लोग आए। हालांकि संजय सिंह को जमानत मिल गई और अरविंद केजरीवाल को लेकर भी अदालत का रुख कुछ सकारात्मक ही नजर आ रहा है। ऐसे में पूछा जा रहा है कि उपराज्यपाल ने कहीं एक नया फंदा तो नहीं बनाया है। जो हो, अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी लगातार खुद को कट्टर ईमानदार और पारदर्शी बताते रहे हैं। इसलिए उन्हीं से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी निर्दोषिता साबित करें। मगर उपराज्यपाल की पक्षधरता पर भी सवाल समाप्त नहीं हुए हैं। भ्रष्टाचार के मामलों को सियासी रस्साकशी का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए।