संपादकीय: चीन के प्रभाव में नेपाल की उकसावे वाली जिद, संप्रभुता का अतिक्रमण तकलीफदेह
पड़ोसी देश नेपाल ने पिछले कुछ समय से भारत को लेकर जैसा रवैया अख्तियार किया हुआ है, उससे साफ है कि वह चीन के प्रभाव में कुछ अवांछित फैसले भी कर रहा है। हालांकि उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत जैसे पड़ोसी के संप्रभु क्षेत्र में अगर वह दस्तावेजी तौर पर नाहक दखलअंदाजी करने की कोशिश करता है तो वह एक तरह से उकसावे की कार्रवाई है। गौरतलब है कि नेपाल सरकार ने सौ रुपए के नए नोट छापने का फैसला किया है, जिस पर देश का एक नक्शा भी होगा। किसी भी देश का यह अपना फैसला होता है कि वह अपनी मुद्रा पर क्या प्रतीक चिह्न देता है।
नेपाल पिछले 34 वर्षों से विवाद खड़ा कर रहा है
मगर उसमें अगर किसी पड़ोसी देश की संप्रभुता के अतिक्रमण का संकेत दिखेगा तो यह निश्चित तौर पर आपत्तिजनक है। नेपाल ने सौ रुपए के नोट पर जो नक्शा छापने का फैसला किया है, उसमें लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी इलाके भी शामिल हैं, जबकि ये भारत के सीमा क्षेत्र में हैं। पिछले चौंतीस वर्षों से वह भारत के इन तीनों क्षेत्रों को अपना बता कर विवाद को जटिल बनाता रहा है।
भारत के लिए यह तकलीफदेह इसलिए भी है कि सदियों से नेपाल के साथ मधुर रिश्ते रहे हैं। इसी वजह से नेपाल के सबसे विकट समय में भी भारत ने उसका साथ दिया है, हर स्तर पर आगे बढ़ कर मदद पहुंचाई है। अफसोस की बात है कि नेपाल भारत के साथ अपने पुराने संबंधों की गरिमा को ताक पर रख कर अब कूटनीतिक संवेदनशीलता का ध्यान रखना भी जरूरी नहीं समझ रहा है।
नेपाल की ओर से यह विवाद करीब चार वर्ष पहले भी उठा था, जब उसने देश के नए राजनीतिक और प्रशासनिक नक्शे की मंजूरी के लिए संसद में पेश किया था। सवाल है कि जो इलाके लंबे समय से और आधिकारिक तौर पर भारत का हिस्सा रहे हैं, उन पर दावा जता कर नेपाल क्या हासिल करना चाहता है! अभी तक भारत, नेपाल के इस रुख पर तीखी प्रतिक्रिया देकर शांत रह जाता रहा है। मगर अब उसे इस मसले के हल के लिए अपनी ओर से ठोस पहल करने की जरूरत है।